NCC से ट्रांसजेंडर बाहर रखना वर्तमान कानून के अनुसार वैध: केरल हाईकोर्ट ने समावेशिता हेतु कानून संशोधन की सलाह दी
केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को नेशनल कैडेट कॉर्प्स (NCC) से बाहर रखना वर्तमान कानून के तहत संविधान का उल्लंघन नहीं है, क्योंकि नेशनल कैडेट कॉर्प्स अधिनियम, 1948 अभी केवल पुरुष और महिला छात्रों को ही नामांकित करने की अनुमति देता है। हालांकि, कोर्ट ने केंद्र सरकार से कानून में संशोधन कर समावेशिता सुनिश्चित करने पर विचार करने का आग्रह किया है।
जस्टिस एन. नागरेश ने यह फैसला उस ट्रांसजेंडर छात्र की याचिका पर दिया, जिसकी NCC में भर्ती की आवेदन को जेंडर आइडेंटिटी के आधार पर खारिज कर दिया गया था।
याचिकाकर्ता की दलील
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि लिंग पहचान के आधार पर आवेदन खारिज करना संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 में दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
सरकार और NCC का जवाब
प्रतिवादियों ने कहा कि NCC अधिनियम की धारा 6 के अनुसार केवल लड़के और लड़कियों को ही कैडेट के रूप में नामांकित किया जा सकता है, इसलिए आवेदन खारिज करना कानून के अनुसार सही है।
कोर्ट ने कहा कि—
• NCC का प्रशिक्षण ढांचा—जैसे क्लोज़-कॉन्टैक्ट फिज़िकल ट्रेनिंग, संयुक्त कैंप, और फील्ड एक्सरसाइज़—लिंग आधारित संरचना पर बना है ताकि प्रतिभागियों की सुरक्षा और सुविधा बनी रहे।
• अलग-अलग लिंग वाले कैडेट्स को अलग-अलग रखना “उचित भेद (intelligible differentia)” है और इसका एक तर्कसंगत आधार है।
कोर्ट ने यह भी माना कि ट्रांसजेंडर छात्रों को समानता और अवसर मिलना चाहिए, लेकिन उन्हें NCC में शामिल करने या अलग ट्रांसजेंडर डिविज़न बनाने के लिए नीतिगत निर्णय और विधायी संशोधन की आवश्यकता होगी।
कोर्ट ने कहा :
“आदर्श रूप से ट्रांसजेंडर छात्रों को भी NCC प्रशिक्षण का समान अवसर मिलना चाहिए, लेकिन अलग डिविजन बनाने के लिए पर्याप्त संख्या और नीति की जरूरत है। यह कार्य कार्यपालिका और विधायिका का है।”
निष्कर्ष
कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और रजिस्ट्री को आदेश दिया कि निर्णय की एक प्रति रक्षा मंत्रालय और विधि एवं न्याय मंत्रालय को भेजी जाए ताकि वे इस विषय पर विचार कर आवश्यक कदम उठा सकें।