रिट कोर्ट अनुशासनात्मक कार्यवाही में साक्ष्यों की फिर से जांच नहीं करेगा, जब तक कि जांच अधिकारी द्वारा दोष का निष्कर्ष गलत न हो: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने कहा कि रिट कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 226 या 227 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए अनुशासनात्मक कार्यवाही में साक्ष्यों की फिर से जांच नहीं करेगा। न्यायालय ने आगे कहा कि रिट कोर्ट जांच अधिकारी द्वारा दोष के निष्कर्षों में तभी हस्तक्षेप करेगा जब वे गलत हों।
जस्टिस अनिल के.नरेंद्रन और जस्टिस मुरली कृष्ण एस. की खंडपीठ अनुशासनात्मक कार्यवाही को चुनौती देने वाली अपील पर विचार कर रही थी।
न्यायालय ने इस प्रकार कहा,
“यह सामान्य बात है कि अनुशासनात्मक कार्यवाही में हाईकोर्ट, भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 या 227 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए साक्ष्यों की फिर से जांच नहीं करेगा। रिट कोर्ट जांच अधिकारी द्वारा दर्ज किए गए दोष के निष्कर्षों में तभी हस्तक्षेप कर सकता है, जब वे गलत निष्कर्षों पर आधारित हों। इस मामले में अपीलकर्ता के खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रगति पर है। यह अपने स्वाभाविक अंत तक नहीं पहुंची। ऐसी परिस्थितियों में अपीलकर्ता द्वारा कोई पर्याप्त आधार नहीं बनाया गया, जिसके आधार पर उसके खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही में रिट कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप किया जा सके।”
अपीलकर्ता श्पद्मनाभ स्वामी मंदिर में सीनियर क्लर्क के रूप में कार्यरत था। वह कर्मचारियों के एक संगठन बीएमएस कर्मचारी संघम का अध्यक्ष भी है। अपीलकर्ता ने मंदिर की गतिविधियों में विभिन्न व्यक्तियों द्वारा की गई अशुद्धियों के कई कृत्यों को देखते हुए प्रशासनिक समिति के समक्ष शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद शिकायत दर्ज कराने के बाद अपीलकर्ता को चार्ज मेमो जारी किया गया। अपीलकर्ता ने दो रिट याचिकाएं दायर कीं- एक मंदिर प्रशासन से संबंधित और दूसरी अनुशासनात्मक कार्यवाही को चुनौती देने वाली। मंदिर प्रशासन से संबंधित याचिका को बिना किसी राहत के बंद कर दिया गया जबकि अनुशासनात्मक कार्यवाही को चुनौती देने वाली याचिका में कुछ निर्देश जारी किए गए। इन आदेशों से व्यथित होकर उसने दो रिट अपीलें दायर कीं।
अपीलकर्ता ने कहा कि मंदिर प्रशासन में अनियमितताओं और कुप्रबंधन के खिलाफ वास्तविक शिकायतें उठाने के लिए उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई।
दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने कहा कि अपीलकर्ता ने प्रशासनिक समिति के खिलाफ अवांछित आरोप लगाकर अनुशासनहीनता की। यह कहा गया कि अपीलकर्ता अनुशासनात्मक कार्यवाही में जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित नहीं हुआ।
न्यायालय ने नोट किया कि अपीलकर्ता ने अपने द्वारा लगाए गए आरोपों को पुष्ट करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया। न्यायालय ने आगे कहा कि मंदिर की प्रशासनिक समिति ने इन आरोपों पर विचार किया और पाया कि यह असत्य है और इसमें सच्चाई नहीं है।
न्यायालय ने आगे बताया कि अपीलकर्ता अपने खिलाफ किए गए किसी भी दुर्भावना या अवैधता को इंगित करने में असमर्थ था।
रिट अपील खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: बबीलू शंकर बनाम पद्मनाभस्वामी मंदिर और संबंधित मामला