समान तथ्यों पर परस्पर विरोधी निर्णयों को रोकने के लिए क्रॉस केसों की सुनवाई एक ही न्यायालय द्वारा की जाएगी: केरल हाइकोर्ट

Update: 2024-04-18 10:53 GMT

केरल हाइकोर्ट ने दोहराया कि एक ही न्यायालय क्रॉस केसों की सुनवाई करेगा। क्रॉस केसों की सुनवाई से संबंधित न्यायिक मिसालों का विश्लेषण करने पर न्यायालय ने यह बताने के लिए निम्नलिखित कारण बताए कि एक ही न्यायालय क्रॉस केसों की सुनवाई करेगा।

जस्टिस के बाबू ने कहा,

"न्यायिक मिसालें इस तरह की प्रक्रिया के कारणों को रेखांकित करती हैं, जैसे (a) यह किसी अभियुक्त को उसके पूरे मामले के न्यायालय में आने से पहले दोषी ठहराए जाने के खतरे को रोकती है (b) यह समान तथ्यों पर दिए जाने वाले परस्पर विरोधी निर्णयों को रोकती है (c) वास्तव में मामला और प्रति-मामला सभी इरादों और उद्देश्यों के लिए एक ही घटना के अलग-अलग या परस्पर विरोधी संस्करण हैं।"

मामले के तथ्यों में याचिकाकर्ता 2 मजिस्ट्रेट न्यायालय के समक्ष एस.टी. नंबर 977/2022 (अपराध नंबर 399/2022) में वास्तविक शिकायतकर्ता है।

याचिकाकर्ता 1 (याचिकाकर्ता 2 का पुत्र) एस.सी. नंबर 945/2022 (अपराध नंबर 212/2022) में अभियुक्त है, जो SC/ST Act मामलों के लिए विशेष न्यायालय के समक्ष लंबित है। पक्षकारों ने मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित मामले को विशेष न्यायालय को सौंपने की मांग की, क्योंकि दोनों मामले क्रॉस केस हैं। मजिस्ट्रेट द्वारा यह कहते हुए आदेश पारित किया गया कि दोनों मामले क्रॉस केस नहीं हैं।

इस आदेश को हाइकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई। याचिकाकर्ताओं का तर्क है दोनों मामले एक ही दिन एक ही स्थान पर लगभग एक ही समय पर हुए। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने प्रथम दृष्टया साबित कर दिया कि दोनों मामले क्रॉस केस हैं।

गोरीपर्थी कृषटम्मा एवं अन्य बनाम सम्राट (1929) में मद्रास हाइकोर्ट के निर्णय पर भरोसा करते हुए इसने कहा कि एक ही मामले से उत्पन्न होने वाले मामले और प्रति मामले की सुनवाई एक ही न्यायालय द्वारा की जानी चाहिए।

न्यायालय ने कृष्ण पन्नादी बनाम सम्राट (1930) का हवाला देते हुए कहा कि क्रॉस केस की सुनवाई एक ही जज द्वारा शीघ्रता से की जानी चाहिए और दोनों मामलों की सुनवाई के बाद ही निर्णय सुनाया जाना चाहिए।

नाथी लाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1990) और सुधीर एवं अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2001) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर भरोसा करते हुए इसने माना कि यह कानूनी आवश्यकता है कि एक ही न्यायालय क्रॉस केस की सुनवाई करे, अन्यथा एक ही घटना के संबंध में परस्पर विरोधी निर्णय होंगे।

अदालत ने कहा,

“वर्तमान मामले में इस न्यायालय ने माना है कि प्रथम दृष्टया, याचिकाकर्ता यह स्थापित कर सकते हैं कि मामले केस और प्रति मामले हैं। इसलिए मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित मामला ऐसा है, जिसकी सुनवाई सत्र मामले की सुनवाई करने वाली अदालत द्वारा की जानी चाहिए।”

तदनुसार, मूल याचिका को अनुमति दी गई। अदालत ने मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा पारित आदेश रद्द कर दिया। इसने मजिस्ट्रेट को मामले को सत्र अदालत को सौंपने का निर्देश दिया, जो मामले को SC/ST Act मामलों के लिए विशेष अदालत को सौंप देगी।

केस टाइटल- फैजल बनाम केरल राज्य

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