व्यभिचार साबित करने के लिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर्याप्त, पत्नी का भरण-पोषण दावा ख़ारिज: केरल हाईकोर्ट

Update: 2025-12-03 10:24 GMT

केरल हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि पत्नी द्वारा व्यभिचार में रहना साबित करने के लिए प्रत्यक्ष साक्ष्य अनिवार्य नहीं है बल्कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी पर्याप्त हो सकता है और ऐसे मामलों में इससे पत्नी का CrPC की धारा 125 के अंतर्गत भरण–पोषण का दावा समाप्त किया जा सकता है।

जस्टिस काउसर एडप्पगाथ ने यह निर्णय उस पुनर्विचार याचिका पर दिया, जिसमें फैमिली कोर्ट द्वारा पत्नी को दी गई भरण–पोषण राशि को चुनौती दी गई। पति का तर्क था कि पत्नी व्यभिचार में रह रही है, इसलिए CrPC की धारा 125(4) के अनुसार वह भरण–पोषण की हकदार नहीं है परन्तु फैमिली कोर्ट ने प्रस्तुत साक्ष्यों की अनदेखी कर दी।

अदालत ने कहा कि CrPC की धारा 125 की कार्यवाही नागरिक प्रकृति की होती है, इसलिए यहां प्रमाण का मानक प्रमाणों के प्राबल्य पर आधारित रहेगा न कि आपराधिक मामलों की तरह संदेह से परे प्रमाण पर।

कोर्ट ने यह भी माना कि व्यभिचार सामान्यतः गोपनीय परिस्थितियों में होता है, इसलिए सीधा सबूत मिलना मुश्किल होता है। ऐसे में परिस्थितिजन्य साक्ष्य यदि तार्किक रूप से एक ही निष्कर्ष की ओर ले जाएं तो वे पर्याप्त माने जाएंगे।

इस मामले में पति द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों में मनोवैज्ञानिक की गवाही और इलाज के रिकॉर्ड, जिनमें पत्नी द्वारा विवाहेतर संबंध स्वीकार करने का उल्लेख, प्रत्यक्षदर्शी गवाह की गवाही, कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स, कथित प्रेमी की पत्नी द्वारा दायर तलाक केस के दस्तावेज़ शामिल थे।

अदालत ने इन सभी साक्ष्यों को मिलाकर यह निष्कर्ष निकाला कि नागरिक मानक पर यह सिद्ध होता है कि पत्नी व्यभिचार में रह रही थी जिसके कारण उसका भरण–पोषण का दावा टिक नहीं सकता।

परिणामस्वरूप, हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट का आदेश रद्द करते हुए कहा कि साक्ष्यों को नज़रअंदाज़ करना कानून के स्थापित सिद्धांतों के विपरीत है और पत्नी CrPC की धारा 125 के तहत भरण–पोषण की पात्र नहीं है।

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