मुस्लिम पुरुष की दूसरी शादी के रजिस्ट्रेशन से पहले पहली पत्नी की बात ज़रूर सुनी जाए, अगर वह आपत्ति करे तो पक्षकारों को अदालत भेजा जाए: केरल हाईकोर्ट

Update: 2025-11-04 15:43 GMT

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में व्यवस्था दी कि केरल विवाह पंजीकरण (सामान्य) नियम 2008 के अनुसार, मुस्लिम पुरुष की दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन करते समय वैधानिक प्राधिकारियों द्वारा पहली पत्नी को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए।

जस्टिस पी.वी. कुन्हीकृष्णन ने कहा कि यद्यपि मुस्लिम व्यक्ति कुछ परिस्थितियों में किसी पुरुष को दूसरी शादी की अनुमति देता है। फिर भी यदि विवाह का पंजीकरण किया जाता है तो देश का कानून लागू होगा। तब धर्म संवैधानिक अधिकारों के आगे गौण हो जाता है।

यह टिप्पणी एक मुस्लिम पुरुष और उसकी दूसरी पत्नी द्वारा दायर रिट याचिका पर विचार करते हुए की गई, जो नियमों के तहत पंजीकरण प्राधिकारी द्वारा उनके विवाह का पंजीकरण न किए जाने से व्यथित थे।

रिट याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा:

“इस मामले में पहली पत्नी इस रिट याचिका में पक्षकार भी नहीं है। इसलिए इस रिट याचिका पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है। हालाँकि, मैं यह स्पष्ट करता हूं कि याचिकाकर्ता प्रतिवादियों के समक्ष एक उपयुक्त आवेदन दायर करने के लिए स्वतंत्र हैं। यदि ऐसा कोई आवेदन प्राप्त होता है तो विवाह रजिस्ट्रार प्रथम याचिकाकर्ता की पहली पत्नी को सूचित करेगा। यदि वह रजिस्ट्रेशन पर यह कहते हुए आपत्ति करती है कि दूसरा विवाह अमान्य है तो पक्षकारों को सलाह दी जानी चाहिए कि वे प्रथम याचिकाकर्ता के दूसरे विवाह की वैधता निर्धारित करने के लिए किसी सक्षम न्यायालय का रुख करें। मुस्लिम महिलाओं को भी अपने पतियों के पुनर्विवाह पर सुनवाई का अवसर मिलना चाहिए, कम से कम दूसरे विवाह के रजिस्ट्रेशन के चरण में।”

प्रथम याचिकाकर्ता पहले से ही एक विद्यमान विवाह में है, जिसके दो बच्चे हैं और उक्त विवाह रजिस्ट्रेशन प्राधिकारी के समक्ष रजिस्टर्ड है। जब उक्त विवाह अभी भी विद्यमान है, तब उसने द्वितीय याचिकाकर्ता से मुलाकात की और प्रथागत कानून के अनुसार उनका विवाह संपन्न कराया।

याचिकाकर्ताओं के विवाह से दो बच्चे भी हैं। उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए अपने विवाह का रजिस्ट्रेशन कराने की मांग की कि उन्हें भी प्रथम याचिकाकर्ता की संपत्ति पर वैध अधिकार प्राप्त हो। द्वितीय प्रतिवादी रजिस्ट्रेशन प्राधिकारी ने विवाह का रजिस्ट्रेशन करने से इनकार कर दिया। इसलिए उन्होंने विवाह का रजिस्ट्रेशन कराने के निर्देश के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में दो कानूनी प्रश्नों पर विचार किया जाना है। पहला यह कि क्या 2008 के नियमों के अनुसार दूसरी शादी के रजिस्ट्रेशन के लिए पहली पत्नी को सूचना देना आवश्यक है। दूसरा प्रश्न यह था कि यदि पहली पत्नी पंजीकरण पर आपत्ति करती है तो पति के पास क्या उपाय उपलब्ध है।

कोर्ट ने टिप्पणी की कि यद्यपि पर्सनल लॉ एक मुस्लिम पुरुष को एक से अधिक विवाह करने की अनुमति देता है, फिर भी दूसरा विवाह केवल कुछ स्थितियों में ही अनुमेय है, जैसा कि जुबैरिया बनाम सैदालवी एन. मामले में विस्तृत रूप से बताया गया।

कोर्ट ने 2008 के नियमों के नियम 11 का हवाला देते हुए कहा कि विवाह के रजिस्ट्रेशन के लिए नियम 9 के अनुसार ज्ञापन प्राप्त होने पर रजिस्ट्रार की ओर से सत्यापन आवश्यक है। इसने आगे कहा कि प्रपत्र/ज्ञापन में कॉलम 3(एफ) और (जी) के अनुसार, विवाह रजिस्टर्ड कराने वाले पक्षों की पिछली वैवाहिक स्थिति का उल्लेख किया जाना आवश्यक है।

हुसैन बनाम केरल राज्य [2025 (4) केएचसी 314] के मामले का हवाला देते हुए न्यायालय ने टिप्पणी की कि रजिस्ट्रार के पास विवाह की वैधता पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं है।

इस प्रश्न पर विचार करते हुए कि क्या पहली पत्नी की पीठ पीछे दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन कराया जा सकता है, कोर्ट ने निम्नलिखित टिप्पणी की:

“पवित्र कुरान और हदीस से प्राप्त सिद्धांत सामूहिक रूप से सभी वैवाहिक व्यवहारों में न्याय, निष्पक्षता और पारदर्शिता के सिद्धांतों का आदेश देते हैं। इसलिए मेरा यह सुविचारित मत है कि यदि कोई मुस्लिम पुरुष नियम 2008 के अनुसार अपनी दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन कराना चाहता है, जबकि उसकी पहली शादी अस्तित्व में है और पहली पत्नी जीवित है तो रजिस्ट्रेशन के लिए पहली पत्नी को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए। एक मुस्लिम पहली पत्नी अपने पति की दूसरी शादी के पंजीकरण के दौरान मूक दर्शक नहीं रह सकती, भले ही मुस्लिम पर्सनल लॉ कुछ स्थितियों में किसी पुरुष को दूसरी शादी की अनुमति देता हो।”

कोर्ट ने आगे टिप्पणी की कि जब उनके पति अपनी दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन कराने का प्रयास करते हैं तो वह पहली पत्नियों की भावनाओं को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता।

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