रविवार की सुनवाई | 2 नवंबर को मार्च को निकालने के लिए नया आवेदन प्रस्तुत करे RSS: कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2025-10-19 12:56 GMT

रविवार को एक विशेष सुनवाई में कर्नाटक हाईकोर्ट ने कलबुर्गी स्थित RSS के संयोजक अशोक पाटिल को 2 नवंबर को चित्तपुर कस्बे में शांतिपूर्ण ढंग से RSS मार्च (पथ संचलन) निकालने की अनुमति के लिए एक नया आवेदन प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

RSS द्वारा 19 अक्टूबर (आज) को मार्च निकालने की अनुमति मांगने वाले आवेदन पर अधिकारियों द्वारा विचार न किए जाने के बाद याचिकाकर्ता ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। इसके बाद कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा 18 अक्टूबर के एक आदेश द्वारा इस आधार पर मार्च निकालने की अनुमति देने से इनकार करने के बाद याचिका में संशोधन किया गया कि अन्य संगठन उसी समय और स्थान पर रैलियां निकालने का इरादा रखते हैं।

जस्टिस एम एस कमल की सिंगल बेंच ने पक्षकारों को सुनने के बाद याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या किसी वैकल्पिक तिथि या समय पर मार्च निकालना संभव होगा। याचिकाकर्ता के वकील सीनियर एडवोकेट अरुण श्याम ने कहा कि 2 नवंबर एक उपयुक्त तिथि होगी।

एडवोकेट जनरल शशिकिरण शेट्टी ने दलील दी कि राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि याचिकाकर्ता को कार्यक्रम आयोजित करने के लिए एक निर्दिष्ट स्थान उपलब्ध कराया जाए।

याचिकाकर्ता ने जवाब में कहा कि यदि राज्य को उनके पिछले आवेदन में उल्लिखित मार्ग पर विचार करने का निर्देश दिया जाता है तो वह संगठन के अनुरोध को स्वीकार कर लेगा।

वकील ने आगे कहा,

"संगठन सद्भाव और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के प्रति सचेत और चिंतित है। आज तक राज्य भर में बिना किसी अप्रिय घटना के लगभग 250 रूट मार्च आयोजित किए जा चुके हैं। संगठन यह सुनिश्चित करेगा कि शांति और सौहार्द बना रहे और राज्य सरकार को स्वयंसेवकों की व्यवस्था सहित पूर्ण सहयोग दिया जाए।"

अदालत ने इस बयान को एक वचनबद्धता के रूप में लिया।

इसके बाद अदालत ने आदेश दिया:

“इन दलीलों के मद्देनजर, याचिकाकर्ता को मार्ग, स्थान और समय के विवरण के साथ नया आवेदन प्रस्तुत करना होगा। साथ ही पहले उठाए गए प्रश्नों के उत्तर और 18-10-2025 को प्रस्तुत विवरण भी देना होगा। यह आवेदन कलबुर्गी जिले के उपायुक्त को प्रस्तुत किया जाएगा, जिसकी कॉपी तालुका कार्यकारी मजिस्ट्रेट और पुलिस को भी दी जाएगी। प्रतिवादी इस आदेश में की गई टिप्पणियों और कानून के संबंधित प्रावधानों को ध्यान में रखेंगे, प्रस्तावित मार्ग पर विचार करने के बाद एक उपयुक्त स्थान का संकेत देंगे और 24 अक्टूबर को इस अदालत में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे।”

अदालत ने आगे निर्देश दिया कि रिपोर्ट 24 अक्टूबर को दोपहर 2.30 बजे उसके समक्ष यह स्पष्ट करते हुए प्रस्तुत की जाए कि मामले के गुण-दोष पर कोई आदेश पारित नहीं किया गया और याचिकाकर्ता के आगे के अनुरोध पर उसी दिन विचार किया जाएगा।

आदेश में यह भी कहा गया कि इस मामले में मुख्य मुद्दा सार्वजनिक स्थानों पर मार्च या प्रदर्शन करने के लिए अनुमति की आवश्यकता वाले किसी विशिष्ट कानून का अभाव है।

अदालत ने कहा,

"सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के न्यायिक उदाहरणों को छोड़कर किसी भी कानूनी प्रावधान को अदालत के संज्ञान में नहीं लाया गया, जो अधिकारियों से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य करता हो।"

राज्य सरकार ने 29-12-2021 के अपने आदेश का हवाला देते हुए कहा कि हालांकि यह आदेश मूल रूप से केवल बेंगलुरु शहर पर लागू था, इसके प्रावधान और तंत्र राज्य के बाकी हिस्सों पर भी लागू हो सकते हैं। इसने कर्नाटक पुलिस अधिनियम की धारा 31, 35 और 64 का भी हवाला दिया।

पीठ ने कहा,

"इनके अलावा, ऐसे अनुरोधों को नियंत्रित करने वाला कोई अन्य विशिष्ट कानून नहीं है।"

संवैधानिक सिद्धांतों पर ज़ोर देते हुए अदालत ने कहा,

"एकत्र होने का अधिकार और आवागमन का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(बी) और (डी) से उत्पन्न होते हैं, जो स्वतंत्रता और आवागमन के मौलिक अधिकार की गारंटी देते हैं। हालांकि, इन अधिकारों का प्रयोग राज्य के अधिकारियों द्वारा लगाए गए उचित प्रतिबंधों के अधीन है।"

अदालत ने आगे कहा,

"कानून और व्यवस्था बनाए रखना निस्संदेह राज्य प्राधिकारियों की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है। जहां एक ओर उन पर वैधानिक कर्तव्य हैं, वहीं नागरिकों पर भी सामाजिक व्यवस्था, अखंडता और सद्भाव का समर्थन, प्रोत्साहन और उसे बनाए रखने का कर्तव्य है। अंततः, राज्य प्राधिकारियों को ही नागरिकों या संगठनों द्वारा किए गए अनुरोधों को स्वीकार करने या विनियमित करने के लिए ज़मीनी वास्तविकताओं के आधार पर तर्कसंगत निर्णय लेने की वैधानिक शक्तियां प्राप्त हैं। सार्वजनिक शांति और सौहार्द बनाए रखने के हित में उचित निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए वे ही सबसे उपयुक्त हैं।"

Tags:    

Similar News