कर्नाटक हाईकोर्ट ने एचडी रेवन्ना की जमानत रद्द करने की मांग करने वाली SIT की याचिका पर आदेश सुरक्षित रखा
कर्नाटक हाईकोर्ट ने गुरुवार को विशेष जांच दल (SIT) द्वारा दायर याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रखा, जिसमें महिला के अपहरण के आरोपी जनता दल (सेक्युलर) के नेता एचडी रेवन्ना को दी गई जमानत रद्द करने की मांग की गई थी।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने पक्षों की सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित रखा। रेवन्ना को 13 मई को विशेष अदालत ने जमानत दी थी।
प्रज्वल रेवन्ना की महिला के साथ कथित तौर पर अश्लील वीडियो सामने आने के बाद उसके बेटे ने शिकायत दर्ज कराई। आरोप है कि शिकायत दर्ज होने से पहले ही महिला का अपहरण कर लिया गया। उसे चुप कराने तथा साक्ष्य नष्ट करने का प्रयास किया गया, जिससे वह जेडी(एस) नेता के बेटे के खिलाफ शिकायत दर्ज न करा सके।
SIT की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट प्रोफेसर रविवर्मा कुमार ने कहा,
"ये तथ्य एकत्रित साक्ष्यों से स्थापित हुए और आरोपपत्र भी दाखिल किया गया। इस तरह के मामले में जमानत रद्द की जानी चाहिए।"
उन्होंने कहा कि पीड़िता का बयान दर्ज किया गया और रेवन्ना को उनमें विशेष रूप से आरोपित किया गया था। धारा 161 और 164 के तहत बयान का हवाला दिए बिना अदालत ने जमानत दी।
कुमार ने कहा,
"धारा 364-ए IPC का मूल तत्व यह है कि आरोपी के आचरण से यह आशंका पैदा होती है कि पीड़िता का जीवन खतरे में है। अदालत ने इस पर ध्यान नहीं दिया।"
रेवन्ना की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सी वी नागेश ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि जमानत देने और जमानत रद्द करने के विचार पूरी तरह से अलग हैं।
उन्होंने कहा,
"पीड़िता के बेटे को सतीश बबाना (सह-आरोपी) द्वारा दिए गए बयान के अलावा कि प्रतिवादी (एचडी रेवन्ना) ने महिला को अपने घर लाने के लिए कहा था, कुछ भी नहीं है। क्या यह दंडनीय अपराध होगा?"
उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले में अपहरण का मामला नहीं बनता, क्योंकि पीड़िता नाबालिग नहीं है।
नागेश ने तर्क दिया,
"अपहरण के लिए धारा 362 आईपीसी के तहत छल होना चाहिए। यहां ऐसी कोई घटना नहीं हुई है, महिला नौकरानी थी। इसलिए कोई छल नहीं है। इस मामले में मांग और धमकी की पुष्टि नहीं होती है।"