चेक अनादर मामलों में चेक राशि का दोगुना जुर्माना लगाने के लिए ट्रायल कोर्ट को विशेष कारण बताने होंगे: कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2024-08-06 11:29 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (NI Act) की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध के लिए आरोपी को दोषी ठहराते समय चेक राशि का दोगुना जुर्माना लगाते समय ट्रायल कोर्ट द्वारा विशेष कारण बताए जाने चाहिए।

जस्टिस वी श्रीशानंद की एकल पीठ ने फ्रांसिस ज़ेवियर डब्ल्यू द्वारा दायर याचिका आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया, जिसमें ट्रायल कोर्ट द्वारा 15.10.2018 को पारित दोषसिद्धि और सजा के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसकी अपील में पुष्टि की गई। अदालत ने उसे 3 लाख रुपये का जुर्माना भरने का निर्देश दिया था जो चेक राशि का दोगुना है।

अभिलेखों को देखने के बाद न्यायालय ने दोषसिद्धि आदेश बरकरार रखा लेकिन जुर्माना राशि में संशोधन करते हुए कहा,

"3,00,000 रुपये का जुर्माना लगाने के लिए कोई विशेष कारण नहीं मिल रहे हैं, जो चेक राशि से दोगुना है। जबकि ट्रायल मजिस्ट्रेट ने कोई भी कारण नहीं बताया विशेष कारण तो दूर की बात है। प्रथम अपीलीय न्यायालय के न्यायाधीश ने उक्त मुद्दे पर विचार तक नहीं किया।"

यह देखते हुए कि किसी अभियुक्त को दोषी ठहराने में न्यायालय की भूमिका किसी दिए गए मामले में उचित सजा सुनाते समय न्यायालय की भूमिका से भिन्न होती है, न्यायालय ने कहा,

"विधि में निस्संदेह ट्रायल मजिस्ट्रेट को जुर्माना राशि दोगुनी करने का अधिकार दिया गया, यदि ऐसे मामले के तथ्य और परिस्थितियां जुर्माने के रूप में चेक राशि से दोगुनी राशि लगाने की मांग करती हैं। प्रत्येक निर्णय कारणों पर आधारित होना चाहिए, जितना कि निर्णय के मूल में तर्क होता है।"

अमित कपूर बनाम रमेश चंदर एवं अन्य (2012) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए इसने कहा,

"यदि जुर्माने की राशि 3,00,000/- रुपये से घटाकर 2,25,000/- रुपये कर दी जाए तो न्याय हो सकता है।"

इसने यह भी कहा कि विवाद पक्षों के लिए निजी है। इसमें कोई राज्य मशीनरी शामिल नहीं है, इसलिए अभियुक्त को राज्य के खर्च के लिए 10,000 रुपये का जुर्माना देने की आवश्यकता नहीं है।

केस टाइटल- फ्रांसिस ज़ेवियर डब्ल्यू और एमएम मैथ्यू

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