Jharkhand Building Control Act| मृतक किराएदार के साथ रहने वाला और उस पर आश्रित परिवार का सदस्य कानूनी उत्तराधिकारी माना जाएगा: हाईकोर्ट

Update: 2024-12-03 06:13 GMT

झारखंड हाईकोर्ट ने माना कि मृतक किराएदार के साथ रहने वाला और उस पर आश्रित परिवार का सदस्य झारखंड भवन (पट्टा, किराया और बेदखली नियंत्रण) अधिनियम 2011 की धारा 5 के प्रावधान के तहत कानूनी उत्तराधिकारी माना जाएगा।

इस प्रकार न्यायालय ने ट्रायल और अपीलीय न्यायालयों के आदेशों को खारिज कर दिया जिसमें मृतक वादी के भतीजे का प्रतिस्थापन आवेदन खारिज कर दिया गया, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि वैधानिक प्रावधानों की अनदेखी की गई, जिसके कारण एक विकृत निष्कर्ष निकला।

जस्टिस सुभाष चंद ने फैसला सुनाते हुए अधिनियम की धारा 5 के प्रावधान की प्रासंगिकता पर जोर देते हुए कहा कि इस धारा 5 के पहले प्रावधान में यह प्रावधान किया गया कि उत्तराधिकारी जो मृतक किरायेदार की मृत्यु की तारीख तक उसके साथ परिवार के सदस्य के रूप में रह रहा हो या व्यवसाय कर रहा हो और मृतक किरायेदार पर आश्रित था, वह भी किरायेदारी के उत्तराधिकार की श्रेणी में आएगा।

यहां यह उल्लेख करना भी उचित है कि वादी-किरायेदार द्वारा दायर किया गया वाद निषेधाज्ञा के लिए सरल वाद था और सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (11) के मद्देनजर कानूनी प्रतिनिधि को परिभाषित किया गया।

जस्टिस चंद ने कहा,

“CPC की धारा 2 (11) के संचयी पढ़ने से और झारखंड भवन (लीज, किराया और बेदखली नियंत्रण) अधिनियम, 2011 की धारा 5 के प्रावधान के तहत याचिकाकर्ता ने खुद को मृतक वादी का भतीजा बताया है। यह तथ्य शिकायत के तर्कों से अच्छी तरह से पुष्ट होता है, जहां मूल वादी ने खुद कहा है कि किराएदार की संपत्ति में वह अपने पति के जीवनकाल से अपने नजदीकी रिश्तेदार के साथ रह रही थी और अपने पति की मृत्यु के बाद भी वह अपने नजदीकी रिश्तेदार के साथ रह रही थी। इस प्रकार याचिकाकर्ता मृतक वादी की कानूनी उत्तराधिकारी है। धारा 5 के प्रावधान के मद्देनजर किराएदार की श्रेणी में किरायेदारी भी आती है, जिसमें किरायेदारी का उत्तराधिकार प्रदान किया गया।”

याचिकाकर्ता, मो. नसीम खान ने मूल वाद और सिविल विविध अपील के दौरान पारित आदेश को रद्द करने की मांग की दोनों वादी ने स्थायी निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा दायर किया, जिससे उस संपत्ति से जबरन बेदखल होने से रोका जा सके, जहां वह अपने पति और करीबी रिश्तेदारों के साथ रह रही है।

याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि मोस्ट बदरुन निशा के पति 1962 से संपत्ति के किरायेदार थे, 10 रुपये किराया देते थे। वह अपने करीबी रिश्तेदारों के साथ संपत्ति में रहते थे। 2017 में उनकी मृत्यु के बाद उनकी विधवा, वादी, याचिकाकर्ता के साथ वहां रहती रही, जिसकी उन्होंने बचपन से देखभाल की थी।

वादी ने दावा किया कि अंजुमन इस्लामिया सहित प्रतिवादियों के पास संपत्ति पर कोई कानूनी अधिकार नहीं है। वे कानून के उचित तरीके का पालन किए बिना उसे बेदखल करने की धमकी दे रहे थे, जिससे उसे मुकदमा दायर करने के लिए प्रेरित किया।

22 फरवरी, 2023 को उनकी मृत्यु के बाद याचिकाकर्ता ने वादी के रूप में प्रतिस्थापित होने के लिए आवेदन किया, जिसमें दावा किया गया कि वह उनका भतीजा और आश्रित कानूनी उत्तराधिकारी है।

वहीं ट्रायल कोर्ट ने आवेदन खारिज कर दिया और इस फैसले को अपीलीय अदालत ने बरकरार रखा, जिसने माना कि याचिकाकर्ता झारखंड भवन (लीज, किराया और बेदखली नियंत्रण) अधिनियम 2011 की धारा 5 के तहत कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में योग्य नहीं है।

प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि किरायेदारी समाप्त हो गई, क्योंकि वादी की निःसंतान मृत्यु हो गई और तर्क दिया कि ट्रायल और अपीलीय अदालतों ने आवेदन को सही तरीके से खारिज कर दिया।

हाईकोर्ट ने इन निष्कर्षों से असहमति जताते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट ने अधिनियम की धारा 5 के प्रावधान को नजरअंदाज कर दिया, जिसमें स्पष्ट रूप से मृतक किरायेदार के साथ रहने वाले और उस पर आश्रित परिवार के सदस्यों को कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में शामिल किया गया।

जस्टिस चंद ने कहा,

"ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित बहुत ही विवादित आदेश के अवलोकन से यह पाया गया कि याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट ने किरायेदारी अधिनियम की धारा 5 के प्रावधान को नजरअंदाज कर दिया है। यहां झारखंड भवन (लीज, किराया और बेदखली नियंत्रण) अधिनियम, 2011 की धारा 5 के वैधानिक प्रावधान को देना प्रासंगिक होगा।”

परिणामस्वरूप हाईकोर्ट ने सिविल विविध याचिका को अनुमति दी तथा ट्रायल और अपीलीय न्यायालयों के आदेशों को रद्द कर दिया। इसने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को वाद में आवश्यक संशोधन शामिल करने और मृतक वादी के कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में खुद को प्रतिस्थापित करने की अनुमति दी जाए। न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित किए गए उपशमन के आदेश को भी रद्द कर दिया।

केस टाइटल: मोहम्मद नसीम खान बनाम अध्यक्ष, प्रबंध समिति मस्जिद दुमका और अन्य

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