झारखंड हाईकोर्ट का अहम फैसला: संशोधन याचिका के लिए पहले सेशन कोर्ट जाएं, 'दुर्लभ' मामलों में ही सीधे हाईकोर्ट आएं
झारखंड हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 397 के तहत संशोधन अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने के लिए याचिकाकर्ताओं को पहले सेशन कोर्ट जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि केवल दुर्लभ और विशेष परिस्थितियों में ही सीधे हाईकोर्ट से संपर्क किया जाना चाहिए।
जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ सीधे हाईकोर्ट में दायर संशोधन याचिका खारिज करते हुए यह बात कही। याचिकाकर्ता ने CrPC की धारा 245 के तहत अपने आरोप मुक्त होने के अनुरोध को खारिज किए जाने को चुनौती दी थी।
कोर्ट ने समझाया कि संशोधन शक्तियों का प्रयोग सामान्य बात नहीं है बल्कि इसका उपयोग दुर्लभ और विशेष मामलों में ही किया जाना चाहिए।
जस्टिस द्विवेदी ने कहा,
"जब याचिकाकर्ताओं के पास अपनी कथित गलती को सुधारने के लिए दो मंच उपलब्ध हैं तो उनके लिए पहले मंच से संपर्क करना निश्चित रूप से अधिक उचित होगा। यह निश्चित रूप से इस उच्च मंच, यानी इस न्यायालय के विवेक पर है कि वह ऐसी संशोधन याचिका पर विचार करे या नहीं, जो सेशन जज के समक्ष दायर की जा सकती है।"
याचिकाकर्ताओं ने सीधे हाईकोर्ट आने का तर्क दिया कि CrPC की धारा 397 के साथ-साथ धारा 399 और 401 के तहत सेशन कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों को संशोधन अधिकार प्राप्त है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि एक बार जब वे सेशन कोर्ट में याचिका दायर कर देंगे तो CrPC की धारा 397(3) के तहत वे हाईकोर्ट में दूसरी याचिका दायर नहीं कर पाएंगे।
कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि सीधे हाईकोर्ट आने पर कोई रोक नहीं है। हालांकि, जोर दिया कि ऐसा केवल विशेष परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा,
"जब एक ही मामले में दो समवर्ती अधिकार क्षेत्र दिए गए हों तो यह एक शिष्टाचार की बात है कि पदानुक्रम में सबसे पहले सीनियर कोर्ट से संपर्क किया जाए। यह एक सामान्य कानून है।"
न्यायालय ने आगे कहा कि पहले सेशन कोर्ट में जाने से वादियों को फायदा होगा, क्योंकि उन्हें दोहरा उपाय मिलेगा। यदि सेशन कोर्ट उनकी याचिका खारिज कर देता है तो वह अभी भी CrPC की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट जा सकते हैं।
याचिकाकर्ताओं ने सीधे हाईकोर्ट आने का कोई विशेष कारण नहीं बताया, इसलिए कोर्ट ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करने से इनकार किया और याचिका खारिज कर दी।