परिस्थितिजन्य साक्ष्य मामलों में जांच अधिकारी की जांच महत्वपूर्ण: झारखंड हाइकोर्ट ने हत्या की सजा खारिज की
झारखंड हाइकोर्ट ने हाल ही में दिए गए अपने फैसले में परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर निर्भर मामलों में जांच अधिकारी की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया। न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पूर्व जांच अधिकारी द्वारा एकत्र किए गए साक्ष्यों को दूसरे जांच अधिकारी द्वारा स्थापित न कर पाना अभियोजन पक्ष के मामले के लिए घातक साबित हो सकता है।
जस्टिस सुभाष चंद ने कहा,
"इस मामले में पूरे मामले की जांच करने वाले पहले जांच अधिकारी से पूछताछ नहीं की गई। केवल दूसरे जांच अधिकारी से ही पूछताछ की गई, क्योंकि पी.डब्लू.-6, किरन सुरीन ने पूर्व जांच अधिकारी द्वारा एकत्र किए गए साक्ष्यों के आधार पर आरोप-पत्र दाखिल किया।
परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के मामले में जांच अधिकारी की जांच बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। इसके अलावा पूर्व जांच अधिकारी द्वारा एकत्र किए गए साक्ष्य को दूसरे जांच अधिकारी द्वारा साबित नहीं किया गया। ऐसे में यह अभियोजन पक्ष के मामले के लिए घातक हो जाता है।"
यह फैसला हत्या के दोषी द्वारा दायर आपराधिक अपील में आया, जिसे आजीवन कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।
अभियोजन पक्ष के अनुसार अपीलकर्ता शिकायतकर्ता की बेटी को प्रताड़ित करता था और जब शिकायतकर्ता ने उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की तो अपीलकर्ता ने उसके साथ मारपीट की, जिसके परिणामस्वरूप 31 दिसंबर 2007 को उसकी हत्या हो गई।
हाइकोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष का मामला केवल परिस्थितिजन्य है, जिसमें अपीलकर्ता के खिलाफ साक्ष्य की श्रृंखला में स्पष्ट लिंक का अभाव है। इसके अलावा वकील ने जांच अधिकारी की गवाही की अनुपस्थिति की ओर इशारा करते हुए सुझाव दिया कि अपीलकर्ता की सजा केवल अटकलों पर आधारित है।
राज्य की ओर से पेश हुए एपीपी ने अपील का जोरदार विरोध किया, जिसमें कहा गया कि घटना के पीछे का मकसद एफआईआर में स्पष्ट रूप से बताया गया और इसे पुख्ता सबूतों से पुष्ट किया गया।
हाइकोर्ट ने साक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन किया मौखिक और साथ ही दस्तावेजी और स्वीकार किया कि अभियोजन पक्ष ने घटना के पीछे के मकसद को सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया और हत्या के परिणामस्वरूप बेटी की मौत को स्थापित किया। हालांकि इसने कहा कि अपीलकर्ता को कथित अपराध से जोड़ने वाले ठोस सबूतों का अभाव है।
न्यायालय ने कहा कि मकसद स्थापित करने के अलावा अपीलकर्ता के खिलाफ कोई अन्य परिस्थितिजन्य साक्ष्य नहीं है, जो घटनाओं की निर्णायक श्रृंखला स्थापित करने के लिए आवश्यक हो।
कोर्ट ने कहा,
“अभियोजन पक्ष के किसी भी गवाह ने अपीलकर्ता को शिकायतकर्ता की बेटी की हत्या करते नहीं देखा। जांच के दौरान जांच अधिकारी को कोई भी आपत्तिजनक परिस्थिति नहीं मिली और पूर्व जांच अधिकारी द्वारा एकत्र किए गए साक्ष्यों पर भरोसा करते हुए दूसरे जांच अधिकारी ने आरोप-पत्र दाखिल किया, जिसकी जांच पी.डब्लू.-6 किरण सुरीन के रूप में की गई।”
न्यायालय ने कहा,
“अभियोजन पक्ष का मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित होने के कारण अपीलकर्ता-दोषी के खिलाफ परिस्थितियों में परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की श्रृंखला को पूरा करने के लिए कोई कड़ी नहीं है, यहां तक कि यह भी संकेत नहीं मिलता कि अपीलकर्ता अपनी पत्नी की हत्या का अपराधी है।”
न्यायालय ने शरद बिरधीचंद सारदा बनाम महाराष्ट्र राज्य (1984) 4 एससीसी 116 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर मामलों को साबित करने के लिए पांच महत्वपूर्ण सिद्धांतों को रेखांकित किया गया।
इन सिद्धांतों में यह निर्धारित किया गया कि दोष के निष्कर्ष तक ले जाने वाली परिस्थितियों को दृढ़ता से स्थापित किया जाना चाहिए। साथ ही स्थापित तथ्यों को केवल अभियुक्त के अपराध की परिकल्पना का समर्थन करना चाहिए, अन्य सभी संभावनाओं को छोड़कर। परिस्थितियां निर्णायक होनी चाहिए और अभियुक्त के अपराध के अलावा किसी भी वैकल्पिक परिकल्पना को समाप्त करना चाहिए।
इसके अतिरिक्त साक्ष्य की पूरी श्रृंखला होनी चाहिए, जिससे अभियुक्त की निर्दोषता के बारे में कोई उचित संदेह न हो, जो कृत्य में उनकी संलिप्तता की उच्च संभावना को दर्शाता है।
आगे बढ़ते हुए न्यायालय ने नोट किया कि पहले जांच अधिकारी, जिसने पूरे मामले की की जांच नहीं की गई और केवल दूसरे जांच अधिकारी पी.डब्लू.-6, किरन सुरीन की जांच की गई, जिन्होंने पूर्व जांच अधिकारी द्वारा एकत्र किए गए साक्ष्य पर भरोसा करते हुए आरोप-पत्र दायर किया।
न्यायालय ने राजेश यादव और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया। जिसमें माना गया कि जांच अधिकारी का साक्ष्य अपरिहार्य नहीं है। इसके लिए अन्य महत्वपूर्ण गवाहों के विरोधाभास और पुष्टि की आवश्यकता होती है, क्योंकि वह एक है, जो उन्हें जोड़ता है और अदालत के समक्ष प्रस्तुत करता है।
न्यायालय ने कहा,
"ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित दोषसिद्धि का विवादित निर्णय और सजा का आदेश अनुमानों पर आधारित है। ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्ष किसी भी ठोस सबूत पर आधारित नहीं होने के कारण विकृत पाए जाते हैं। तदनुसार, इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता है और यह आपराधिक अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।"
तदनुसार, न्यायालय ने आपराधिक अपील स्वीकार कर ली।
केस टाइटल- जुमेद खान बनाम झारखंड राज्य और अन्य