पत्नी पति के परिवार पर 'स्त्रीधन' लौटाने का दबाव बनाने के लिए उसके चाचा को क्रूरता के मामले में नहीं फंसा सकती: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने पति और उसके परिवार के सदस्यों पर दबाव बनाने के लिए भारतीय दंड संहिता (IPC) धारा 498-ए के तहत कार्यवाही में पति के रिश्तेदारों को आरोपी बनाने की प्रथा की निंदा की।
अदालत ने माना कि याचिकाकर्ता के रिश्तेदार के खिलाफ क्रूरता या धोखाधड़ी के कृत्यों के संबंध में कोई सीधा आरोप नहीं लगाया गया। अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता को केवल इसलिए आरोपी बनाया गया, क्योंकि उसे अन्य आरोपियों द्वारा प्रतिवादी पत्नी के गहने/सामान सौंपने के लिए नामित किया गया, जो उसके पति और उसके परिवार के सदस्यों के पास यूके में हैं, जैसा कि उसने दावा किया।
जस्टिस राजेश ओसवाल ने कहा कि शिकायतकर्ता/पत्नी के अपने बयानों में भी याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई आरोप नहीं था। उसे केवल अपनी बहन, भतीजे और बहनोई को आभूषण/सामान शिकायतकर्ता को सौंपने के लिए राजी करने के लिए दबाव डालने के उद्देश्य से आरोपित किया गया।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की भूमिका केवल उन बैठकों तक ही सीमित थी, जिनमें प्रतिवादी पत्नी और उसके पति के बीच सुलह का प्रयास किया गया। अदालत ने कहा कि यूनाइटेड किंगडम में हुई उपरोक्त सुलह बैठक को छोड़कर, कहीं भी आरोपित FIR में याचिकाकर्ता का कोई संदर्भ नहीं था।
अदालत ने कहा कि ऐसे तथ्यों पर विचार करते हुए यह स्पष्ट है कि जांच जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के अलावा और कुछ नहीं होगा, खासकर तब जब याचिकाकर्ता के खिलाफ IPC की धारा 498-ए के तहत क्रूरता करने का कोई आरोप नहीं है।
न्यायालय ने पायल शर्मा बनाम पंजाब राज्य (2024) के मामले पर भरोसा किया, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि वैवाहिक विवादों में रिश्तेदारों के झूठे आरोपों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए और वैवाहिक क्रूरता के मामलों में दूर के रिश्तेदारों को अत्यधिक आरोप में डालने के खिलाफ चेतावनी दी जानी चाहिए।
केस-टाइटल: सुमेश चड्ढा बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश और अन्य