पेंशन अनुच्छेद 31(1) के तहत संपत्ति, इसमें कोई भी हस्तक्षेप संविधान का उल्लंघन: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
सेवानिवृत्त सेनेटरी इंस्पेक्टर के पेंशन अधिकारों की रक्षा करते हुए जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने दोहराया है कि पेंशन एक कर्मचारी को मिलने वाला कड़ी मेहनत से अर्जित लाभ है, जो अनुच्छेद 31(1) के तहत “संपत्ति” है और इसमें कोई भी हस्तक्षेप संविधान के अनुच्छेद 31(1) का उल्लंघन होगा।
कर्मचारी के पेंशन संबंधी अधिकारों से जुड़े प्रश्नों से जुड़ी याचिका पर निर्णय लेते हुए जस्टिस एमए चौधरी की पीठ ने 'देवकीनंदन प्रसाद बनाम बिहार राज्य' (1971) और 'डीएस नाकारा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया' (1983) का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “..हमारा मानना है कि याचिकाकर्ता का पेंशन प्राप्त करने का अधिकार अनुच्छेद 31(1) के तहत संपत्ति है और केवल एक कार्यकारी आदेश द्वारा राज्य के पास इसे रोकने का कोई अधिकार नहीं है। इसी तरह, उक्त दावा भी अनुच्छेद 19(1)(f) के अंतर्गत संपत्ति है और यह अनुच्छेद 19 के उप-अनुच्छेद (5) द्वारा सुरक्षित नहीं है। इसलिए, यह इस प्रकार है कि 12 जून, 1968 का आदेश, जिसमें याचिकाकर्ता को पेंशन प्राप्त करने के अधिकार से वंचित किया गया है, संविधान के अनुच्छेद 19(1)(f) और 31(1) के अंतर्गत याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकार को प्रभावित करता है, और इस प्रकार अनुच्छेद 32 के अंतर्गत रिट याचिका विचारणीय है।”
न्यायालय की टिप्पणी
मामले में पेश सभी पक्षों की प्रस्तुतियों की सावधानीपूर्वक जांच करने पर जस्टिस चौधरी ने पेंशन अधिकारों पर अच्छी तरह से स्थापित कानूनी स्थिति को स्वीकार किया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला दिया्र जिन्होंने बार-बार पेंशन को सेवा के माध्यम से अर्जित अधिकार के रूप में मान्यता दी है, न कि केवल सरकारी अनुदान के रूप में।
न्यायालय ने दर्ज किया कि "..पेंशन का अधिकार केवल कार्यकारी आदेश या प्रशासनिक निर्देश द्वारा नहीं छीना जा सकता है...पेंशन और ग्रेच्युटी केवल नियोक्ता द्वारा उदारता से दिए जाने वाले उपहार नहीं हैं, बल्कि कर्मचारी अपनी लंबी, निरंतर, वफादार और बेदाग सेवा के आधार पर इन लाभों को अर्जित करता है।"
मामले के विवरण की जांच करते हुए पीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता ने 20 से अधिक वर्षों तक लगन से सेवा की है, और सैनिटरी इंस्पेक्टर की भूमिका से जुड़ी सभी जिम्मेदारियों को पूरा किया है। इस पूरी अवधि में सरकार द्वारा उनकी सेवा को स्वीकार किया जाना निर्विवाद है, न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि स्पर्श पोर्टल पर पद को औपचारिक रूप से स्वीकृत करने में सरकार की ओर से किसी भी प्रकार की प्रशासनिक देरी या चूक का उपयोग शफी को उनकी उचित पेंशन से वंचित करने के लिए नहीं किया जा सकता।
पीठ ने टिप्पणी की,
"प्रतिवादी दो दशकों से अधिक समय तक इस मामले पर सोते रहे और उन्होंने याचिकाकर्ता की सेवाएं स्वच्छता निरीक्षक के रूप में लीं और अब उन्हें यह कहकर यू-टर्न लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती कि याचिकाकर्ता द्वारा धारण किया गया पद सक्षम प्राधिकारी द्वारा स्वीकृत नहीं था।"
याचिकाकर्ता के पेंशन लाभों को अस्वीकार करने वाले सरकार के संचार को रद्द करते हुए न्यायालय ने अधिकारियों को स्पर्श पोर्टल के माध्यम से उचित समीक्षा करने और स्वच्छता निरीक्षक के रूप में प्राप्त अंतिम वेतन के आधार पर गणना की गई ग्रेच्युटी सहित उनके सभी पेंशन लाभ जारी करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: मोहम्मद शफी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया
साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (जेकेएल)