एक बार शिकायतकर्ता का बयान सीआरपीसी की धारा 200 के तहत दर्ज हो जाने के बाद मजिस्ट्रेट धारा 156(3) के तहत एफआईआर दर्ज करने के निर्देश नहीं दे सकते: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2024-06-25 12:23 GMT

शिकायतों को निपटाने के दौरान सीआरपीसी की धारा 156(3) और 200 के तहत मजिस्ट्रेट की शक्तियों के बीच अंतर को पुष्ट करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि धारा 200 के तहत शिकायतकर्ता का बयान दर्ज करना धारा 156(3) के तहत एफआईआर आदेश जारी करने पर रोक लगाता है।

M/S Sas Infratech Pvt. Ltd. अपीलकर्ता(ओं) बनाम तेलंगाना राज्य और अन्य का हवाला देते हुए जस्टिस राजेश ओसवाल ने दोहराया,

“जब मजिस्ट्रेट अपने न्यायिक विवेक का प्रयोग करते हुए सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत जांच का निर्देश देता है तो यह नहीं कहा जा सकता कि उसने किसी अपराध का संज्ञान लिया है। यह तभी संभव है जब मजिस्ट्रेट अपने विवेक का प्रयोग करने के बाद धारा 200 का सहारा लेकर सीआरपीसी के अध्याय XV के तहत प्रक्रिया का पालन करना पसंद करता है, तभी उसे अपराध का संज्ञान लेने वाला कहा जा सकता है।

यह मामला प्रतिवादी सोमी देवी द्वारा याचिकाकर्ता विनोद कुमार के खिलाफ दायर की गई शिकायत से उत्पन्न हुआ, जिसमें उन पर धारा 336 और 304-ए आईपीसी के तहत अपराध करने का आरोप लगाया गया। किश्तवाड़ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) के समक्ष दर्ज की गई शिकायत के बाद सीजेएम के आदेश के बाद एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें एसएचओ को धारा 156(3) सीआरपीसी के तहत एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया गया।

कुमार का प्रतिनिधित्व कौशल परिहार ने करते हुए कहा कि सीजेएम के आदेश और उसके बाद की एफआईआर को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि एक बार मजिस्ट्रेट ने शिकायतकर्ता का बयान धारा 200 सीआरपीसी के तहत दर्ज कर लिया था, उसके बाद धारा 156(3) सीआरपीसी के तहत निर्देश जारी करना अनुचित था। उन्होंने तर्क दिया कि अपराध का संज्ञान पहले ही लिया जा चुका है। इसलिए, धारा 156(3) के तहत प्रक्रिया लागू नहीं होती।

प्रतिवादी के वकील सिद्धांत गुप्ता ने माना कि धारा 156(3) सीआरपीसी के तहत निर्देश धारा 200 सीआरपीसी के तहत शिकायतकर्ता के बयान दर्ज करने के बाद जारी नहीं किए जाने चाहिए।

जस्टिस ओसवाल ने वकीलों की बात सुनने और रिकॉर्ड की जांच करने के बाद याचिकाकर्ता के तर्कों में योग्यता पाई। उन्होंने कहा कि मजिस्ट्रेट ने वास्तव में धारा 200 सीआरपीसी के तहत शिकायतकर्ता का बयान दर्ज किया और बाद में एफआईआर दर्ज करने के लिए एसएचओ को धारा 156(3) सीआरपीसी के तहत निर्देश जारी किया।

धारा 200 सीआरपीसी का हवाला देते हुए जस्टिस ओसवाल ने इस बात पर जोर दिया कि एक बार जब मजिस्ट्रेट किसी अपराध का संज्ञान ले लेता है और शिकायतकर्ता का बयान दर्ज कर लेता है तो धारा 156(3) सीआरपीसी के तहत आगे के निर्देश दिए जाते हैं। जारी नहीं किया जा सकता। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस तरह के निर्देश केवल पूर्व-संज्ञान चरण में ही स्वीकार्य हैं।

इन टिप्पणियों के आधार पर हाईकोर्ट ने सीजेएम किश्तवाड़ के आदेश के साथ-साथ एफआईआर रद्द कर दी। न्यायालय ने सीजेएम को कानून के अनुसार शिकायत पर आगे बढ़ने का निर्देश दिया, इस बात पर जोर देते हुए कि प्रक्रिया जारी करने से पहले आरोपी को सुनवाई का कोई अधिकार नहीं है।

केस टाइटल: विनोद कुमार बनाम सोमी देवी

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