बिना आधिकारिक प्रतिनियुक्ति के उच्च अध्ययन के दौरान अनधिकृत अनुपस्थिति की अवधि के लिए कोई वेतन देय नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस संजय परिहार की खंडपीठ ने कहा कि बिना आधिकारिक प्रतिनियुक्ति या अनुमति के पोस्ट-ग्रेजुएट अध्ययन करने पर सरकारी कर्मचारी जम्मू-कश्मीर सिविल सेवा विनियम, 1956 के अनुच्छेद 44-ए के तहत वेतन पाने के हकदार नहीं होते।
पृष्ठभूमि तथ्य
प्रतिवादियों को 28.10.2011 के सरकारी आदेश संख्या 592-एचएमई, 2011 के तहत जम्मू-कश्मीर के स्वास्थ्य विभाग में सहायक शल्य चिकित्सक और चिकित्सा अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था। अपनी नियुक्ति के समय दोनों प्रतिवादी पहले से ही सरकारी मेडिकल कॉलेज (GMC), जम्मू में पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल कोर्स कर रहे थे। उन्होंने स्वास्थ्य सेवा निदेशालय में शारीरिक रूप से कार्यभार ग्रहण नहीं किया। प्रतिवादी नंबर 1 ने GMC जम्मू के प्रधानाचार्य के माध्यम से अपनी कार्यभार ग्रहण रिपोर्ट प्रस्तुत की, जबकि प्रतिवादी नंबर 2 ने 15.11.2011 को लेह के उपायुक्त कार्यालय में औपचारिक रूप से कार्यभार ग्रहण किया। हालांकि, GMC जम्मू में अपनी पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई जारी रखी। बाद में प्रतिवादी नंबर 2 को 2014 में निदेशालय में कार्यभार ग्रहण करने के लिए विस्तार दिया गया।
प्रतिवादियों को क्रमशः जून और अक्टूबर, 2013 में अपने कोर्स पूरा करने के बाद GMC जम्मू से कार्यमुक्त कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने स्वास्थ्य सेवा निदेशालय में अपनी कार्यभार ग्रहण रिपोर्ट प्रस्तुत की और उन्हें सहायक शल्य चिकित्सक/चिकित्सा अधिकारी के पद पर नियुक्त किया गया। हालांकि, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के अधिकारियों (याचिकाकर्ताओं) ने प्रतिवादियों को उनके पोस्ट ग्रेजुएट अध्ययन की अवधि के लिए उनके वेतन और भत्ते का भुगतान नहीं किया।
भुगतान न किए जाने से व्यथित होकर प्रतिवादियों ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT), जम्मू पीठ के समक्ष ओए नंबर 1330/2021 दायर किया। उन्होंने इस अवधि के लिए उनके वेतन जारी करने का निर्देश देने की मांग की। उन्होंने जम्मू-कश्मीर सिविल सेवा विनियम, 1956 के अनुच्छेद 44-ए के तहत पात्रता का दावा किया। साथ ही अन्य समान स्थिति वाले डॉक्टरों के साथ समानता का हवाला दिया, जिन्हें पहले ऐसे लाभ दिए गए। न्यायाधिकरण ने ओए को स्वीकार कर लिया। इसने माना कि प्रतिवादियों का मामला अनुच्छेद 44-ए के अंतर्गत आता है और याचिकाकर्ताओं को वेतन और भत्ते देने का निर्देश दिया।
इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि प्रतिवादियों ने कार्यभार ग्रहण करने की औपचारिकता पूरी करने के बाद नियोक्ता की अनुमति के बिना अपनी सेवाएं छोड़ दीं और सरकारी मेडिकल कॉलेज, जम्मू में पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रम जारी रखा। इसलिए वे अपनी अनधिकृत अनुपस्थिति की अवधि के लिए सहायक शल्य चिकित्सक/चिकित्सा अधिकारी के पद से जुड़े वेतन और भत्ते के लाभ के हकदार नहीं थे। इसके अलावा, 1956 के विनियम के अनुच्छेद 44-ए के प्रावधान मामले में लागू नहीं हुए।
दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने दलील दी कि न्यायाधिकरण द्वारा पारित निर्णय सही था। यह तर्क दिया गया कि 1956 के विनियमों के अनुच्छेद 44-ए के स्पष्ट प्रावधानों के अनुसार, राज्य के प्रशिक्षण विद्यालयों, महाविद्यालयों, संस्थानों में प्रतिनियुक्त सरकारी कर्मचारी, ऐसे प्रशिक्षण/शिक्षण पाठ्यक्रमों की अवधि के दौरान, वे वेतन और भत्ते प्राप्त करने के हकदार होंगे, जो उन्हें ऐसे प्रशिक्षण में प्रतिनियुक्ति के बिना प्राप्त होते।
न्यायालय के निष्कर्ष
न्यायालय ने पाया कि न्यायाधिकरण जम्मू-कश्मीर सिविल सेवा विनियम, 1956 के अनुच्छेद 44-ए के वास्तविक दायरे को लागू करने में विफल रहा। न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह प्रावधान केवल तभी लागू होता है, जब किसी सरकारी कर्मचारी को ऐसे प्रशिक्षण या शिक्षण पाठ्यक्रमों के लिए आधिकारिक रूप से प्रतिनियुक्त किया जाता है, जो उसके तत्काल कार्य से संबंधित हों और उस पद के लिए आवश्यक योग्यता न हों। अनुच्छेद 44-ए का प्रावधान स्पष्ट रूप से उच्च अध्ययन या आठ सप्ताह से अधिक समय तक चलने वाले विशिष्ट व्यावसायिक प्रशिक्षण वाले पाठ्यक्रमों को बाहर करता है।
यह भी पाया गया कि प्रतिवादियों को सरकार द्वारा पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स के लिए कभी भी नियुक्त नहीं किया गया। वे अपनी नियुक्ति के समय से ही इन कोर्स में संलग्न थे और उन्होंने शारीरिक रूप से अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करने का निर्णय लिया। इसलिए उनका मामला अनुच्छेद 44-ए के अंतर्गत नहीं आता, बल्कि यह सेवा से अनधिकृत अनुपस्थिति का मामला था।
न्यायालय ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर बनाम जावेद इकबाल के मामले में दिए गए निर्णय का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया कि अनुच्छेद 44-ए केवल उन प्रशिक्षणों/पाठ्यक्रमों के दौरान वेतन की अनुमति देता है, जो उनके तत्काल और वर्तमान कार्य प्रोफ़ाइल से संबंधित हैं, लेकिन यह आठ सप्ताह से अधिक के उच्च या विशिष्ट पाठ्यक्रमों को शामिल नहीं करता है।
न्यायालय ने यह माना कि प्रतिवादी, जिन्होंने अभी तक अपनी परिवीक्षा पूरी नहीं की है, जम्मू-कश्मीर सिविल सेवा (अवकाश) नियम, 1979 के नियम 61 और 62 के तहत अनुमत अध्ययन अवकाश के लिए आवेदन करने के पात्र नहीं है। इस प्रकार, उच्च अध्ययन के दौरान उनकी अनुपस्थिति अनधिकृत रही। इस अवधि के लिए वेतन का दावा करना उचित नहीं था।
न्यायालय ने सरकार को निर्देश दिया कि वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे कर्मचारियों के मामलों को विनियमित करने के लिए एक उचित तंत्र स्थापित करे। जो कर्मचारी या डॉक्टर नौकरी से संबंधित उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए भी सेवा छोड़ देते हैं या अनधिकृत रूप से अनुपस्थित रहते हैं, उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए चयनित कर्मचारियों को नियोक्ता से पूर्व अनुमति लेनी होगी।
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर द्वारा दायर रिट याचिका स्वीकार की गई और न्यायालय ने न्यायाधिकरण का फैसला रद्द कर दिया।
Case Name : Union Territory of Jammu & Kashmir & Others v. Dr. Anju Kumari & Another