पोती के आरोपों पर घिरे 75 वर्षीय दादा को जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट से जमानत, अदालत बोली- संलिप्तता प्रथम दृष्टया संदिग्ध
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने एक अत्यंत संवेदनशील मामले में 75 वर्षीय बुजुर्ग को जमानत प्रदान की, जिन पर उनकी ही पोती ने POCSO कानून के तहत यौन उत्पीड़न और बलात्कार के गंभीर आरोप लगाए। अदालत ने कहा कि ट्रायल के दौरान अभियोजन की पूरी नींव ही ढह गई है और ऐसे में आरोपी को जेल में बनाए रखना कानूनन उचित नहीं है।
जस्टिस संजय धर ने जमानत याचिका पर फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि POCSO Act के तहत मौजूद वैधानिक अनुमान पूर्णतः अटल नहीं हैं। यदि मुकदमे के दौरान मूल तथ्य ही टिक नहीं पाते तो केवल आरोपों की गंभीरता के आधार पर जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता।
अदालत ने टिप्पणी की कि केवल इस आधार पर कि आरोपी पर आजीवन कारावास तक की सजा वाले गंभीर अपराधों का मुकदमा चल रहा है, उसे जमानत से वंचित नहीं किया जा सकता विशेषकर तब जब प्रथम दृष्टया उसकी संलिप्तता अत्यंत संदिग्ध प्रतीत होती हो।
मामले की पृष्ठभूमि
मामले की शुरुआत दिसंबर, 2024 में दर्ज एक शिकायत से हुई, जिसमें अभियोजन पक्ष की युवती ने आरोप लगाया कि उसके दादा ने उसके साथ बलात्कार किया और लंबे समय तक उसका यौन शोषण किया। इस शिकायत के आधार पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 64 और POCSO Act की धाराओं 5(n) और 6 के तहत FIR दर्ज की गई। रिश्ते की निकटता को देखते हुए मामला अत्यंत गंभीर माना गया।
जांच के दौरान पीड़िता का मेडिकल टेस्ट हुआ, DNA सैंपल लिए गए और मजिस्ट्रेट के समक्ष उसका बयान दर्ज किया गया, जिसमें उसने आरोपों की पुष्टि की थी। उसने यह भी दावा किया कि घटना का एक वीडियो मौजूद है, जो बाद में सार्वजनिक हुआ।
हालांकि ट्रायल के दौरान जब पीड़िता गवाह के रूप में अदालत के समक्ष पेश हुई तो मामले ने पूरी तरह से अलग मोड़ ले लिया।
अदालत की अहम टिप्पणियां
हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन को सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब पीड़िता ने अदालत में अपने दादा के खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों से मुकरते हुए कहा कि उसने गुस्से और आवेग में शिकायत दर्ज कराई थी। उसने स्पष्ट रूप से बयान दिया कि उसके दादा ने कभी उसके साथ बलात्कार या यौन उत्पीड़न नहीं किया।
हालांकि, अभियोजन पक्ष ने उसे शत्रुतापूर्ण गवाह घोषित कर कड़ी क्रॉस एक्जामिनेशन की, लेकिन वह अपने बयान पर कायम रही। कथित वीडियो साक्ष्य के संबंध में भी उसने कहा कि वीडियो में दिखाई देने वाली लड़की वह नहीं है, भले ही उसमें आरोपी नजर आता हो। अदालत ने यह भी नोट किया कि वीडियो में लड़की की पहचान स्पष्ट नहीं है, जैसा कि ट्रायल कोर्ट पहले ही दर्ज कर चुका था।
DNA रिपोर्ट को लेकर अदालत ने कहा कि उससे भी आरोपी के खिलाफ कोई सामग्री सामने नहीं आती, क्योंकि रिपोर्ट में केवल यह स्थापित हुआ कि सैंपल स्वयं पीड़िता के थे।
परिवारिक पृष्ठभूमि और संदेह
अदालत ने पीड़िता के पिता के बयान पर भी गौर किया, जिसमें उन्होंने किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा दबाव और धमकी की बात कही थी। उन्होंने यह भी बताया कि पूर्व में पीड़िता द्वारा अन्य नजदीकी रिश्तेदारों पर लगाए गए ऐसे ही आरोप मुकदमों में टिक नहीं पाए। हाईकोर्ट ने कहा कि इन तथ्यों से पूरे मामले की उत्पत्ति पर गंभीर संदेह उत्पन्न होता है।
POCSO के तहत अनुमान पूर्ण नहीं
जस्टिस धर ने दोहराया कि POCSO Act की धाराएं 29 और 30 भले ही अभियुक्त के खिलाफ अनुमान स्थापित करती हों, लेकिन वे प्रत्यावर्तनीय हैं। जब स्वयं पीड़िता और अन्य प्रमुख गवाह अभियोजन के समर्थन में खड़े नहीं होते तो ऐसे अनुमानों को यांत्रिक रूप से लागू नहीं किया जा सकता।
अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी लगभग एक वर्ष से हिरासत में है। सभी महत्वपूर्ण गवाहों के बयान दर्ज हो चुके हैं। उसकी आयु 75 वर्ष से अधिक है और वह कई बीमारियों से पीड़ित है। ऐसे में उसके द्वारा साक्ष्य से छेड़छाड़ की कोई वास्तविक आशंका नहीं बनती।
अंत में अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जमानत से इनकार समाज की अंतरात्मा को संतुष्ट करने या आरोपी को सबक सिखाने के उद्देश्य से नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह पूर्व-ट्रायल सजा के समान होगा, जो कानूनन अस्वीकार्य है।
इन सभी कारणों से हाईकोर्ट ने आरोपी दादा को सख्त शर्तों के साथ जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। साथ ही यह स्पष्ट किया कि जमानत चरण पर की गई टिप्पणियां ट्रायल के अंतिम निर्णय को प्रभावित नहीं करेंगी।