CPC के आदेश 26 R.9 में विवादित मामलों को स्पष्ट करने के लिए आयुक्त की नियुक्ति की अनुमति केवल तभी दी गई जब साक्ष्य अनिर्णायक हों: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2025-03-15 08:28 GMT
CPC के आदेश 26 R.9 में विवादित मामलों को स्पष्ट करने के लिए आयुक्त की नियुक्ति की अनुमति केवल तभी दी गई जब साक्ष्य अनिर्णायक हों: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने इस बात की पुष्टि की कि सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 26 नियम 9 के तहत स्थानीय जांच के लिए आयुक्त की नियुक्ति केवल तभी की जा सकती है, जब ट्रायल कोर्ट के समक्ष साक्ष्य अनिर्णायक हों और स्पष्टीकरण की आवश्यकता हो।

जस्टिस राजेश ओसवाल ने जम्मू के नगर मजिस्ट्रेट का आदेश खारिज कर दिया, जिसमें दो भाइयों के बीच विवादित भूमि का सीमांकन करने के लिए तहसीलदार को आयुक्त नियुक्त किया गया। उन्होंने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने समय से पहले अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने में गलती की।

यह मामला याचिकाकर्ता सराज दीन और प्रतिवादी लियाकत अली के बीच भूमि विवाद से उपजा है। दोनों जम्मू के निवासी हैं। याचिकाकर्ता ने पहले भूमि के टुकड़े के संबंध में स्थायी निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा दायर किया था जो ट्रायल कोर्ट के समक्ष लंबित था।

इसके बाद प्रतिवादी ने अलग मुकदमा दायर किया, जिसमें याचिकाकर्ता को उसी भूमि पर उसके कब्जे में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिए स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई। प्रतिवादी ने आदेश 26 नियम 9 CPC के तहत आवेदन भी दायर किया, जिसमें संबंधित भूमि का सीमांकन करने के लिए आयुक्त की नियुक्ति का अनुरोध किया गया। ट्रायल कोर्ट ने दोनों मुकदमों को जोड़ते हुए स्थानीय जांच करने और भूमि का सीमांकन करने के लिए तहसीलदार को आयुक्त नियुक्त किया।

याचिकाकर्ता ने इस आदेश को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि आयुक्त की नियुक्ति अनावश्यक थी, क्योंकि दोनों मुकदमों का फैसला समान साक्ष्य के आधार पर किया जा सकता था। उस स्तर पर तथ्यों के स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं थी। याचिकाकर्ता के वकील, अंकुश मन्हास ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने आदेश 26 नियम 9 CPC के तहत आयुक्त की नियुक्ति करके गलती की, क्योंकि ऐसी नियुक्ति के लिए चरण अभी तक नहीं पहुंचा था।

उन्होंने तर्क दिया कि अदालत को पहले पक्षों को साक्ष्य पेश करने की अनुमति देनी चाहिए थी। केवल तभी जब साक्ष्य अनिर्णायक हो आगे स्पष्टीकरण के लिए आयुक्त की नियुक्ति की जा सकती थी।

जस्टिस ओसवाल ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद आदेश 26 नियम 9 CPC और आदेश 39 नियम 7 CPC के दायरे में विस्तार से चर्चा की और बताया कि आदेश 39 नियम 7 के तहत संपत्ति के निरीक्षण के लिए आयुक्त नियुक्त किया जा सकता है, जबकि आदेश 26 नियम 9 के तहत विवादित किसी मामले को स्पष्ट करने संपत्ति के बाजार मूल्य का पता लगाने या मध्यवर्ती लाभ या क्षति का निर्धारण करने के लिए स्थानीय जांच के लिए आयुक्त नियुक्त किया जा सकता है।

अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि आदेश 26 नियम 9 के तहत “जांच” शब्द का दायरा आदेश 39 नियम 7 के तहत “निरीक्षण” से कहीं अधिक व्यापक है।

अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में ट्रायल कोर्ट ने खुद ही निष्कर्ष निकाला कि दोनों मुकदमों का निपटारा समान साक्ष्य के आधार पर किया जा सकता है। अदालत ने रेखांकित किया कि चूंकि पक्षों ने अभी तक अपने साक्ष्य पेश नहीं किए हैं, इसलिए अदालत के समक्ष ऐसा कोई मुद्दा नहीं था, जिसके लिए स्थानीय जांच के माध्यम से स्पष्टीकरण की आवश्यकता हो।

न्यायालय ने मंजूर अहमद बनाम असद उल्लाह (2007) के फैसले का भी हवाला दिया, जहां यह माना गया कि आदेश 26 नियम 9 के तहत स्पष्टीकरण मांगने का चरण मुद्दों के निर्धारण के बाद ही उत्पन्न होता है, जो वर्तमान मामले में अभी तक नहीं पहुंचा।

इस मामले को दर्शन सिंह बनाम इंद्रू देवी से अलग करते हुए, जहां आयुक्त को निरीक्षण के लिए आदेश 39 नियम 7 CPC के तहत नियुक्त किया गया, न कि जांच के लिए आदेश 26 नियम 9 के तहत।

जस्टिस ओसवाल ने निष्कर्ष निकाला कि ट्रायल कोर्ट ने समय से पहले आदेश 26 नियम 9 CPC के तहत आयुक्त नियुक्त करके क्षेत्राधिकार संबंधी त्रुटि की थी जब कोई सबूत पेश नहीं किया गया और किसी मुद्दे को स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं थी।

इन टिप्पणियों के मद्देनजर न्यायालय ने तहसीलदार को आयुक्त नियुक्त करने का आदेश खारिज कर दिया। हालांकि, इसने मुकदमों के एकीकरण में हस्तक्षेप नहीं किया, जिससे ट्रायल कोर्ट को सामान्य साक्ष्य के साथ आगे बढ़ने की अनुमति मिली।

केस टाइटल: सराज दीन बनाम लियाकत

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