जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने बड़े पैमाने पर अंतर्राष्ट्रीय क्रिप्टोकरेंसी घोटाले की साजिश रचने के आरोपी व्यक्ति को अग्रिम ज़मानत देने से इनकार किया
क्रिप्टो-करेंसी धोखाधड़ी के एक मामले में जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने नरेश कुमार गुलिया की अग्रिम ज़मानत याचिका खारिज की। गुलिया पर एक बड़ा फ़र्ज़ी क्रिप्टो पोंजी घोटाला रचने का आरोप है जिसने भारत और अन्य जगहों पर कई निवेशकों को ठगा।
गिरफ़्तारी से पहले ज़मानत की उनकी याचिका खारिज करते हुए जस्टिस मोहम्मद यूसुफ़ वानी ने कहा,
“याचिकाकर्ता पर अपराध की आय से जुड़े होने के कारण आर्थिक प्रकृति के जघन्य अपराधों में शामिल होने का आरोप है। उस पर आरोप है कि उसने हज़ारों लोगों को उनकी मेहनत की कमाई को ज़्यादा मुनाफ़े/कमीशन की झूठी उम्मीद के नाम पर उन्हें फ़र्ज़ी "क्रिप्टो करेंसी/इमोलिएंट कॉइन" पोंजी स्कीम में फंसाकर ठगा है।”
ज़मानत याचिका प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) की धारा 3 और 4 के तहत दर्ज की गई प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ED) से उत्पन्न हुई थी। इस मामले की शुरुआत लेह पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 के तहत दर्ज FIR से हुई, जो अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट, लेह की शिकायत पर शुरू हुई, जिसमें ए.आर. मीर और अजय कुमार चौधरी द्वारा संचालित क्रिप्टो कॉइन व्यवसाय के माध्यम से बड़े पैमाने पर सार्वजनिक धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया था।
याचिकाकर्ता सेवानिवृत्त सैन्यकर्मी है। उसने दावा किया कि उसने क्रिप्टो उद्यम में अनजाने में निवेश किया था। संबंधित कंपनियों पर उसका कोई स्वामित्व या प्रत्यक्ष नियंत्रण नहीं था। उन्होंने तर्क दिया कि उन्हें केवल सह-अभियुक्तों के बयानों के आधार पर झूठा फंसाया गया। जनवरी 2025 में देहरादून स्थित उनके आवास पर छापेमारी होने तक उन्हें तलब नहीं किया गया। जमानत प्राप्त सह-अभियुक्तों के साथ समानता का हवाला देते हुए और पूर्ण सहयोग की पेशकश करते हुए उन्होंने नव-अधिनियमित भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 482 के तहत गिरफ्तारी से सुरक्षा की मांग की।
प्रवर्तन निदेशालय ने जमानत याचिका का कड़ा विरोध किया और गुलिया को धोखाधड़ी का "असली मास्टरमाइंड" करार दिया, जिसने "द एमोलिएंट कॉइन लिमिटेड" और बाद में "टेक कॉइन लिमिटेड" के बैनर तले पूरी पोंजी योजना को अंजाम दिया था।
ED के अनुसार,
"याचिकाकर्ता ने न केवल भारत से बल्कि दक्षिण एशियाई देशों से भी सैकड़ों निर्दोष लोगों को अतिरिक्त कमीशन के साथ 40% तक के अवास्तविक रिटर्न का लालच देकर नकली क्रिप्टो एमोलिएंट कॉइन खरीदने के लिए बेईमानी से लुभाया।"
ED ने आरोप लगाया कि गुलिया और उसके साथियों ने भारत, वियतनाम, कंबोडिया और फिलीपींस में आयोजित फर्जी मोबाइल एप्लिकेशन और सेमिनारों के जरिए यह योजना चलाई। 2024 में जम्मू, लेह और हरियाणा के विभिन्न स्थानों पर विस्तृत तलाशी के बाद आपत्तिजनक दस्तावेज जब्त किए गए। उन्होंने बताया कि ₹91 लाख नकद बरामद किए गए और अन्य सबूतों से पता चला कि गुलिया के पास ₹6.05 करोड़ की आपराधिक आय थी, जिसमें सह-आरोपियों से उसके नामित खातों में प्राप्त ₹57 लाख भी शामिल थे।
ED के वकील ने तर्क दिया कि PMLA की धारा 50 के तहत कई समन के बावजूद, याचिकाकर्ता जांच में शामिल नहीं हुआ।
न्यायालय की टिप्पणियां:
अपने विस्तृत आदेश में जस्टिस वानी ने आरोपों की गंभीरता पर ध्यान दिया और सिद्धराम सतलिंगप्पा म्हेत्रे बनाम महाराष्ट्र राज्य और सुशीला अग्रवाल बनाम राज्य (दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) सहित अन्य मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मार्गदर्शक उदाहरणों का हवाला दिया।
अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक महत्व का हवाला देते हुए न्यायालय ने माना कि अग्रिम ज़मानत मनमानी गिरफ्तारी के विरुद्ध सुरक्षा कवच है। हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ऐसी राहत सावधानी से दी जानी चाहिए, खासकर आर्थिक अपराधों में जो जनता के विश्वास को प्रभावित करते हैं।
न्यायालय ने टिप्पणी की,
"याचिकाकर्ता पर एक फर्जी क्रिप्टो-करेंसी पोंजी योजना के माध्यम से उच्च रिटर्न के झूठे वादे के तहत हजारों लोगों को उनकी मेहनत की कमाई से वंचित करने का लालच देकर ठगने का आरोप है।"
न्यायालय ने क्षेत्राधिकार के मुद्दे पर यह भी कहा कि याचिकाकर्ता जम्मू पीठ के समक्ष ज़मानत याचिका दायर करने का औचित्य सिद्ध करने वाला एक विश्वसनीय क्षेत्रीय संबंध स्थापित करने में विफल रहा है।
न्यायालय ने कहा,
"मामले में तार्किक और परिणामोन्मुखी जांच के लिए जांच एजेंसी के समक्ष हिरासत में आरोपी की उपस्थिति अनिवार्य प्रतीत होती है।"
न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया,
"अग्रिम ज़मानत का उद्देश्य उन लोगों की रक्षा करना है, जिन्हें झूठे और तुच्छ आधारों पर गिरफ्तारी की वास्तविक आशंका है। यह मामला उस विश्वास को प्रेरित नहीं करता है।"
PMLA की धारा 45 के तहत दो शर्तों के आवेदन पर विचार करते हुए अदालत ने माना कि अग्रिम चरण में भी ज़मानत पर वैधानिक प्रतिबंध समान रूप से लागू होता है।
अदालत ने कहा,
"ऐसा प्रतीत होता है कि इस आवेदन में कोई दम नहीं है, जिसे खारिज किया जाता है।"
इसके साथ ही अदालत ने गुलिया को गिरफ्तारी से कोई भी सुरक्षा देने से इनकार कर दिया।
Case Title: Naresh Kumar Gulia Vs Directorate of Enforcement