अभियोजन न करने के कारण शिकायत खारिज करना अंतिम आदेश, मजिस्ट्रेट के पास ऐसे मामलों को बहाल करने के लिए अंतर्निहित शक्तियां नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2024-07-08 07:13 GMT

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा है कि शिकायतकर्ता की गैर-हाजिरी के कारण खारिज की गई शिकायत बहाल करने के लिए मजिस्ट्रेट अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं कर सकता।

जस्टिस विनोद चटर्जी कौल की पीठ ने घोषणा की कि इस तरह की खारिजियां अंतिम आदेश हैं। उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPc) में किसी भी प्रावधान की अनुपस्थिति पर जोर दिया, जो ट्रायल कोर्ट को यह शक्ति प्रदान करता है।

यह मामला जिया दरक्षन द्वारा मेहराजुद्दीन अंद्राबी के खिलाफ निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट (NI Act) की धारा 138 के तहत दायर की गई शिकायत से शुरू हुआ। ट्रायल कोर्ट ने शुरू में शिकायत का संज्ञान लिया और 6 मार्च 2017 को अंद्राबी के खिलाफ प्रक्रिया जारी की।

इस आदेश को अंद्राबी ने श्रीनगर के एडिशनल सेशन जज के समक्ष पुनर्विचार याचिका में चुनौती दी। हालांकि, एडिशनल सेशन जज ने 24 जुलाई, 2018 को ट्रायल कोर्ट का आदेश बरकरार रखा और मामले को आगे की कार्यवाही के लिए ट्रायल कोर्ट को वापस भेज दिया।

इसके बाद दरक्षन के अदालत में पेश न होने के कारण सितंबर 2018 में शिकायत खारिज कर दी। जवाब में दरक्षन ने शिकायत को बहाल करने के लिए एक आवेदन दायर किया, जिसे ट्रायल कोर्ट ने स्वीकार कर लिया और शिकायत उसकी मूल स्थिति में बहाल की।

एडवोकेट परवेज नजीर द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए अंद्राबी ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट का आदेश प्रक्रिया का दुरुपयोग था। उन्होंने तर्क दिया कि CrPc ट्रायल कोर्ट को खारिज की गई शिकायत की समीक्षा करने या उसे बहाल करने का अधिकार नहीं देता। उन्होंने जोर देकर कहा कि गैरहाजिरी के कारण शिकायत खारिज करना अंतिम आदेश है। इसे बहाल करने का कोई अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र नहीं है।

दूसरी ओर वकील गुलजार अहमद द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए दरक्षन ने कहा कि शिकायत को बहाल करने का ट्रायल कोर्ट का निर्णय न्याय के हित में उचित और आवश्यक है।

जस्टिस कौल ने अभिलेखों की जांच की और पाया कि सीआरपीसी में लिपिकीय या अंकगणितीय त्रुटियों को सुधारने के अलावा मजिस्ट्रेट को अपने आदेशों पर पुनर्विचार करने या वापस लेने की अनुमति देने वाला कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि विशिष्ट वैधानिक प्राधिकरण की अनुपस्थिति के कारण खारिज की गई शिकायत को बहाल नहीं किया जा सकता।

पीठ ने रेखांकित किया,

"यहां यह उल्लेख किया जा सकता है कि शिकायतकर्ता की गैरहाजिरी के कारण शिकायत खारिज करना या उसी आधार पर आरोपी को बरी करना या दोषमुक्त करना अंतिम आदेश है। दंड प्रक्रिया संहिता में किसी विशिष्ट प्रावधान की अनुपस्थिति में मजिस्ट्रेट किसी अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं कर सकता।"

अदालत ने मेजर जनरल ए.एस. गौराया और अन्य बनाम एस.एन. ठाकुर और अन्य, एआईआर 1986 ने पुष्टि की कि ट्रायल कोर्ट के पास शिकायत को बहाल करने का अधिकार नहीं है।

जस्टिस कौल ने CrPc की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्तियों पर प्रकाश डाला, जिसका उपयोग संहिता के तहत आदेश को प्रभावी बनाने अदालत की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने और न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने के लिए किया जा सकता है।

इन निष्कर्षों के आलोक में न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के शिकायत को बहाल करने का आदेश रद्द करके निष्कर्ष निकाला। हालांकि इसने दरक्षन को अंद्राबी के खिलाफ किसी भी शिकायत के लिए उचित कानूनी उपाय करने की स्वतंत्रता दी, जैसा कि शुरू में खारिज की गई शिकायत में प्रस्तुत किया गया।

केस टाइटल- मेहराजुद्दीन अंद्राबी बनाम जिया दरक्षन।

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