Drugs & Cosmetics Act | औषधि निरीक्षक के पास पहले से ही सूचना उपलब्ध होने पर धारा 18-ए के तहत सूचना मांगने पर अभियोजन नहीं होगा: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम की धारा 18-ए के तहत आपराधिक शिकायत खारिज करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार जब धारा के तहत आवश्यक सूचना औषधि निरीक्षक के पास पहले से ही उपलब्ध हो जाती है तो गैर-निर्माता/एजेंट से इसकी मांग करना निरर्थक हो जाता है, जिससे अभियोजन कानूनी रूप से अस्थिर हो जाता है।
धारा 18-ए के अनुसार कोई भी व्यक्ति, जो औषधि या प्रसाधन सामग्री का निर्माता या अधिकृत वितरक नहीं है, उसे अनुरोध किए जाने पर निरीक्षक को उस व्यक्ति का नाम पता और अन्य प्रासंगिक विवरण प्रदान करना चाहिए, जिससे उसने औषधि या प्रसाधन सामग्री प्राप्त की है।
श्रीनगर के सरकारी मनोरोग अस्पताल में कार्यरत स्टोर कीपर की याचिका स्वीकार करते हुए जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने कहा,
“अधिनियम की धारा 18-ए के तहत अपेक्षित सूचना की उपलब्धता के कारण शिकायतकर्ता-प्रतिवादी के पास पहले से ही जानकारी थी और उक्त परिस्थितियों में याचिकाकर्ता से बाद में यानी ऐसी सूचना प्राप्त होने के बाद ऐसी सूचना मांगना अनावश्यक और अनुचित था।”
याचिकाकर्ता सैयद सरीर अहमद अंद्राबी पर दवाओं के निश्चित बैच के आपूर्तिकर्ता के विवरण का खुलासा करने में कथित रूप से विफल रहने का आरोप लगाया गया। यह आरोप दवा बैच के पुनः विश्लेषण के लिए पहले दिए गए निर्देश से उपजा था, जो बाद में गुणवत्ता मानकों को पूरा करने में विफल रहा जिसके कारण शिकायत दर्ज की गई।
याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता केंद्र सरकार की एजेंसी के जम्मू और कश्मीर के भीतर अपराधों की जांच और मुकदमा चलाने के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी। यह तर्क दिया कि केवल सीबीआई ही सीमित उद्देश्यों के लिए ऐसा कर सकती है।
यह भी तर्क दिया गया कि आवश्यक सूचना शिकायतकर्ता के पास पहले से ही उपलब्ध थी, जिससे याचिकाकर्ता से इसके लिए अनुरोध करना निरर्थक और अनावश्यक हो गया।
याचिकाकर्ता ने प्रक्रियागत खामियों की ओर भी ध्यान दिलाया, जिसमें प्रत्यक्ष जानकारी के बिना वकील द्वारा शिकायत दर्ज करना और संज्ञान लेने से पहले शिकायतकर्ता की जांच न करना शामिल है।
प्रतिवादियों ने आपराधिक शिकायत और संबंधित कार्यवाही को रद्द करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के तहत याचिका की स्थिरता के बारे में प्रारंभिक आपत्ति उठाई।
न्यायालय की टिप्पणियां:
याचिका की स्थिरता के संबंध में प्रतिवादियों की प्रारंभिक आपत्ति को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति वानी ने कहा,
“जिस नाम के तहत याचिका दायर की गई, वह पूरी तरह से प्रासंगिक नहीं है। न्यायालय को अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने से नहीं रोकता है, जो उसके पास है, जब तक कि कोई विशेष प्रक्रिया निर्धारित न हो जो प्रक्रिया प्रकृति में अनिवार्य है।”
गुण-दोष पर आते हुए न्यायालय ने कहा कि एक्ट की धारा 18-ए के तहत आवश्यक जानकारी पहले से ही शिकायतकर्ता के पास थी, जिससे उसके लिए बाद में मांग करना अनावश्यक हो गया।
न्यायालय ने टिप्पणी की,
"बाद में यानी ऐसी जानकारी प्राप्त होने के बाद याचिकाकर्ता से ऐसी जानकारी मांगना अनावश्यक और अनुचित था।"
न्यायालय ने फैसला सुनाया कि यदि याचिकाकर्ता ने फिर से जानकारी का खुलासा नहीं किया तो भी इसे धारा 18-ए के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। इसलिए आरोप गलत और कानूनी रूप से अपुष्ट है।
समन आदेश में प्रक्रियात्मक खामियों को उजागर करते हुए जस्टिस वानी ने कहा कि मजिस्ट्रेट मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने में विफल रहे और उन्होंने विशिष्ट आरोपों पर विचार नहीं किया।
पेप्सी फूड लिमिटेड और अन्य बनाम विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए न्यायालय ने आपराधिक मामले में अभियुक्त को समन करने की गंभीरता और मजिस्ट्रेट द्वारा ऐसा करने से पहले साक्ष्य की सावधानीपूर्वक जांच करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
इन टिप्पणियों के आलोक में न्यायालय ने शिकायत और उस पर शुरू की गई कार्यवाही को खारिज कर दिया, जिसमें विवादित आदेश भी शामिल है।
केस टाइटल- सैयद सरीर अहमद अंद्राबी बनाम भारत संघ