कोई भी प्रावधान CPC की धारा 151 के तहत पूर्ण न्याय करने की अंतर्निहित शक्तियों को सीमित या प्रभावित नहीं कर सकता: जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट
सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 151 के अधिदेश की पुष्टि करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाइकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि न्यायालयों के पास इस प्रावधान के तहत भी धारा 144 में वर्णित शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार है।
जस्टिस जावेद इकबाल वानी की पीठ ने समझाया,
“न्यायालय के किसी भी प्रावधान को उसके समक्ष पक्षों के बीच पूर्ण और संपूर्ण न्याय करने के अपने कर्तव्य के आधार पर न्यायालय में निहित इन अंतर्निहित शक्तियों को सीमित या प्रभावित करने वाला नहीं माना जाना चाहिए।”
पीठ ने रेखांकित किया कि इसमें आदेश को वापस लेने की क्षमता भी शामिल है, यदि यह पाया जाता है कि आदेश धोखाधड़ी के माध्यम से या मिलीभगत से प्राप्त किया गया।
यह मामला जम्मू के निवासी वीना गुर्टू और राजेश कुमार गुप्ता के बीच विवाद से उपजा था। गुर्टू ने गुप्ता के खिलाफ मुकदमा दायर किया, जिसमें उन्हें उनकी संपत्तियों को अलग करने वाली चारदीवारी की मरम्मत में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिए स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई। ट्रायल कोर्ट ने गुर्टू को मरम्मत करने की अनुमति देते हुए अंतरिम आदेश दिया लेकिन उन्हें दीवार की ऊंचाई बढ़ाने से रोक दिया।
अगली सुनवाई से पहले गुर्टू ने मुकदमा वापस लेने के लिए आवेदन दायर किया जिसे ट्रायल कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। हालांकि, गुप्ता ने तर्क दिया कि गुर्टू ने अंतरिम आदेश का उल्लंघन करते हुए दीवार की ऊंचाई बढ़ा दी थी। फिर परिणामों का सामना करने से बचने के लिए मुकदमा वापस ले लिया।
उन्होंने ट्रायल कोर्ट के समक्ष आवेदन दायर किया, जिसमें पहले से मौजूद दीवार की ऊंचाई को बहाल करने की मांग की गई। ट्रायल कोर्ट ने गुर्टू को दीवार की ऊंचाई बहाल करने का निर्देश देने के लिए धारा 151 सीपीसी के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करने की मांग करने वाला उनका आवेदन खारिज कर दिया, जिसके बाद गुप्ता ने हाइकोर्ट के समक्ष पुनर्विचार याचिका दायर की।
हाईकोर्ट की टिप्पणियां:
"एक्टस क्यूरी नेमिनम ग्रेवबिट" (न्यायालय के कार्य से किसी को नुकसान नहीं होगा) कहावत का हवाला देते हुए जस्टिस वानी ने न्यायालय के अपने कार्यों के कारण किसी पक्ष को होने वाले किसी भी नुकसान को रोकने के लिए न्यायालय के प्राथमिक कर्तव्य पर जोर दिया। साथ ही बताया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रतिवादी को दीवार की ऊंचाई के मुद्दे पर सुनवाई का मौका दिए बिना मुकदमा वापस लेना अनुचित था।
पीठ ने दर्ज किया,
"इस मामले में स्वीकार की गई तथ्यात्मक स्थिति के मद्देनजर, यह नहीं कहा जा सकता कि वादी/प्रतिवादी ने 22.09.2010 के ट्रायल कोर्ट के अंतरिम आदेश की आड़ में चारदीवारी की ऊंचाई बढ़ा दी और शरारत करके उसे पूरा करने के बाद ट्रायल कोर्ट के समक्ष मुकदमा वापस ले लिया। वह भी मुकदमे में तय की गई तारीख से एक सप्ताह पहले और विडंबना यह है कि ट्रायल कोर्ट ने इस तथ्य की अनदेखी करते हुए मुकदमा वापस लेने की अनुमति दे दी कि प्रतिवादी/याचिकाकर्ता मुकदमे में उपस्थित हो चुके हैं।”
सीपीसी की धारा 151 के प्रावधानों के तहत याचिकाकर्ता गुप्ता के आवेदन पर टिप्पणी करते हुए, जिसमें आरोपित आदेश पारित किया गया, पीठ ने कहा कि धारा 151 के प्रावधानों के तहत याचिकाकर्ताओं ने मूल रूप से ट्रायल कोर्ट के समक्ष कार्यवाही/मुकदमे की बहाली की मांग की।
धारा 151 सीपीसी के तहत धोखाधड़ी या मिलीभगत से प्राप्त आदेश को वापस लेने की अपनी अंतर्निहित शक्ति पर प्रकाश डालते हुए पीठ ने टिप्पणी की,
“धारा 151 के प्रावधानों के तहत भी अदालत को धारा 144 के तहत शक्ति प्राप्त है, जिसके तहत वह अपने द्वारा पारित आदेश को वापस ले सकती है, यदि आदेश को धोखाधड़ी करके प्राप्त किया गया हो या ऐसा आदेश प्राप्त करने के लिए मिलीभगत का इस्तेमाल किया गया हो।”
जफर इकबाल बनाम राजस्व बोर्ड और लाजवंती बनाम भारत संघ सहित कानूनी मिसालों से आकर्षित होकर न्यायालय ने बहाली के सिद्धांत में अंतर्निहित न्यायसंगत सिद्धांतों की पुष्टि की। इसने ट्रायल कोर्ट के फैसले को कानूनी रूप से अस्थिर माना और कहा कि इससे प्रतिवादियों के साथ न्याय में चूक हुई।
उक्त टिप्पणियों के मद्देनजर अदालत ने ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और उसे बहाली के मुद्दे पर नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश दिया, जिससे दोनों पक्षों को सुनवाई का अवसर मिले।
केस टाइटल: वीना गुर्टू बनाम राजेश कुमार गुप्ता