विभागीय चूक के कारण जिस उम्मीदवार की नियुक्ति में देरी हुई, उसे पदोन्नति की पात्रता से वंचित नहीं किया जा सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2024-08-07 11:04 GMT

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि विभागीय चूक के कारण जिस सीधी भर्ती में नियुक्ति में देरी हुई, उसे उसी चयन प्रक्रिया से अन्य उम्मीदवारों की नियुक्ति की तारीख से पूर्वव्यापी नियुक्ति या पदोन्नति पात्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।

इस विषय पर कानून को स्पष्ट करते हुए जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने कहा,

“किसी व्यक्ति को प्रशासनिक अधिकारियों की ओर से अपर्याप्तता या लापरवाही के कारण पीड़ित नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि निष्पक्षता का सिद्धांत यह निर्धारित करता है कि जिस उम्मीदवार जि चयन प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पास कर लिया और जिसकी नियुक्ति केवल प्रशासनिक लापरवाही के कारण रुकी हुई है, उसे अपने साथियों की तुलना में नुकसान में नहीं रखा जाना चाहिए।”

2015 में याचिकाकर्ता डॉ. अफाक अहमद खान ने शेरी-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (SKIMS) द्वारा विज्ञापन के बाद क्लिनिकल हेमेटोलॉजी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद के लिए आवेदन किया। चयनित होने के बावजूद उनकी नियुक्ति 27 नवंबर, 2019 तक के लिए टाल दी गई, जबकि उनके साथियों की नियुक्ति अक्टूबर 2018 में हुई थी। यह देरी चयन समिति द्वारा उन्हें दिए गए अंकों की गलत गणना के कारण हुई।

डॉ. खान ने भविष्य में पदोन्नति के लिए अपनी पात्रता सुनिश्चित करने के लिए अपने साथियों की नियुक्ति की तिथि से अपनी नियुक्ति के लिए पूर्वव्यापी प्रभाव की मांग की। SKIMS को उनके प्रतिनिधित्व के कारण उनकी नियुक्ति पर काल्पनिक प्रभाव की सिफारिश की गई। हालांकि, SKIMS ने अपेक्षित सेवा अवधि और प्रकाशनों में कमी के कारण उन्हें पदोन्नति के लिए अयोग्य घोषित कर दिया।

खान का प्रतिनिधित्व एडवोकेट सलीह पीरजादा ने किया। उन्होंने अधिसूचना को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि उन्हें अपनी सीनियरिटी का स्थायी नुकसान नहीं उठाना चाहिए। प्रतिवादी के संस्थान द्वारा उनके पक्ष में नियुक्ति आदेश जारी करने में अनुचित देरी के कारण उन चयनित उम्मीदवारों के मुकाबले उनकी वरिष्ठता से वंचित नहीं किया जा सकता, जिन्होंने उनके साथ चयन प्रक्रिया का सामना किया।

प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम 1985 की धारा 28 के तहत अधिकार क्षेत्र के संबंध में प्रारंभिक आपत्ति को संबोधित करते हुए जस्टिस वानी ने एल. चंद्र कुमार बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का संदर्भ दिया और SKIMS से उत्पन्न होने वाले सेवा मामलों पर हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र की पुष्टि की, क्योंकि इसे अभी तक प्रशासनिक न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र में नहीं लाया गया।

प्रतिवादी द्वारा याचिकाकर्ता को चुनौती देने के लिए खान की ओर से देरी और रोक के आधार पर टिप्पणी करते हुए न्यायालय ने कहा कि उन्होंने इस मुद्दे को तुरंत उठाया था। नियुक्ति आदेश में प्रभावी तिथि निर्दिष्ट नहीं की गई, जो पूर्वव्यापी प्रभाव के लिए उनके मामले का समर्थन करता है।

मामले की खूबियों पर विचार करते हुए जस्टिस वानी ने इस बात पर जोर दिया कि उम्मीदवार की किसी गलती के कारण नियुक्ति में देरी हुई, लेकिन विभागीय त्रुटियों को पूर्वव्यापी प्रभाव दिया जाना चाहिए, क्योंकि इससे यह सुनिश्चित होता है कि उम्मीदवार को वरिष्ठता और पदोन्नति की संभावनाओं से अनुचित रूप से वंचित नहीं किया जाता।

न्यायालय ने सी. जयचंद्रन बनाम केरल राज्य में सुप्रीम के फैसले का हवाला दिया, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि किसी कर्मचारी को प्रशासनिक देरी के कारण नुकसान नहीं उठाना चाहिए। उसे उसी चयन प्रक्रिया में सहकर्मियों की नियुक्ति की तारीख से वरिष्ठता दी जानी चाहिए।

इन टिप्पणियों के मद्देनजर पीठ ने 3 अक्टूबर, 2018 से डॉ. खान को असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में पूर्वव्यापी रूप से नियुक्त करने की याचिका को अनुमति दी। न्यायालय ने उनकी वरिष्ठता को फिर से तय करने का आदेश दिया, जिससे उन्हें अयोग्य घोषित करने वाला नोटिस रद्द कर दिया गया।

केस टाइटल- डॉ. अफाक अहमद खान बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश

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