[RPC 498A] लगातार उत्पीड़न के अभाव में दहेज की मांग करना क्रूरता नहीं: जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2024-08-31 07:15 GMT

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने माना कि दहेज की साधारण मांग, पीड़ित को ऐसी मांगों को पूरा करने के लिए मजबूर करने के उद्देश्य से लगातार उत्पीड़न के बिना रणबीर दंड संहिता (RPC) की धारा 498-A के तहत क्रूरता नहीं मानी जाती।

धारा 498-A के तहत दोषसिद्धि को खारिज करते हुए जस्टिस संजीव कुमार ने कहा,

“मृतक ने अपीलकर्ता और उसके माता-पिता द्वारा स्कूटर और नकदी की मांग के बारे में शिकायत की थी लेकिन साक्ष्य में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यह सुझाव दे कि दहेज की मांग पूरी न करने पर मृतक को कभी पीटा गया उसके साथ दुर्व्यवहार किया गया या उसे ससुराल से निकाल दिया गया। बल्कि साक्ष्य यह है कि वह चुपचाप अपने ससुराल में रह रही थी”

यह मामला युवा महिला की मौत से जुड़ा है, जिसे कथित तौर पर उसके पति और ससुराल वालों से दहेज की मांग का सामना करना पड़ा। उसकी मृत्यु के बाद महिला के परिवार ने पति और उसके रिश्तेदारों पर दहेज के लिए उसके साथ क्रूरता और उत्पीड़न करने का आरोप लगाया जिसके कारण उसकी असामयिक मृत्यु हो गई।

प्रधान जिला न्यायाधीश बांदीपुरा ने आरोपियों को धारा 498-A और 304-B RPC के तहत दोषी ठहराया। उन्हें दहेज संबंधी क्रूरता के कारण पीड़िता की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया गया।

वहीं पति और उसके परिवार ने दोषसिद्धि का विरोध किया और कहा कि आरोप निराधार थे और पीड़िता को किसी भी तरह के लगातार उत्पीड़न या क्रूरता का सामना नहीं करना पड़ा था।

अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य धारा 498-A RPC के तहत परिभाषित निरंतर उत्पीड़न या क्रूरता के दावे को पुष्ट नहीं करते। अपीलकर्ताओं ने आगे तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने कथित क्रूरता के कृत्यों से उन्हें जोड़ने वाले प्रत्यक्ष साक्ष्य की कमी पर विचार करने में विफल रहा जिसके कारण कथित तौर पर पीड़िता की मौत हुई।

अदालत की टिप्पणियां:

प्रस्तुत साक्ष्यों और गवाही की सावधानीपूर्वक जांच के बाद जस्टिस कुमार ने पाया कि धारा 498-A RPC के तहत क्रूरता का सार महिला को गैरकानूनी मांगों को पूरा करने के लिए मजबूर करने के उद्देश्य से निरंतर और निरंतर उत्पीड़न में निहित है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि केवल दहेज की मांग यदि लगातार उत्पीड़न या क्रूरता के साथ नहीं जुड़ी है तो धारा 498-A RPC के तहत दोषसिद्धि के लिए कानूनी मानदंडों को पूरा नहीं करती है।

अदालत ने अभियोजन पक्ष के मामले में विसंगतियों को भी नोट किया विशेष रूप से यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूतों की कमी कि पीड़िता को अपीलकर्ताओं द्वारा लगातार उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। पीठ ने कहा कि पीड़ित के परिवार की गवाही, भावनात्मक रूप से आवेशित होने के बावजूद यह पर्याप्त रूप से स्थापित नहीं कर पाई कि अभियुक्त ने मृतक को इस तरह से परेशान किया था जो कानून के तहत क्रूरता के बराबर था।

न्यायालय ने अपने निष्कर्षों का समर्थन करने के लिए कई उदाहरणों का हवाला दिया, जिसमें पंजाब राज्य बनाम गुरमीत सिंह और गिरधर शंकर तावड़े बनाम महाराष्ट्र राज्य शामिल हैं। धारा 498-A के तहत दोषसिद्धि को बनाए रखने के लिए दहेज की मांग से परे लगातार उत्पीड़न और क्रूरता साबित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया।

इन विचारों के प्रकाश में हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्ताओं की कार्रवाई हालांकि नैतिक रूप से संदिग्ध थी, आरपीसी की संबंधित धाराओं के तहत दोषसिद्धि के लिए कठोर कानूनी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती थी।

केस टाइटल- शौकत अहमद राथर बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य

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