जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने PSA को चुनौती देने वाली जनहित याचिका सुनवाई योग्य न मानते हुए खारिज की

Update: 2024-10-17 07:48 GMT

चीफ जस्टिस ताशी रबस्तान और जस्टिस एम ए चौधरी की सदस्यता वाली जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम (PSA) 1978 की वैधता को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका (PIL) खारिज की।

अदालत ने जनहित याचिका को सुनवाई योग्य नहीं मानते हुए कहा कि PSA के तहत नागरिकों को हिरासत में लेने का मुद्दा पहले से ही न्यायिक विचाराधीन है, जिससे यह मुकदमा एक समानांतर और निरर्थक कार्यवाही बन गया।

श्रीनगर के निवासी और सीनियर एडवोकेट सैयद तस्सदुक हुसैन द्वारा दायर जनहित याचिका में लॉकडाउन के बाद लगभग 2,000 लोगों की हिरासत और जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में 253 बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं दायर किए जाने की बात सामने आई। अन्य राहतों के अलावा याचिकाकर्ता ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 22 में संशोधन लागू करने की माँग की, जो मनमाने ढंग से गिरफ़्तारी और हिरासत के विरुद्ध सुरक्षा से संबंधित है।

एडवोकेट जनरल डी.सी. रैना द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि जनहित याचिका कई आधारों पर सुनवाई योग्य नहीं है। मुख्य रूप से उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि PSA के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति पहले ही बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं के माध्यम से अदालत का रुख कर चुके हैं, जिसमें उनकी हिरासत को चुनौती दी गई है। प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि इससे जनहित याचिका एक ही मुद्दे पर दोहरे निर्णय का मामला बन गई।

उन्होंने याचिका की गैर-धारणीयता को और पुष्ट करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आधिकारिक निर्णयों विशेष रूप से ए.के. रॉय बनाम भारत संघ के ऐतिहासिक निर्णय का भी संदर्भ दिया।

हाईकोर्ट ने प्रस्तुतियों पर विचार करने के बाद पाया कि जनहित याचिका में उठाए गए मुद्दे पहले से ही बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं के रूप में न्यायालय के समक्ष निर्णय के लिए लंबित हैं।

न्यायालय ने कहा,

"इस याचिका में उठाए गए नागरिकों की हिरासत का मुद्दा पहले से ही इस न्यायालय के समक्ष निर्णय के लिए लंबित है। इसलिए हमारी सुविचारित राय में यह जनहित याचिका समानांतर मुकदमे के रूप में सुनवाई योग्य नहीं है।"

न्यायालय ने आगे कहा कि जनहित याचिका पर विचार करना उन मुद्दों पर फिर से मुकदमा चलाने के समान होगा, जो बंदियों द्वारा दायर व्यक्तिगत याचिकाओं के माध्यम से न्यायालय के समक्ष पहले से ही मौजूद हैं।

न्यायालय ने गैर-स्वीकार्यता के आधार पर जनहित याचिका खारिज करते हुए उन व्यक्तियों को न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता दी, जिन्होंने अभी तक अपने हिरासत आदेशों को चुनौती नहीं दी।

केस टाइटल: सैयद तस्सदुक हुसैन बनाम भारत संघ

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