अनुकंपा नियुक्ति वित्तीय संकट के तहत निचले पद की स्वीकृति उच्च पद के दावे पर रोक नहीं लगाती: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2025-10-30 04:50 GMT

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस संजय परिहार की खंडपीठ ने कहा कि जब निचले पद पर अनुकंपा नियुक्ति वित्तीय दबाव में स्वीकार की जाती है और अपेक्षित योग्यता रखने वाले आवेदक द्वारा तुरंत चुनौती दी जाती है तो विबंधन का सिद्धांत लागू नहीं होता।

पृष्ठभूमि तथ्य

आवेदक के पिता लोक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी (PHE) विभाग में अधिशासी इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे। 17.09.2020 को सेवाकाल के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। इसलिए आवेदक ने 1994 के एसआरओ 43 के तहत कनिष्ठ अभियंता (यांत्रिक) के रूप में अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया। उन्होंने अपनी बी.टेक योग्यता का हवाला दिया। लोक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग ने उनके दावे का समर्थन किया। चीफ इंजीनियर ने सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) से उनकी नियुक्ति की सिफारिश की। हालांकि, GAD ने फ़ाइल वापस कर दी और निर्देश दिया कि आवेदक को सबसे निचले अराजपत्रित पद पर समायोजित किया जाए। इसलिए विभाग ने उसे फिटर के पद पर नियुक्त कर दिया। आवेदक ने आर्थिक तंगी के कारण पदभार ग्रहण किया। बाद में उसने 12 दिन बाद केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण, जम्मू में नियुक्ति को चुनौती दी।

न्यायाधिकरण ने आवेदक का दावा स्वीकार कर लिया और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर को निर्देश दिया कि वह आवेदक को फिटर के रूप में उसकी प्रारंभिक नियुक्ति की तिथि से अनुकंपा के आधार पर जूनियर इंजीनियर (यांत्रिक) के पद पर नियुक्त करे। आवेदक को उस तिथि से काल्पनिक वरिष्ठता भी प्रदान की गई, लेकिन वह किसी भी बकाया वेतन का हकदार नहीं था।

इससे व्यथित होकर केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर ने एक रिट याचिका के माध्यम से न्यायाधिकरण के निर्णय को चुनौती दी।

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर द्वारा यह तर्क दिया गया कि आवेदक ने 24 जून, 2021 को फिटर का पद ग्रहण करके पद स्वीकार कर लिया। बाद में उसे यह दावा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती कि वह जूनियर इंजीनियर के उच्च पद पर नियुक्ति का हकदार था।

दूसरी ओर, प्रतिवादी ने तर्क दिया कि उसने फिटर का पद इसलिए स्वीकार किया, क्योंकि वह गंभीर आर्थिक तंगी से जूझ रहा था और अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए उसके पास इस पद को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। अपने पिता की मृत्यु के बाद वह परिवार का एकमात्र कमाने वाला सदस्य था। उसने नियुक्ति के मात्र बारह दिन बाद ही न्यायाधिकरण के समक्ष चुनौती दी। यह भी तर्क दिया गया कि समान योग्यता वाले अन्य उम्मीदवारों को भी 1994 के एसआरओ 43 के नियम 3(2) के तहत समान लाभ प्रदान किया गया।

न्यायालय के निष्कर्ष

अधिकारियों द्वारा उठाई गई एस्टोपल की दलील को न्यायालय ने खारिज कर दिया। यह ध्यान दिया गया कि आवेदक ने अपने पिता की मृत्यु के बाद आर्थिक मजबूरी के कारण ही फिटर का पद स्वीकार किया था। यह देखा गया कि उसने बारह दिनों के भीतर नियुक्ति को चुनौती दी थी।

यह पाया गया कि आवेदक की स्थिति उन अन्य उम्मीदवारों से अलग नहीं थी, जिन्हें 1994 के एसआरओ 43 के नियम 3(2) के तहत जूनियर इंजीनियर के रूप में नियुक्त किया गया। यह प्रावधान सरकार को उच्च नियुक्तियां देने का विवेकाधिकार देता है। हालांकि, इसका प्रयोग स्वप्रेरणा से या अन्यथा, केवल असाधारण मामलों में ही किया जाना चाहिए और सक्षम प्राधिकारी को इस शक्ति के प्रयोग के कारण स्पष्ट करने होंगे। यह देखा गया कि प्राधिकारी ऐसी कोई भी सामग्री प्रस्तुत करने में विफल रहे, जिससे यह पता चले कि प्रतिवादी का मामला उन अन्य उम्मीदवारों से भिन्न था जिन्हें समान योग्यता होने के बावजूद कनिष्ठ अभियंता के रूप में नियुक्त किया गया।

इसलिए आवेदक को जूनियर इंजीनियर (यांत्रिक) के रूप में नियुक्त करने के न्यायाधिकरण का निर्णय न्यायालय ने बरकरार रखा। हालांकि, प्रशासन को नियुक्ति के लिए आवेदक की पात्रता और योग्यताओं का सत्यापन करने की अनुमति दी गई।

उपरोक्त टिप्पणियों के साथ केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर द्वारा दायर याचिका न्यायालय ने खारिज कर दी।

Case Name : Union Territory of Jammu & Kashmir & Others v. Bhavtej Singh Isher

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