अनुच्छेद 16(4ए) के तहत पदोन्नति में आरक्षण का लाभ सभी को उपलब्ध, जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के साथ अलग व्यवहार नहीं किया जा सकता: हाईकोर्ट

Update: 2025-03-10 08:44 GMT

जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी उस परिपत्र पर कड़ी असहमति व्यक्त की है, जिसमें सभी प्रशासनिक सचिवों को आरक्षित श्रेणी के कर्मचारियों के लिए निर्धारित स्लॉट खाली रखने का निर्देश दिया गया है। न्यायालय ने कहा कि अनुसूचित जातियों को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ न देने और उनकी सीटें खाली रखने से जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के साथ अन्य राज्यों से अलग व्यवहार होगा।

अदालत ने कहा,

“यह समझ में नहीं आता है कि वर्ष 2019 में संवैधानिक प्रावधानों के लागू होने के साथ जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश पर लागू संवैधानिक प्रावधानों की पूरी तरह से अवहेलना करते हुए उक्त निर्देश कैसे पारित किए जा सकते हैं।”

जस्टिस एमए चौधरी की पीठ ने कहा कि पदोन्नति में आरक्षण का लाभ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16(4ए) के अनुसार है। न्यायालय ने माना कि सेवा के सभी सदस्यों को आरक्षण से वंचित करना उन्हें उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने के समान होगा।

न्यायालय ने कहा,

“जम्मू-कश्मीर संघ राज्य क्षेत्र में पदोन्नति में आरक्षण का लाभ न देना, जम्मू-कश्मीर संघ राज्य क्षेत्र के आरक्षित श्रेणी के कर्मचारियों के साथ देश के बाकी हिस्सों के आरक्षित श्रेणी के कर्मचारियों/उम्मीदवारों से अलग व्यवहार करना है, जो वर्ग विधान के समान है, जो भारत के संविधान में निर्धारित समानता की अवधारणा के विपरीत है।”

न्यायालय ने एसएलपी (सी) संख्या 3786/2016 में जम्मू-कश्मीर संघ राज्य क्षेत्र द्वारा दायर हलफनामे पर गौर किया, जिसमें न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादी-संघ राज्य क्षेत्र जम्मू-कश्मीर ने पदोन्नति में आरक्षण लागू करने की अपनी मंशा व्यक्त करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष रखा था।

न्यायालय ने प्रतिवादी को तब तक कोई पदोन्नति करने से रोक दिया जब तक कि पदोन्नति में आरक्षण के लिए विचार किए जाने के हकदार एससी/एसटी आरक्षित श्रेणियों से संबंधित उम्मीदवारों पर विचार नहीं किया जाता।

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ताओं ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक रिट याचिका दायर की जिसमें प्रशासनिक सचिवों को आरक्षित श्रेणी के पदोन्नति स्लॉट खाली/अधूरे रखने का निर्देश देने वाले परिपत्र को चुनौती दी गई। इन आरक्षित श्रेणियों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़े क्षेत्रों के निवासी, वास्तविक नियंत्रण रेखा और अन्य सामाजिक जातियां शामिल हैं, जो जम्मू-कश्मीर के विभिन्न बिजली निगमों में काम करती हैं।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह परिपत्र संविधान के अनुच्छेद 16(4ए) और जम्मू-कश्मीर आरक्षण अधिनियम, 2004 का उल्लंघन करता है, जो पदोन्नति में अनुसूचित जातियों के लिए 8% और अनुसूचित जनजातियों के लिए 10% आरक्षण प्रदान करता है। याचिकाकर्ताओं ने नसीब सिंह और अन्य बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य में सर्वोच्च न्यायालय के स्थगन आदेश पर भरोसा किया, जिसने मामले का फैसला होने तक आरक्षण के तहत पदोन्नति की अनुमति दी थी। केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट), जम्मू बेंच ने पहले ही सतीश चंदर बनाम जम्मू-कश्मीर और अन्य के यूटी में परिपत्र को रद्द कर दिया था।

अदालत ने प्रतिवादियों को इस फैसले की तारीख से छह सप्ताह की अवधि के भीतर मात्रात्मक डेटा एकत्र करने और फिर याचिकाकर्ताओं को पदोन्नति में आरक्षण पर विचार करने का निर्देश दिया।

अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि कोई भी मात्रात्मक डेटा एकत्र करने के अभाव में, प्रतिवादी, जम्मू और कश्मीर आरक्षण अधिनियम, 2004 और इसके तहत बनाए गए नियमों के मद्देनजर आरक्षित स्लॉट के खिलाफ पदोन्नति में आरक्षण के लिए याचिकाकर्ताओं पर विचार करेंगे, जब तक कि प्रशासनिक विभागों द्वारा मात्रात्मक डेटा एकत्र करने का कार्य नहीं किया जाता है।

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