मंदिर के दान का सरकारी योजनाओं में उपयोग भक्तों के विश्वास से धोखा: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि मंदिरों में श्रद्धालु जो धन दान करते हैं, वह केवल देवी-देवताओं की देखभाल मंदिर के रखरखाव और धार्मिक कार्यों के लिए ही इस्तेमाल होना चाहिए।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मंदिर के दान को राज्य के सामान्य राजस्व या सरकारी कल्याणकारी योजनाओं में खर्च करना भक्तों के अटूट विश्वास को धोखा देना है।
जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस राकेश कैंथला की खंडपीठ ने टिप्पणी की,
"मंदिर के कोष का हर रुपया मंदिर के धार्मिक उद्देश्य या धर्मार्थ कार्यों के लिए ही उपयोग किया जाना चाहिए। इसे राज्य के लिए सामान्य राजस्व या सामान्य सार्वजनिक खजाने की तरह नहीं माना जा सकता और न ही इसे सरकार की किसी कल्याणकारी योजना के लिए डायवर्ट किया जा सकता है।"
कोर्ट ने आगे कहा कि भक्त यह स्पष्ट विश्वास लेकर दान देते हैं कि उनका चढ़ावा सनातन धर्म को बढ़ावा देगा। जब सरकार इन पवित्र चढ़ावों को अपने कब्जे में लेती है तो वह सीधे उस धार्मिक भावना और विश्वास को ठेस पहुंचाती है।
धार्मिक उद्देश्यों के लिए धन का उपयोग अनिवार्य
यह फैसला एक याचिका पर आया, जिसमें राज्य के अधिकारियों को हिंदू सार्वजनिक धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम 1984 का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
कोर्ट ने दोहराया कि इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य हिंदू धार्मिक संस्थानों के बेहतर प्रशासन और उनकी संपत्तियों की सुरक्षा करना है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि धन का उपयोग केवल धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए हो।
न्यायालय ने हिंदू धर्म के व्यापक दर्शन पर भी बात की यह समझाते हुए कि यह किसी एक ईश्वर या पुस्तक तक सीमित न होकर जीवन जीने का एक तरीका है।
कोर्ट ने याद दिलाया कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी मंदिरों ने सामाजिक सुधार और एकजुटता के केंद्र के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
मंदिर कोष के उपयोग के लिए विशिष्ट निर्देश
न्यायालय ने यह सुनिश्चित करने के लिए विशिष्ट निर्देश जारी किए कि मंदिर का धन धार्मिक और सामाजिक उत्थान के लिए ही उपयोग हो।
इन निर्देशों में शामिल हैं:
1. वेदों और संस्कृत की शिक्षा को बढ़ावा देना।
2. मंदिरों और गौशालाओं का उचित रखरखाव करना।
3. योग और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना।
4. गरीबों और बुजुर्गों को सहायता प्रदान करना।
5. समाज में व्याप्त सामाजिक भेदभाव को समाप्त करना।
कोर्ट ने दोहराया कि संविधान का अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतंत्रता प्रदान करता है, लेकिन यह स्वतंत्रता सार्वजनिक व्यवस्था और नैतिकता के अधीन है।
कोर्ट ने जोर दिया कि सभी नागरिक और संस्थान स्वस्थ, सामंजस्यपूर्ण और प्रगतिशील भारतीय समाज की स्थापना के लिए पहल करने हेतु बाध्य हैं।