उपभोक्ता आयोगों के पुनर्गठन पर सवाल: हिमाचल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोगों के पुनर्गठन को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर राज्य सरकार से जवाब तलब किया। अदालत ने इस मामले में राज्य की उस नीति पर सवाल उठाया है, जिसके तहत कई राजस्व जिलों को मिलाकर सीमित संख्या में जिला उपभोक्ता आयोगों का गठन किया गया।
चीफ जस्टिस जी.एस. संधावालिया और जस्टिस जिया लाल भारद्वाज खंडपीठ ने 22 दिसंबर, 2025 को याचिका पर संज्ञान लेते हुए कहा कि शिकायत यह है कि हिमाचल प्रदेश के कई जिलों को स्वतंत्र और पूर्णतः कार्यशील जिला उपभोक्ता आयोगों से वंचित कर दिया गया।
अदालत ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 28(1) का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया कि कानून प्रत्येक जिले में जिला उपभोक्ता आयोग की स्थापना का प्रावधान करता है। PIL में राज्य सरकार की 29 नवंबर 2023 की अधिसूचना को चुनौती दी गई, जिसके माध्यम से कई जिलों को प्रशासनिक रूप से एक साथ जोड़कर कुछ ही जिला उपभोक्ता आयोगों के अधीन कर दिया गया।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि इस तरह के पुनर्गठन से उपभोक्ताओं और वादकारियों को अपने ही मामलों के लिए दूसरे जिलों की यात्रा करनी पड़ रही है, जिससे न्याय तक आसान पहुंच का अधिकार प्रभावित हो रहा है। याचिका में यह भी कहा गया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का उद्देश्य त्वरित, सुलभ और स्थानीय स्तर पर न्याय प्रदान करना है, जिसे यह व्यवस्था कमजोर करती है।
याचिकाकर्ता ने यह भी दलील दी कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 28 स्पष्ट और अनिवार्य है तथा प्रशासनिक सुविधा के नाम पर जिलों को स्थायी या नियमित रूप से क्लब करने की कोई गुंजाइश कानून में नहीं छोड़ी गई। इस आधार पर राज्य सरकार का निर्णय प्रथम दृष्टया कानून के विपरीत बताया गया।
मामले की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
इस याचिका पर अब 17 मार्च, 2026 को सुनवाई होगी।