परिवीक्षा अवधि में सेवा से मुक्त करना दंडात्मक नहीं, केवल लंबित आपराधिक मामले से नहीं बनता कलंक: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट में चपरासी के पद पर कार्यरत रहे फकीर चंद की याचिका खारिज की, जिसमें उन्होंने परिवीक्षा अवधि के दौरान सेवा से मुक्त किए जाने को चुनौती दी थी।
अदालत ने स्पष्ट किया कि परिवीक्षा काल में सेवा से मुक्त किया जाना, यदि नियुक्ति की शर्तों और सेवा नियमों के अनुरूप हो, तो उसे केवल इस आधार पर दंडात्मक या कलंकित नहीं माना जा सकता कि कर्मचारी के खिलाफ आपराधिक मामला लंबित है।
चीफ जस्टिस जी.एस. संधावालिया और जस्टिस जिया लाल भारद्वाज की खंडपीठ ने कहा कि नियोक्ता की संतुष्टि भंग होने की स्थिति में परिवीक्षा अवधि के दौरान कर्मचारी को सेवा से मुक्त करना पूरी तरह उचित है।
अदालत ने टिप्पणी की कि इस मामले में नियोक्ता का निर्णय वैध है। इसमें हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं बनता।
याचिकाकर्ता फकीर चंद को जून 2019 में संविधान के अनुच्छेद 229 के तहत हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट जज के 'चॉइस पिओन' के रूप में सह-समाप्ति आधार पर नियुक्त किया गया था।
इसके बाद जनवरी, 2023 में उन्हें नियमित करते हुए दो वर्ष की परिवीक्षा अवधि पर चपरासी के पद पर नियुक्त किया गया। नियुक्ति आदेश में यह शर्त स्पष्ट रूप से दर्ज थी कि यदि परिवीक्षा के दौरान उनका कार्य और आचरण संतोषजनक नहीं पाया गया तो उनकी सेवाएं समाप्त की जा सकती हैं।
परिवीक्षा अवधि पूरी होने से पहले ही हाईकोर्ट प्रशासन ने यह कहते हुए याचिकाकर्ता को सेवा से मुक्त कर दिया कि उनका कार्य और आचरण संतोषजनक नहीं रहा।
फकीर चंद ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 381 (क्लर्क या सेवक द्वारा चोरी) के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया गया, जिसके कारण उन्हें निलंबित भी किया गया।
उनका कहना था कि वास्तविक कारण यही आपराधिक मामला था और सेवा से मुक्त करने का आदेश दंडात्मक प्रकृति का है, जिसे सतह के पीछे छिपे उद्देश्य को उजागर कर (लिफ्टिंग द वैल) देखा जाना चाहिए।
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि सेवा से मुक्त करने के आदेश में किसी भी आपराधिक मामले का उल्लेख नहीं है। आदेश केवल इस आधार पर पारित किया गया कि परिवीक्षा अवधि के दौरान याचिकाकर्ता का कार्य संतोषजनक नहीं पाया गया।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता को आपराधिक मामले में 48 घंटे से अधिक समय तक हिरासत में रहने के कारण नियमों के तहत निलंबित किया गया, जो कि सेवा नियमों के अनुरूप एक स्वचालित प्रक्रिया थी। मात्र इस तथ्य से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि बाद में की गई सेवा-मुक्ति दंडात्मक या कलंकित है।
इन सभी तथ्यों के आधार पर हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि परिवीक्षा अवधि में नियोक्ता को कर्मचारी के कार्य और आचरण का आकलन करने का अधिकार है। यदि नियोक्ता संतुष्ट नहीं है, तो सेवा समाप्ति को दंडात्मक नहीं माना जा सकता। इसके साथ ही अदालत ने याचिका खारिज कर दी।