कोर्ट में पहचान पर बहुत शक है: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 2006 के शराब ज़ब्ती मामले में दो आरोपियों को बरी किया

Update: 2025-11-20 12:08 GMT

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपियों की पहचान साबित करने में कमी से क्रिमिनल मामलों में गंभीर गड़बड़ी होती है खासकर जब ऐसी पहचान की पुष्टि करने के लिए कोई आज़ाद गवाह न हो।

जस्टिस राकेश कैंथला ने कहा,

“रुक्का में साफ तौर पर कहा गया था कि वैन के ड्राइवर अंधेरे का फायदा उठाकर मौके से भाग गए। गाड़ी की रोशनी में उनकी पहचान बिल्ला और जीतू के तौर पर हुई थी। रिकॉर्ड में ऐसा कोई सबूत नहीं है, जिससे यह साबित हो कि सुनील कुमार को जीतू के नाम से भी जाना जाता है और अशोक कुमार को बिल्ला के नाम से भी जाना जाता है। इस बात को साबित करने के लिए इलाके के किसी भी व्यक्ति से पूछताछ नहीं की गई।”

याचिकाकर्ता सुनील कुमार और अशोक कुमार को पंजाब एक्साइज एक्ट की धारा 61(1)(a) के तहत दोषी ठहराया गया, जब दिसंबर 2006 में पुलिस ने दो वैन पकड़ीं, जिनमें कुल 222 बोतलें शराब थीं। हालांकि ड्राइवर भाग गए और कथित तौर पर उनकी पहचान बिल्ला और जीतू के तौर पर हुई।

उन्हें ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया, जिसे बाद में अपीलीय कोर्ट ने भी सही ठहराया। इससे नाराज़ होकर याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट में रिवीजन याचिका दायर की।

उन्होंने दलील दी कि ड्राइवरों की ठीक से पहचान नहीं हुई। कोई टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड नहीं हुई और गाड़ी के मालिक ने एक आरोपी को नौकरी पर रखने से इनकार किया।

कोर्ट ने टिप्पणी की कि कोर्ट में पहली बार आरोपियों की पहचान पर बहुत शक था और उससे पहले टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड ज़रूरी थी।

साथ ही कोर्ट ने यह भी नोट किया कि गाड़ी के मालिक ने याचिकाकर्ताओं में से एक को गाड़ी का ड्राइवर रखने से इनकार किया।

इस तरह कोर्ट ने सज़ा रद्द कर दी और आरोपियों को बरी कर दिया।

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