कर्मचारी की सज़ा अपने आप बर्खास्तगी का आधार नहीं, अनुशासनात्मक जांच ज़रूरी: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने अहम फ़ैसले में कहा कि किसी सरकारी कर्मचारी को केवल दोषसिद्धि के आधार पर सेवा से बर्खास्त नहीं किया जा सकता। अनुशासनात्मक प्राधिकारी को या तो विभागीय जांच करनी होगी या फिर जांच न करने के ठोस कारण दर्ज करने होंगे।
जस्टिस संदीप शर्मा ने HRTC (हिमाचल रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन) की दलील खारिज करते हुए कहा,
“यद्यपि HRTC के वकील ने यह तर्क दिया कि नियम 19(1) किसी सरकारी सेवक को दोषसिद्धि पर स्वतः सेवा से हटाने की अनुमति देता है। हालांकि, यह अदालत सहमत नहीं है। पूरे नियम 19 का अवलोकन करने पर यह स्पष्ट है कि सेवा से हटाने से पहले अनुशासनात्मक प्राधिकारी को मामले की परिस्थितियों पर विचार करना अनिवार्य है।”
मामले में याचिकाकर्ता HRTC, हमीरपुर में चालक के पद पर कार्यरत है। वर्ष 2011 में उसकी बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई, जिसके बाद उस पर IPC की धारा 279 और 304ए के तहत मामला दर्ज हुआ और उसे दो साल की सख्त क़ैद की सज़ा सुनाई गई। अपील और पुनर्विचार में सज़ा तो कम होकर जितनी भुगती उतनी ही रह गई लेकिन दोषसिद्धि कायम रही।
इसके बाद 2019 में HRTC ने नियम 19 के तहत नोटिस जारी कर उसे सेवा से हटा दिया। इस कार्रवाई को याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।
अदालत ने कहा कि भले ही नियम 19 दोषसिद्धि पर कार्रवाई की अनुमति देता हो लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि कर्मचारी को स्वतः बर्खास्त कर दिया जाए। प्राधिकारी को यह देखना ज़रूरी है कि अपराध की प्रकृति क्या है? उसकी गंभीरता कितनी है और कर्मचारी का सेवा रिकॉर्ड कैसा रहा है।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता HRTC में 28 वर्षों से अधिक समय तक सेवा दे चुका था। बावजूद इसके उसे दुर्घटना के संबंध में अपनी बात रखने का अवसर तक नहीं दिया गया और न ही विभाग ने यह कारण दर्ज किया कि जांच क्यों नहीं की गई।
अदालत ने पाया कि पहले तो नियम 14 के तहत विभागीय कार्यवाही शुरू की गई। चालक से 6,000 जमा कराने को भी कहा गया। हालांकि, बाद में वह कार्यवाही समाप्त कर दी गई। ऐसे में बाद में नियम 19 का सहारा लेकर उसे हटाने का कोई औचित्य नहीं।
नतीजतन हाईकोर्ट ने HRTC का आदेश रद्द करते हुए याचिकाकर्ता की सेवा बहाल करने का निर्देश दिया।