उम्मीदवार किसी पद को अवैध बताकर उसी पद पर नियुक्ति का अधिकार नहीं मांग सकता : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट जज जस्टिस सत्येन वैद्य की पीठ ने कहा कि कोई उम्मीदवार किसी अतिरिक्त पद पर नियुक्ति का दावा नहीं कर सकता, खासकर तब जब उम्मीदवार द्वारा ऐसे पद को अवैध बताकर चुनौती दी गई हो।
पृष्ठभूमि तथ्य
याचिकाकर्ता ने पर्यावरण विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद के लिए आवेदन किया था। प्रतिवादी यूनिवर्सिटी ने 13.06.2011 को विज्ञापन के माध्यम से एसोसिएट प्रोफेसर के दो पदों पर नियुक्ति के लिए आवेदन आमंत्रित किए थे। याचिकाकर्ता को शॉर्टलिस्ट किया गया और इंटरव्यू लिया गया। एक चयन सूची तैयार की गई और सामान्य श्रेणी के दो व्यक्तियों को प्रतिवादी यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया। याचिकाकर्ता को प्रतीक्षा सूची के नंबर 1 पर रखा गया और निजी प्रतिवादी को नंबर 2 पर रखा गया। बाद में याचिकाकर्ता को पता चला कि निजी प्रतिवादी को भी एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया।
इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में निजी प्रतिवादी की नियुक्ति को चुनौती देने तथा उसकी नियुक्ति को निरस्त करने के लिए रिट याचिका दायर की। याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी अधिकारियों को निर्देश देने के लिए भी प्रार्थना की कि वे एसोसिएट प्रोफेसर के नव निर्मित पद के विरुद्ध याचिकाकर्ता की नियुक्ति करें।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि निजी प्रतिवादी की नियुक्ति अस्तित्वहीन पद के विरुद्ध की गई। चूंकि, केवल दो रिक्तियों का विज्ञापन किया गया तथा तीसरे पद के लिए कोई विज्ञापन नहीं था, इसलिए यदि पर्यावरण विज्ञान विभाग में अतिरिक्त पद सृजित किया जाना था तो प्रतीक्षा पैनल के नंबर 1 पर होने के कारण याचिकाकर्ता को उसके विरुद्ध नियुक्त किया जाना चाहिए।
दूसरी ओर प्रतिवादी द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि यूनिवर्सिटी ने दिनांक 15.12.2010 तथा 13.06.2011 को दो अलग-अलग विज्ञापनों के माध्यम से विभिन्न विषयों में एसोसिएट प्रोफेसरों के कुल 36 पदों का विज्ञापन किया। पर्यावरण विज्ञान विभाग के दो पद भी विज्ञापनों में शामिल थे। आगे यह तर्क दिया गया कि यूनिवर्सिटी ने भारत सरकार की आरक्षण नीति का पालन किया, जिसके अनुसार अनुसूचित जाति श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए 15% पद और अनुसूचित जनजाति श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए 7.5% पद आरक्षित किए जाने थे। इसलिए यूनिवर्सिटी ने कैडर-वार आरक्षण लागू किया। आगे यह भी कहा गया कि आरक्षण नीति के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए 25.08.2006 को यूजीसी द्वारा प्रसारित दिशा-निर्देशों के अनुसार ऐसा किया गया था।
प्रतिवादी यूनिवर्सिटी द्वारा यह भी प्रस्तुत किया गया कि पर्यावरण विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के दो पदों पर नियुक्त व्यक्ति सामान्य श्रेणी से थे। निजी प्रतिवादी ने 18.04.2012 और 25.04.2012 को दो अभ्यावेदन प्रस्तुत किए, जिसमें पर्यावरण विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के एक पद पर दावा करने की मांग की गई, इस आधार पर कि आरक्षण नीति के सख्त कार्यान्वयन से पर्यावरण विज्ञान विभाग में रिक्तियों में से एक अनुसूचित जनजाति श्रेणी के हिस्से में आनी थी। निजी प्रतिवादी उक्त श्रेणी से संबंधित उम्मीदवार होने के कारण नियुक्त होने का हकदार था।
प्रतिवादी ने आगे कहा कि एसोसिएट प्रोफेसर का एक पद दूसरे विभाग से पर्यावरण विज्ञान विभाग में अतिरिक्त आधार पर ट्रांसफर किया गया और पर्यावरण विज्ञान विभाग से असिस्टेंट प्रोफेसर का एक पद दूसरे विभाग में ट्रांसफर किया गया। इसलिए निजी प्रतिवादी को अतिरिक्त पद पर नियुक्त किया गया। प्रतिवादी यूनिवर्सिटी के अनुसार यह कार्य इसलिए करना पड़ा, क्योंकि सामान्य श्रेणी से चयनित दोनों व्यक्ति पहले ही शामिल हो चुके थे।
न्यायालय के निष्कर्ष
न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता द्वारा याचिका दायर किए जाने के बाद से लगभग बारह वर्ष बीत चुके हैं। यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसरों के कैडर में सामान्य रूप से तथा विशेष रूप से पर्यावरण विज्ञान विभाग में बहुत से परिवर्तन हुए होंगे। न्यायालय ने पाया कि याचिका के लंबित रहने के दौरान याचिकाकर्ता द्वारा अभिलेख पर कुछ भी प्रस्तुत नहीं किया गया।
न्यायालय ने आगे पाया कि प्रतिवादी पहले ही प्रतिवादी यूनिवर्सिटी छोड़ चुका है, जिसका अर्थ है कि जिस पद पर वह था, वह समाप्त हो गया, क्योंकि वह केवल अतिरिक्त पद था। आगे पाया कि याचिकाकर्ता ने एक ओर निजी प्रतिवादी की नियुक्ति को इस आधार पर चुनौती दी कि उसे गैर-मौजूद पद पर नियुक्त किया गया, क्योंकि कोई रिक्ति नहीं थी, दूसरी ओर याचिकाकर्ता उसी पद पर दावा कर रहा था।
न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता अतिरिक्त पद पर किसी अधिकार का दावा नहीं कर सकता, क्योंकि याचिकाकर्ता ने स्वयं तर्क दिया कि गैर-मौजूद पद पर निजी प्रतिवादी की नियुक्ति अवैध रूप से की गई। इसलिए यह माना गया कि याचिकाकर्ता अवैधता के आधार पर समानता की मांग नहीं कर सकता।
उपर्युक्त टिप्पणियों के साथ रिट याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: दीपक पठानिया बनाम हिमाचल प्रदेश सेंट्रल यूनिवर्सिटी और अन्य