"प्रेम पत्र पीड़िता की भावनाओं का सबूत": बलात्कार मामले में आरोपी की बरी को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने बरकरार रखा
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य द्वारा दायर उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 504 506, 376 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(i)(xii) के तहत अपराधों के लिए दंडित व्यक्ति को बरी किए जाने को चुनौती दी गई थी।
न्यायालय ने कहा कि यद्यपि बलात्कार के मामलों में पीड़िता के साक्ष्य को प्रमुखता से ध्यान में रखा जाना चाहिए। फिर भी यदि पीड़िता की गवाही रिकॉर्ड से असंगत और विरोधाभासी है तो उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों पर गौर करने के बाद जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस सुशील कुरेजा की खंडपीठ ने कहा,
"प्रेम पत्रों के अवलोकन से कहीं भी यह नहीं लगता कि ये पत्र अभियोक्ता द्वारा किसी प्रकार के दबाव में लिखे गए। वास्तव में ये पत्र पीड़िता की अभियुक्त के प्रति भावनाओं का शुद्ध प्रतिबिंब हैं।"
पीड़िता ने तर्क दिया कि वर्ष 2011 में अभियुक्त ने तीन अलग-अलग मौकों पर उसके साथ जबरन यौन संबंध बनाए। आगे कहा कि अभियुक्त ने उसे जान से मारने की धमकी भी दी और उसके और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ जाति-आधारित टिप्पणियां भी कीं।
मामले के तथ्यों पर गौर करने के बाद अदालत ने पाया कि पीड़िता ने अभियुक्त के खिलाफ बलात्कार का आरोप लगाया। फिर भी आरोप को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं था।
इसके अलावा अदालत ने पाया कि गवाही के दौरान पीड़िता अपना रुख बदलती रही। उसने आरोप लगाया कि अभियुक्त ने उसके साथ तीन बार बलात्कार किया लेकिन वह यह नहीं बता सकी कि उसके साथ बलात्कार कब महीना या साल हुआ।
इसके अलावा, प्रेम पत्रों के अवलोकन से यह नहीं पता चला कि उसने ये पत्र किसी दबाव में लिखे थे। पत्रों में पीड़िता की आरोपी के प्रति भावनाओं का शुद्ध प्रतिबिंब दिखाई देता था।
न्यायालय ने आरोपी को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा और निष्कर्ष निकाला कि पीड़िता के बयान पर विश्वास नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसने बार-बार अपना रुख बदला।
केस टाइटल: हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम माम राज