सहमति से तलाक के समय भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार छोड़ने वाली पत्नी बाद में इसकी हकदार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोई महिला आपसी सहमति से तलाक के समय अपने पति से गुजारा भत्ता का दावा करने का अधिकार छोड़ देती है, तो वह बाद में इसकी मांग नहीं कर सकती है। जस्टिस विपिन चंद्र दीक्षित की पीठ ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपनी पत्नी द्वारा दायर याचिका में फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली एक पति की पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए यह राय दी, जिसमें पति को प्रतिवादी पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण के रूप में प्रति माह 25 हजार रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।
अदालत ने पाया कि पत्नी 2006 से अपने पति से स्वतंत्र रूप से रह रही थी। इसके अलावा, तलाक पर आपसी सहमति हुई थी, जिसके दौरान पत्नी ने जानबूझकर भरण-पोषण का दावा करने के अपने अधिकार को त्यागने का विकल्प चुना था। इसलिए, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि फैमिली कोर्ट ने उसे अंतरिम भरण-पोषण देने में गलती की।
इन दलीलों की पृष्ठभूमि में, एकल न्यायाधीश ने शुरुआत में रुचि अग्रवाल बनाम अमित कुमार अग्रवाल और अन्य के मामले में मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह देखा गया कि एक बार जब एक पत्नी ने समझौते की शर्तों के आधार पर बिना किसी कंटेस्ट के तलाक प्राप्त कर लिया है, तो पत्नी के लिए अपने पति के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज करना संभव नहीं है और यह पति के उत्पीड़न के समान है।
कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 125(4) का भी हवाला दिया, जिसमें प्रावधान है कि अगर कोई पत्नी आपसी सहमति से अलग रह रही है तो वह अपने पति से भरण-पोषण भत्ता प्राप्त करने की हकदार नहीं होगी। इन टिप्पणियों के मद्देनजर, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि मौजूदा मामले में, प्रतिवादी-पत्नी किसी भी अंतरिम भरण-पोषण की हकदार नहीं है क्योंकि उसने तलाक के समय भरण-पोषण का दावा करने का अपना अधिकार पहले ही छोड़ दिया था। इसके साथ ही पति की पुनरीक्षण याचिका मंजूर कर ली गई।
केस टाइटलः गौरव मेहता बनाम अनामिका चोपड़ा संबंधित मामले के साथ 2024 लाइव लॉ (एबी) 218 [CRIMINAL REVISION No. - 4152 of 2023]
केस साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (एबी) 218