सुप्रीम कोर्ट ने अकोला दंगा मामले की जांच के लिए हिंदू-मुस्लिम अधिकारियों वाली SIT बनाने के आदेश पर रोक लगाई
सुप्रीम कोर्ट ने आज महाराष्ट्र के अकोला साम्प्रदायिक दंगों (2023) से जुड़े एक हमले के मामले में दिए गए उस आदेश पर स्थगन (Stay) लगा दिया, जिसमें दो-न्यायाधीशों की पीठ ने हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के अधिकारियों वाली विशेष जांच टीम (SIT) गठित करने का निर्देश दिया था।
चीफ़ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की खंडपीठ ने यह आदेश महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर समीक्षा याचिका (Review Petition) पर सुनवाई करते हुए पारित किया।
राज्य की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उपस्थित होकर अदालत से अनुरोध किया कि पिछले आदेश पर रोक लगाई जाए। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने आदेश दिया —
“नोटिस जारी किया जाए, जिसकी वापसी चार सप्ताह में हो। इस बीच, उस निर्णय के पैरा 24 के क्रियान्वयन पर रोक रहेगी।”
पैरा 24 में दिया गया विवादास्पद निर्देश —
“इस मामले में उचित होगा कि महाराष्ट्र सरकार के गृह विभाग के सचिव एक विशेष जांच टीम (SIT) गठित करें, जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी शामिल हों। यह टीम 13 मई 2023 को शिकायतकर्ता पर हुए हमले की जांच करेगी और आवश्यक कार्रवाई करेगी। साथ ही, दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए और पुलिस बल को उनके कानूनी दायित्वों के बारे में संवेदनशील बनाया जाए।”
सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि अदालत स्वयं SIT के सदस्यों का चयन कर सकती है और Divine Retreat Centre बनाम केरल राज्य मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि न तो आरोपी और न ही शिकायतकर्ता यह तय कर सकता है कि जांच कौन सी एजेंसी करेगी। उन्होंने यह भी कहा कि मूल याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में ऐसा कोई निर्देश मांगा ही नहीं था।
इससे पहले, 11 सितंबर 2025 को न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति एस.सी. शर्मा की पीठ ने आदेश जारी किया था, जिसमें महाराष्ट्र पुलिस की निष्क्रियता की आलोचना करते हुए SIT गठित करने को कहा गया था। SIT में दोनों समुदायों के वरिष्ठ अधिकारियों को शामिल करने का निर्देश दिया गया था।
बाद में, 7 नवंबर 2025 को, जब महाराष्ट्र सरकार ने इस आदेश की समीक्षा याचिका दायर की, तो दोनों न्यायाधीशों के बीच विभाजित निर्णय (split verdict) आया —
• जस्टिस कुमार ने समीक्षा याचिका खारिज की,
• जबकि जस्टिस शर्मा ने उस पर नोटिस जारी किया।
जस्टिस कुमार ने कहा था कि SIT में दोनों समुदायों के अधिकारी शामिल करने का उद्देश्य जांच की पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करना है, क्योंकि मामला सांप्रदायिक रंग लिए हुए है। उन्होंने टिप्पणी की थी —
“धर्मनिरपेक्षता (Secularism) को केवल संविधान में नहीं, बल्कि व्यवहार में भी लागू करना चाहिए।”
मामले की पृष्ठभूमि:
मई 2023 में महाराष्ट्र के अकोला में एक आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट के बाद साम्प्रदायिक हिंसा भड़क गई थी। इस घटना में विलास महादेव राव गायकवाड़ की मौत हो गई और 17 वर्षीय मोहम्मद अफज़ल घायल हो गया।
अफज़ल के अनुसार, उसने चार लोगों को तलवार और लोहे की पाइप से गायकवाड़ पर हमला करते देखा। जब वह उन्हें रोकने गया, तो उस पर भी हमला किया गया और उसकी गाड़ी जला दी गई। उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ उसने बयान दिया, लेकिन पुलिस ने कोई FIR दर्ज नहीं की।
पुलिस का कहना था कि उसे घटना की जानकारी मिली थी, लेकिन जब अधिकारी अस्पताल पहुँचे, तो अफज़ल बयान देने की स्थिति में नहीं था। हत्या की जांच की गई और कुछ आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई।
अफज़ल ने आरोप लगाया कि वास्तविक अपराधियों की जगह मुस्लिम युवकों पर झूठा मुकदमा दर्ज किया गया और जांच पक्षपातपूर्ण रही। उसने दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई और निष्पक्ष जांच की मांग की।
इसके बाद, अदालत ने SIT गठित कर हमले की जांच करने और दोषियों पर कार्रवाई करने का आदेश दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया है और मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।