पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान भेजी गई महिला को वापस लौटने की अनुमति: केंद्र ने जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख हाईकोर्ट को बताया
जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट ने पाकिस्तानी नागरिक रक्षंदा राशिद को नया विज़िटर वीज़ा दिए जाने के केंद्र सरकार के फैसले को ध्यान में रखते हुए दो अपीलों का निस्तारण कर दिया है। रक्षंदा को इस साल की शुरुआत में पहलगाम आतंकी घटना के बाद वीज़ा रद्द किए जाने के चलते देश से बाहर भेज दिया गया था।
चीफ जस्टिस अरुण पाली और जस्टिस रजनीश ओसवाल की खंडपीठ ने भारत सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा दी गई यह सूचना दर्ज की कि रक्षंदा राशिद को विज़िटर वीज़ा दिए जाने पर विचार किया जाएगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय “मामले की विशेष परिस्थितियों” को ध्यान में रखते हुए लिया गया है और इसका कोई उदाहरणात्मक महत्व नहीं होगा।
रक्षंदा राशिद, जो इस्लामाबाद (पाकिस्तान) की निवासी हैं, 1990 में विज़िटर वीज़ा पर भारत आई थीं और फिर उन्हें हर साल नवीनीकृत होने वाला एक दीर्घकालिक वीज़ा (LTV) दिया गया था। उन्होंने एक भारतीय नागरिक से विवाह किया और कई दशकों से जम्मू में रह रही थीं। उनका वीज़ा 13 जनवरी, 2025 तक वैध था और 4 जनवरी, 2025 को नवीनीकरण के लिए आवेदन भी किया गया था।
हालांकि, पहलगाम आतंकी घटना के बाद गृह मंत्रालय ने विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 3(1) के तहत सभी वीज़ाओं को रद्द कर दिया था (कुछ विशेष अपवादों को छोड़कर)। इसके तहत 28 अप्रैल, 2025 को रक्षंदा को देश छोड़ने का नोटिस दिया गया, जिसमें उन्हें अगले दिन तक भारत छोड़ने का आदेश था। 29 अप्रैल को उन्हें वाघा-अटारी बॉर्डर से देश से बाहर भेज दिया गया।
रक्षंदा ने इस निष्कासन को चुनौती दी थी। एकल न्यायाधीश ने 6 जून, 2025 को एक अंतरिम आदेश में सरकार को 10 दिनों के भीतर उन्हें वापस लाने का निर्देश दिया था। इसी आदेश के खिलाफ वर्तमान अपीलें दायर की गईं।
2 जुलाई को जब यह मामला खंडपीठ के समक्ष आया तो कोर्ट ने एकल न्यायाधीश के अंतरिम आदेश पर रोक लगा दी। 22 जुलाई को हुई सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कोर्ट से अनुरोध किया कि देखा जाए क्या "किसी तरह से मदद की जा सकती है।"
30 जुलाई को फिर से पेश होते हुए श्री मेहता ने सूचित किया कि सक्षम प्राधिकारी ने रक्षंदा राशिद को नया विज़िटर वीज़ा देने का सैद्धांतिक निर्णय ले लिया है।
प्रतिवादी की ओर से पेश वकील ने कोर्ट को बताया कि उनकी मुवक्किल इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं और वे अपनी याचिका वापस ले लेंगी। इसके आधार पर कोर्ट ने याचिका को वापस लिया गया माना और कहा कि अब अंतरिम आदेश की कोई प्रासंगिकता नहीं रह गई है।
कोर्ट ने भारत सरकार के दृष्टिकोण की सराहना की और स्पष्ट किया कि यह राहत केवल एक बार की अपवादस्वरूप दी गई है और इसका कोई कानूनी उदाहरण नहीं माना जाएगा।
खंडपीठ ने अपीलों का औपचारिक रूप से निपटारा कर दिया और यह भी कहा कि प्रतिवादी नागरिकता और दीर्घकालिक वीज़ा के लिए पहले से लंबित आवेदनों को संबंधित प्राधिकरणों के समक्ष आगे बढ़ा सकते हैं।