कर्मचारी-नियोक्ता संबंध स्थापित करने का दायित्व दावेदार पर: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस चंद्र धारी सिंह की सिंगल जज बेंच ने सुनील कुमार और अन्य बनाम राज्य एवं अन्य के मामले में एक रिट याचिका पर दिए फैसले में दोहराया कि प्रबंधन और कामगार के बीच कर्मचारी-नियोक्ता का संबंध स्थापित करने का दायित्व दावेदार पर है, यानी उस व्यक्ति पर, जो पार्टियों के बीच इस तरह के रिश्ते के अस्तित्व की दलील पेश करता है।
मामले में अदालत ने पाया कि श्रम न्यायालयों ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पूरे मामले पर विचार किया था कि याचिकाकर्ता उस अवधि में प्रतिवादी के साथ अपने रोजगार का रिकॉर्ड स्थापित करने में विफल रहा, जिसके लिए उसने मजदूरी के भुगतान का दावा किया था।
इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि नवंबर 2011 महीने का उपस्थिति कार्ड अप्रासंगिक था क्योंकि मांगी गई मजदूरी नवंबर महीने से पहले की अवधि के लिए थी।
कानपुर इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई कंपनी लिमिटेड बनाम शमीम मिर्जा के फैसले पर भरोसा जताया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नियोक्ता के साथ अपना रोजगार साबित करना दावेदार पर निर्भर था। इसके अलावा, अदालत ने बाबू राम बनाम सरकार (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि यह कानून का एक सुस्थापित सिद्धांत है कि बोझ उस पर होगा, जो नियोक्ता और कर्मचारी के रिश्ते के अस्तित्व की दलील पेश करता है।
अदालत का यह भी मानना था कि कानून की तय स्थिति के अनुसार, दावेदार को या तो प्रत्यक्ष साक्ष्य के माध्यम से, और/या आकस्मिक/सहायक प्रकृति के परिस्थितिजन्य साक्ष्य के माध्यम से कर्मचारी-नियोक्ता संबंध के अस्तित्व को साबित करना होगा, जो याचिकाकर्ता करने में असफल रहा।
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, अदालत ने याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल: सुनील कुमार एवं अन्य बनाम राज्य एवं अन्य।
केस नंबरः डब्ल्यूपी (सी) 2931/2024