मुकदमे के दौरान सीआरपीसी की धारा 319 के तहत आरोपी बनाया व्यक्ति सीआरपीसी की धारा 438 के तहत 'अग्रिम जमानत' के लिए भी आवेदन कर सकता है: उड़ीसा हाइकोर्ट
उड़ीसा हाइकोर्ट ने माना कि व्यक्ति जिसे आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 319 के तहत अदालत द्वारा मुकदमे के दौरान आरोपी के रूप में जोड़ा जाता है और उसे अदालत द्वारा बुलाया जाता है तो वह भी अग्रिम जमानत लेने का हकदार है।
जस्टिस शशिकांत मिश्रा की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 319(3) के तहत ट्रायल कोर्ट को पूछताछ या ट्रायल के लिए उसके द्वारा बुलाए गए व्यक्ति को हिरासत में लेने का अधिकार है। इस प्रकार संबंधित व्यक्ति को उचित स्वतन्त्रता की हानि की आशंका होगी।
कोर्ट ने कहा,
“अगर ट्रायल कोर्ट सीआरपीसी की धारा 319 की उप-धारा (3) के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए याचिकाकर्ताओं को हिरासत में लेने का फैसला करता है। उनके पेश होने पर यह उनकी स्वतंत्रता में कटौती के समान होगा। यह बदले में गिरफ्तारी के समान है।”
अदालत उन याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिन्हें आरोप-पत्र प्रस्तुत करने और मुकदमा शुरू होने के बाद हत्या के आरोप में ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपी व्यक्तियों के रूप में जोड़ा गया।
इसलिए हाइकोर्ट के समक्ष विवादास्पद प्रश्न यह था कि क्या सीआरपीसी की धारा 319 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपी के रूप में जोड़ा गया व्यक्ति सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत लेने का हकदार है।
राज्य की ओर से पेश वकील ने आवेदनों की सुनवाई योग्यता पर आपत्ति जताई और कहा कि क्योंकि ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को समन जारी किया, इसलिए उनकी गिरफ्तारी की आशंका अनुचित है।
उन्होंने आगे तर्क दिया कि अग्रिम जमानत की मांग तभी की जा सकती है, जब पुलिस द्वारा गिरफ्तारी की उचित आशंका हो, न कि तब जब किसी आरोपी व्यक्ति को ट्रायल कोर्ट द्वारा बुलाया गया हो।
दूसरी ओर याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि सीआरपीसी की धारा 438 के तहत आने वाली अभिव्यक्ति 'विश्वास करने का कारण' किसी व्यक्ति को हिरासत में लिए जाने की किसी भी उचित आशंका को कवर करने के लिए पर्याप्त व्यापक है।
उन्होंने आगे तर्क दिया कि सीआपीसी की धारा 319 की उप-धारा (3) ट्रायल कोर्ट को समन पर उपस्थित होने वाले व्यक्ति को हिरासत में लेने की शक्ति प्रदान करती है। इसलिए याचिकाकर्ताओं की आशंका को उचित माना जाना चाहिए।
सीआरपीसी की दोनों धाराओं यानी धारा 319 और 438 के तहत प्रावधानों पर गौर करने के बाद न्यायालय ने कहा,
“सीआरपीसी की धारा 319 की उप-धारा (3) इस हद तक स्पष्ट है कि न्यायालय के पास सम्मन पर उपस्थित होने वाले व्यक्ति को भी हिरासत में लेने की शक्ति है। इसलिए इस हद तक याचिकाकर्ताओं की आशंका को वास्तविक और उचित माना जा सकता है।''
अदालत ने बाजिंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य 2015 एससीसी ऑनलाइन पी एंड एच 3229 में पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट के फैसले और मनोहर लाल सैनी बनाम राजस्थान राज्य, (2015) एससीसी ऑनलाइन राज 10662 में राजस्थान हाइकोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि सीआरपीसी की धारा 319 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए आरोपी के रूप में जोड़ा गया व्यक्ति भी अग्रिम जमानत का लाभ उठा सकता है।
अदालत ने कहा,
“इस प्रकार यह अदालत पाती है कि याचिकाकर्ताओं को भले ही चल रहे मुकदमे में आरोपी व्यक्तियों के रूप में शामिल किए जाने के बाद बुलाया गया हो, वे वास्तव में अपनी उपस्थिति पर अपनी स्वतंत्रता खो सकते हैं।”
कानून की उपरोक्त स्थिति को ध्यान में रखते हुए और प्रथम दृष्टया साक्ष्यों को देखने के बाद अदालत का विचार था कि कथित अपराध में याचिकाकर्ताओं की संलिप्तता के संबंध में उचित संदेह है।
क्योंकि ट्रायल कोर्ट ने उन्हें पहले ही तलब किया है, एकल पीठ ने याचिकाकर्ताओं को ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश होने और जमानत के लिए आवेदन करने का निर्देश देते हुए अग्रिम जमानत अर्जी का निपटारा कर दिया। ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया गया कि वह उन्हें ऐसे नियमों और शर्तों पर जमानत दे, जो वह उचित समझे।
याचिकाकर्ताओं के लिए वकील-बी.बी. बेहरा, एस. बहादुर और एस.सी. साहू।
राज्य के वकील- एस.के. मिश्रा।
साइटेशन- लाइव लॉ (ओआरआई) 3 2024