Haldwani Mosque-Madrasa Demolition| उत्तराखंड हाइकोर्ट ने राज्य सरकार से 6 सप्ताह में जवाब मांगा

Update: 2024-02-15 10:17 GMT

उत्तराखंड हाइकोर्ट ने बुधवार को बनभूलपुरा क्षेत्र (हल्द्वानी जिले के) अतिक्रमण विरोधी अभियान में कथित तौर पर अवैध रूप से निर्मित मस्जिद और मदरसे के विध्वंस को चुनौती देने वाली याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी कर छह सप्ताह में जवाब मांगा।

विध्वंस के कारण क्षेत्र में निवासियों और पुलिस के बीच हिंसक टकराव हुआ, जिसके परिणामस्वरूप आगजनी और पथराव हुआ। 8 फरवरी को भड़की हिंसा में पहले ही छह लोगों की जान जा चुकी है और पुलिस और पत्रकारों सहित 100 से अधिक लोग घायल हुए।

जस्टिस मनोज कुमार तिवारी की पीठ ने सीनियर वकील सलमान खुर्शीद (याचिकाकर्ता के लिए) और एडवोकेट जनरल एसएन बाबुलकर, मुख्य सरकारी वकील सीएस रावत और सरकारी वकील गजेंद्र त्रिपाठी (उत्तराखंड राज्य/प्रतिवादियों के लिए) सहित पक्षों के वकीलों को सुनने के बाद मामले की अगली सुनवाई 8 मई को तय की।

सफिया मलिक नामक महिला ने अपने पति (अब्दुल मलिक) को 30 जनवरी को मस्जिद और मदरसा के विध्वंस के लिए नोटिस दिए जाने के बाद 6 फरवरी को उत्तराखंड हाइकोर्ट का रुख किया। अपनी याचिका में उन्होंने अंतरिम राहत की मांग की। हालांकि, 8 फरवरी को स्थानीय अधिकारियों ने विध्वंस को अंजाम दिया।

हालांकि, हाइकोर्ट ने 8 फरवरी को (विध्वंस किए जाने से पहले) मामले की सुनवाई की थी, लेकिन याचिकाकर्ता को राहत देने वाला कोई आदेश पारित नहीं किया था। इसने मामले को केवल 14 फरवरी को सुनवाई के लिए पोस्ट किया था।

अब ध्वस्त की गई संरचनाएं (मरियम मस्जिद और अब्दुल रज्जाक जकारिया मदरसा) 2002 में बनभूलपुरा के कंपनी बाग इलाके में बनाई गई और उनकी देखभाल अब्दुल मलिक और उनकी पत्नी सफिया मलिक (हाइकोर्ट में याचिकाकर्ता) द्वारा की जा रही है।

मलिक ने अपनी याचिका में दावा किया कि जिस जमीन पर कथित अवैध मस्जिद और मदरसा बनाया गया, उसे वर्ष 1937 में उन्हें पट्टे पर दिया गया था और वर्ष 1994 में उनके परिवार को बेच दिया गया। उक्त को रिन्यूअल करने के लिए याचिका पट्टा 2007 से जिला प्रशासन के समक्ष लंबित है।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर वकील खुर्शीद ने दलील दी कि इलाके में विध्वंस करने से पहले उन्हें अदालत में जवाब दाखिल करने के लिए 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए था। हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि क्योंकि विध्वंस पहले ही किया जा चुका है, इसलिए याचिकाकर्ता को अब कोई राहत नहीं दी जा सकती।

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, सुनवाई के दौरान जस्टिस तिवारी ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि उस स्थल पर निर्माण कैसे किया जा सकता है, जब प्रश्न में संपत्ति सरकार द्वारा कृषि भूमि के रूप में पट्टे पर दी गई। हालांकि, बिना इस बात पर गौर किए पट्टा वैध है या नहीं, इस सवाल पर अदालत ने सरकार से जवाबी हलफनामा मांगा।

केस टाइटल- सफ़िया मलिक बनाम उत्तराखंड राज्य और अन्य

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