कलकत्ता हाइकोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय पर हमले मामले मे राज्य से पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR में विसंगतियों को स्पष्ट करने के लिए कहा
कलकत्ता हाइकोर्ट ने राज्य को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया, जिसमें पश्चिम बंगाल के संदेशखली और बोनगांव में 'लोगों की भीड़' द्वारा प्रवर्तन निदेशालय (ED) के सदस्यों पर हुए हालिया हमलों से संबंधित दर्ज की गई FIR में विसंगतियों को स्पष्ट किया गया। घटना के दौरान एजेंसी 'राशन घोटाले' में स्थानीय नेता शाहजहां शेख पर छापेमारी करने वाली थी।
जस्टिस राजशेखर मंथा की एकल पीठ ने कहा कि जहां एजेंसी ने IPC की विभिन्न धाराओं के तहत पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज की, वहीं एजेंसी अपनी शिकायत दर्ज करने से पहले ही घटनाओं के अलग संस्करण का हवाला देते हुए एक और एफआईआर दर्ज कर चुकी थी।
दोनों एफआईआर के बीच स्पष्ट असंगतता है, जो घटना के पूरी तरह से अलग-अलग संस्करणों का खुलासा करती है। न्यायालय को संदेह है कि ED के अधिकारियों के खिलाफ उसी दिन पूर्व एफआईआर दिखाने के लिए की गई शिकायत के आधार पर एफआईआर नंबर 7 को समय से पहले तैयार किया गया होगा। उपरोक्त परिस्थितियों में यह न्यायालय केस डायरी और मूल दो दस्तावेजों को देखने का इच्छुक है। राज्य उपरोक्त विसंगतियों को स्पष्ट करेगा।
ED के लिए SSG एसवी राजू और DSG धीरज त्रिवेदी ने 2024 की एफआईआर नंबर 7 से व्यथित होकर अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें दावा किया गया कि शेख पर छापेमारी करते समय उन्होंने उसके परिसर को बंद पाया और लगभग 3000 की भीड़ तक उससे संपर्क करने में असमर्थ थे। लोगों ने एजेंसी के सदस्यों पर लाठी-डंडों और पत्थरों से हमला करना शुरू कर दिया।
यह प्रस्तुत किया गया कि परिणामस्वरूप अधिकारी घायल हो गए और उनका सामान जबरन हटा दिया गया। यह तर्क दिया गया कि मोबाइल लोकेशन के अनुसार शेख घर में मौजूद था और भीड़ जुटाने के लिए जिम्मेदार था।
यह तर्क दिया गया कि जबकि एफआईआर छापेमारी दल के साथ आए सब-इंस्पेक्टर (SI) द्वारा दर्ज की गई और एक और एफआईआर नंबर 7/2024 पहले ही निजी शिकायत पर दर्ज की गई।
ED इससे व्यथित है, क्योंकि उनके द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में आईपीसी की संबंधित धाराएं शामिल हैं, जबकि पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ 'मामूली आईपीसी धाराओं' वाली एफआईआर दर्ज की।
तदनुसार, ED ने प्रस्तुत किया कि एफआईआर नंबर 7 प्रेरित, अवैध है और एजेंसी द्वारा दर्ज की गई एफआईआर से ध्यान हटाने के लिए दर्ज की गई।
राज्य के एडवोकेट जनरल ने तर्क दिया कि ललिता कुमारी बनाम यूपी राज्य (2012) में दिशानिर्देश हाईकोर्ट को एफआईआर रजिस्ट्रेशन में हस्तक्षेप करने से रोकते हैं।
दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने हरियाणा राज्य बनाम भजनलाल (1992) मामले के फैसले पर गौर करने के बाद कहा कि इस मामले में जिस प्रभारी अधिकारी ने सुबह 10:30 बजे एफआईआर पर हस्ताक्षर किए, उसने उसी दिन दोपहर 1:30 बजे SI की शिकायत के खिलाफ एक और एफआईआर पर हस्ताक्षर नहीं किए होंगे।
तदनुसार इन विसंगतियों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने केस डायरी को अपने समक्ष रखने को कहा।
इसने एफआईआर 7/2024 में 31 मार्च 2024 तक सभी कार्यवाही पर रोक लगा दी।
केस टाइटल- प्रवर्तन निदेशालय बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।
केस नंबर- सी.आर.आर. 164 ऑफ़ 2024