11वीं और 12वीं कक्षा में स्टूडेंट्स को एक ही मुख्य विषय चुनने की बाध्यता वाले एमपी बोर्ड के नियम का कोई पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं: हाइकोर्ट

Update: 2024-02-06 08:39 GMT

स्टूडेंट को गणित के बजाय 12वीं कक्षा की जीव विज्ञान स्ट्रीम में परीक्षा में बैठने की अनुमति देते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि एमपी बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन के सर्कुलर में 12वीं कक्षा में 11वीं कक्षा के समान स्ट्रीम को चुनने का कोई पूर्वव्यापी अनुप्रयोग नहीं है।

अदालत ने स्पष्ट किया कि परीक्षा के लिए नए दिशानिर्देश 28-06-2023 को जारी किए गए, जबकि याचिकाकर्ता स्टूडेंट तब तक 11वीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण कर चुकी थी।

जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा,

“यदि मामले के तथ्यों का सुप्रीम कोर्ट के पूर्वोक्त आदेश के आधार पर टेस्ट किया जाता है तो यह अधिक स्पष्ट हो जाता है कि उत्तरदाताओं ने 28-06-2023 को जारी रेगुलशन को लागू करने का प्रयास किया। ऐसी परिस्थितियों में जब उपरोक्त रेगुलशन 14 को याचिकाकर्ता के मामले में लागू नहीं किया जा सकता है, उत्तरदाता उसे केवल गणित विषय चुनने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं, जो कि कक्षा 11वीं में उसका विषय था।”

हालांकि, स्कूल के रिकॉर्ड से संकेत मिलता है कि उसे 26-07- 2023 को ही 12वीं कक्षा में एडमिशन दिया गया, यानी सर्कुलर जारी होने के बाद अदालत ने महसूस किया कि मुद्दे पर निर्णय लेने में एडमिशन की तारीख प्रासंगिक नहीं थी। अदालत ने उस तारीख पर भरोसा किया, जिस दिन स्टूडेंट ने 11वीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की थी।

दालत ने कहा कि यह नियम उन स्टूडेंट पर लागू नहीं किया जा सकता, जिन्होंने पहले ही 11वीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है। 10वीं कक्षा के स्टूडेंट्स पर भी लागू समान रेगुलशन के बारे में अदालत ने कहा कि वही सिद्धांत तब लागू होगा, जब उन्होंने नौवीं कक्षा में एक विषय चुना था और 10वीं कक्षा में पहले से ही अपनी स्ट्रीम के रूप में एक और विषय चुना था।

परीक्षा के लिए ऑनलाइन आवेदन जमा करने के लिए बोर्ड द्वारा जारी रेगुलशन 14 में उन मुख्य विषयों के बारे में उल्लेख किया गया, जिन्हें स्टूडेंट को क्रमशः कक्षा 9 और कक्षा 11 में अपनी पिछली पसंद के आधार पर 10वीं और 12वीं कक्षा की परीक्षाओं में चुनना होता है।

सहायक उत्पाद शुल्क आयुक्त कोट्टायम और अन्य बनाम एस्थाप्पन चेरियन और अन्य में डिवीजन बेंच के फैसले की विस्तृत चर्चा के बाद तब हुआ, जब अदालत मौजूदा मुद्दे का विश्लेषण कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में यह माना गया कि प्रत्यायोजित कानून, जैसे कि नियम या विनियम को स्पष्ट वैधानिक प्राधिकरण के अभाव में पूर्वव्यापी नहीं माना जा सकता है, जब तक कि यह इसके विपरीत स्पष्ट या स्पष्ट इरादा व्यक्त नहीं करता।

इसके अलावा, अदालत ने कहा कि प्रतिवादी अधिकारियों द्वारा लगाए गए आरोप के बारे में उचित संदेह है कि संबंधित स्टूडेंट ने 12वीं कक्षा के एडमिशन फॉर्म में मुख्य विषय के रूप में जीव विज्ञान के बजाय गणित का विकल्प पहले ही चुन लिया।

इंदौर बेंच ने आगे कहा,

“हालांकि उसके फॉर्म में जिस पर उसके और उसके पिता के हस्ताक्षर जोड़े गए हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि उसने जीव विज्ञान को अपने विषय के रूप में चुना था, जिसके दोनों तरफ क्रॉस और टिक बना दिया गया, जबकि सम्मान में गणित के दोनों तरफ टिक कर दिया गया। जबकि उपरोक्त फॉर्म के दूसरे पेज में, जिसमें स्कूल के महत्वपूर्ण नियम और शर्तें दी गई हैं, स्टू़डेंट और उसके माता-पिता के हस्ताक्षर के लिए एक जगह है और ये दोनों जगह खाली है।”

इसलिए अदालत को प्रतिवादी अधिकारियों के इस कथन पर विश्वास करना मुश्किल हो गया कि याचिकाकर्ता ने अपनी इच्छा से गणित विषय चुना। अदालत ने संदेह व्यक्त किया कि स्कूल अधिकारियों ने अनजाने में उसे जीव विज्ञान में एडमिशन दिया होगा और बाद में उस त्रुटि को सुधारने के लिए किसी प्रकार की 'विंडो ड्रेसिंग' का सहारा लिया होगा।

अदालत ने कहा,

“ऐसी परिस्थितियों में भी इस न्यायालय को यह मानने में कोई आपत्ति नहीं है कि याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी नंबर 6 स्कूल में एडमिशन लेते समय केवल जीव विज्ञान विषय का विकल्प चुना था।"

अदालत ने कहा कि परिपत्र केवल तभी संभावित रूप से लागू होगा, जब स्टूडेंट 2022-23 में 11वीं कक्षा की परीक्षा पहले ही उत्तीर्ण कर चुका हो। तदनुसार, अदालत ने उसके समक्ष उठाए गए दो प्रश्नों का उत्तर दिया: क्या 28-06-2023 को माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा जारी किए गए विनियम पूर्वव्यापी रूप से लागू किए जा सकते हैं, ii) क्या स्टूडेंट ने स्कूल में एडमिशन के समय मूल रूप से जीव विज्ञान का विकल्प चुना था?

अदालत ने याचिका की अनुमति देते हुए स्पष्ट किया,

“प्रतिवादी द्वारा 28-06-2023 को जारी किए गए दिशानिर्देश भावी रूप से लागू होंगे और याचिकाकर्ता के मामले में लागू नहीं होंगे। दूसरी बात, याचिकाकर्ता को प्रतिवादी नंबर 6 स्कूल में एडमिशन लेने के लिए भी माना जाता है। वह जीवविज्ञान स्ट्रीम और उक्त स्ट्रीम के लिए कक्षा 12वीं की परीक्षा में बैठने का हकदार है।”

याचिकाकर्ता गवर्नमेंट गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल, राऊ की स्टूडेंट है, उसने मुख्य विषय को जीवविज्ञान में बदलने के अपने प्रतिनिधित्व पर अधिकारियों की निष्क्रियता से व्यथित होकर हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिकाकर्ता के अनुसार, जीव विज्ञान को मुख्य विषय के रूप में चुनने के बावजूद उसे इस तरह की विसंगति का पता तब चला, जब उसे डमी एडमिट कार्ड जारी किया गया, जैसे कि उसने गणित स्ट्रीम चुनी हो।

स्टूडेंट के अनुसार उसने 12वीं कक्षा के लिए एडमिशन फॉर्म दाखिल करते समय अपनी पसंद के विषय भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान बताए। याचिकाकर्ता की ओर से यह प्रस्तुत किया गया कि उसकी उपस्थिति भी सबसे अधिक थी और उसने जीव विज्ञान की त्रैमासिक और अर्ध-वार्षिक परीक्षाएं भी दी थीं।

स्टूडेंट की ओर वकील- हितेश शर्मा उपस्थित हुए।

हायर सेकंडरी स्कूल की ओर से वकील- मुकेश परवाल।

मप्र माध्यमिक शिक्षा मंडल और उसके सचिव की ओर से वकील- चित्रलेखा हार्डिया उपस्थित हुईं।

केस टाइटल- मुस्कान इवनाती बनाम मध्य प्रदेश राज्य प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा विभाग एवं अन्य

केस नंबर- की रिट याचिका संख्या 604 2024

साइटेशन- लाइव लॉ (एमपी) 26 2024

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