कमर्शियल कोर्ट के समक्ष धारा 9 का आवेदन पहले से ही दायर किया गया हो तो यह हाइकोर्ट के क्षेत्राधिकार से बाहर होगा: कलकत्ता हाइकोर्ट

Update: 2024-02-26 13:48 GMT

जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य की कलकत्ता हाइकोर्ट की एकल पीठ ने माना कि हाईकोर्ट को उस क्षेत्राधिकार से बाहर रखा गया है, जब मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 (Arbitration and Conciliation Act, 1996) के तहत आवेदन किसी जिले में मूल क्षेत्राधिकार के किसी भी प्रमुख सिविल न्यायालय के समक्ष दायर किया गया, जहां कमर्शियल कोर्ट है।

मामला

याचिकाकर्ता ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 की धारा 9 के तहत याचिका दायर की, जिसमें याचिकाकर्ता द्वारा उत्तरदाताओं को प्रदान किए गए लोन के माध्यम से वित्तपोषित संपत्ति के लिए रिसीवर की नियुक्ति की मांग की गई। इसके अतिरिक्त याचिकाकर्ता ने प्रतिवादियों पर उक्त संपत्ति के ट्रांसफर या निपटान पर रोक लगाने का अनुरोध किया।

जवाब में उत्तरदाताओं ने तीन आधारों पर आवेदन की स्थिरता का विरोध किया। सबसे पहले उन्होंने तर्क दिया कि आवेदन मध्यस्थता अधिनियम की धारा 42 के तहत वर्जित है। दूसरे उन्होंने तर्क दिया कि मुकदमे की वापसी से संबंधित सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 (CPC) के आदेश XXIII नियम 1 के तहत आवेदन पर रोक लगा दी गई। अंत में उन्होंने दावा किया कि पार्टियों के बीच मध्यस्थता समझौते के अनुसार आवेदन क्षेत्राधिकार न्यायालय के समक्ष दायर नहीं किया गया।

उत्तरदाताओं ने तर्क दिया कि कलकत्ता में सिटी सिविल कोर्ट के पास आवेदन पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि याचिकाकर्ता का प्रारंभिक आवेदन धारा 9 के तहत हाइकोर्ट के समक्ष किया गया। यह तर्क दिया गया कि 67.53 रुपये की दावा राशि 67.53 लाख हाइकोर्ट के अधिकार क्षेत्र को छीन लेता है। वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम 2015 की धारा 2(1)(बी) का संदर्भ दिया गया, जिसमें "वाणिज्यिक न्यायालय" को परिभाषित किया गया। यह तर्क दिया गया कि सीपीसी का आदेश XXIII नियम 1 लागू है, जो याचिकाकर्ता कन्यायालय की अनुमति के बिना उसी विषय पर नई कार्यवाही शुरू करने से रोकता है।

हाइकोर्ट की टिप्पणियां

हाइकोर्ट ने माना कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 2(1)(ई) में "न्यायालय" शब्द को सावधानीपूर्वक परिभाषित किया गया है, जो उस मंच को निर्दिष्ट करता है, जहां पक्षकार निर्णय के लिए मध्यस्थता से संबंधित विषय वस्तु लाने के लिए बाध्य है।

इसमें पश्चिम बंगाल सरकार के न्यायिक विभाग द्वारा कोलकाता गजट एक्स्ट्राऑर्डिनरी में 20-3-2020 को प्रकाशित अधिसूचना का उल्लेख किया गया। वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम 2015 की धारा 3(1-ए) द्वारा दिए गए अधिकार के तहत निष्पादित इस अधिसूचना ने सिटी सिविल कोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट दोनों के आर्थिक क्षेत्राधिकार को चित्रित करके परिदृश्य को बदल दिया। अधिसूचना वाणिज्यिक विवादों के मूल्य के संबंध में इन अदालतों के आर्थिक क्षेत्राधिकार को निर्दिष्ट करती है,10 लाख से रुपये से लेकर 1 करोड़ कमर्शियल डिस्प्यूट के लिए समवर्ती क्षेत्राधिकार स्थापित करती है। विशेष रूप से, याचिकाकर्ता के लगभग 67.53 लाख रुपये के दावे पर विचार करते हुए। हाइकोर्ट ने माना कि सिटी सिविल कोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट के वाणिज्यिक प्रभाग दोनों का समवर्ती क्षेत्राधिकार होगा।

हाइकोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत उस तर्क को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि मध्यस्थता अधिनियम वित्तीय मंच या आर्थिक सीमाओं के प्रति उदासीन है। इसके अलावा, इसने कमर्शियल मामलों के वित्तीय पहलू को रेखांकित किया, विशेष रूप से एक निर्दिष्ट मूल्य वाले मध्यस्थता में। वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम की धारा 10 इसे हाइकोर्ट के मूल पक्ष (धारा 10(2)) में दायर निर्दिष्ट मूल्य के कमर्शियल विवाद में मध्यस्थता से उत्पन्न होने वाले आवेदनों या अपीलों और उन अपीलों के बीच अंतर करके संबोधित करती है, जो आम तौर पर हाइकोर्ट को छोड़कर किसी जिले में मूल क्षेत्राधिकार वाला सिविल न्यायालय (धारा 10(3) किसी के समक्ष होती हैं। दोनों श्रेणियां गैर-अंतर्राष्ट्रीय कमर्शियल मध्यस्थता से संबंधित हैं। कमर्शियल कोर्ट को विशेष रूप से मध्यस्थता पर क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने वाले प्रधान सिविल न्यायालय के अधिकार के भीतर घरेलू मध्यस्थता से उत्पन्न अपील और आवेदनों को सुनने और निपटाने का अधिकार क्षेत्र निहित है।

यह माना गया कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 2(1)(ई)(i), मूल क्षेत्राधिकार के प्रधान सिविल न्यायालय और एक ही जिले में साधारण मूल नागरिक क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने वाले हाइकोर्ट के बीच संघर्ष की कल्पना नहीं करती है। यह समावेशी है और हाइकोर्ट को प्रमुख सिविल न्यायालय के रूप में मानता है, जो मुकदमे के समान मध्यस्थता के विषय से संबंधित प्रश्नों पर निर्णय लेने के लिए अधिकृत है।

इसके अलावा, हाइकोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता द्वारा सिटी सिविल कोर्ट से प्रारंभिक आवेदन वापस लेना मध्यस्थता अधिनियम की धारा 42 में उल्लिखित निर्माण के साथ असंगत है। यह माना गया कि याचिकाकर्ता ने अधिकार क्षेत्र वाले सक्षम न्यायालय के समक्ष अपना दावा छोड़ दिया, वह बाद में हाइकोर्ट के समक्ष कार्रवाई के उसी कारण पर नया आवेदन दायर नहीं कर सकता।

याचिकाकर्ता द्वारा धारा 9 के तहत सिटी सिविल कोर्ट के समक्ष पहला आवेदन किया गया, इसलिए हाइकोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा उसके समक्ष दायर याचिका खारिज कर दी।

केस टाइटल- चोलामंडलम इन्वेस्टमेंट एंड फाइनेंस कंपनी लिमिटेड बनाम उमा अर्थ मूवर्स एंड अन्य।

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