महिला का खाना न पकाने के बारे में टिप्पणी करना आईपीसी की धारा 498ए के तहत 'क्रूरता' नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2024-01-15 06:30 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि यह टिप्पणी करना कि महिला खाना बनाना नहीं जानती क्रूरता नहीं। यह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।

कोर्ट ने कहा,

“वर्तमान मामले में इन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एकमात्र आरोप यह है कि उन्होंने टिप्पणी की कि प्रतिवादी नंबर 2 खाना बनाना नहीं जानती। ऐसी टिप्पणी आईपीसी की धारा 498-ए के स्पष्टीकरण के अर्थ में 'क्रूरता' नहीं है।”

जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई और जस्टिस एन.आर. बोरकर की खंडपीठ ने कथित तौर पर यह टिप्पणी करने के लिए कि शिकायतकर्ता को खाना बनाना नहीं आता दो देवरों के खिलाफ धारा 498ए के तहत दर्ज की गई एफआईआर रद्द कर दी।

अदालत ने कहा कि छोटे-मोटे झगड़े आईपीसी की धारा 498ए के अर्थ में 'क्रूरता' नहीं। इस धारा के तहत अपराध का गठन करने के लिए प्रथम दृष्टया यह साबित करने के लिए सामग्री होनी चाहिए कि जानबूझकर किया गया आचरण महिला को आत्महत्या करने या गंभीर चोट पहुंचाने के लिए मजबूर कर सकता है। उसे गैरकानूनी दहेज की मांगों को पूरा करने के लिए परेशान किया गया।

खंडपीठ ने मंजू राम कलिता बनाम असम राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि क्रूरता को लगातार होने वाली घटना के रूप में स्थापित किया जाना चाहिए, कम से कम शिकायत दर्ज होने के करीब।

वर्तमान मामले में अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एकमात्र आरोप यह था कि उन्होंने शिकायतकर्ता के खाना पकाने के कौशल की कमी पर टिप्पणी की थी। यह आईपीसी की धारा 498ए के तहत परिकल्पित 'क्रूरता' के स्तर के बराबर नहीं है।

संविधान के अनुच्छेद 226 और सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर रद्द कर दी। इसमें कहा गया कि आपराधिक कार्यवाही जारी रखना प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।

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