हिंदू माइनॉरिटी एंड गॉर्डियनशिप एक्ट | संयुक्त परिवार की संपत्ति में नाबालिग के अविभाजित हित का निपटारा करने के लिए वयस्क मुखिया को अदालत की अनुमति की आवश्यकता नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि हिंदू माइनॉरिटी और गॉर्डियनशिप एक्ट, 1956 की धारा 6, 8 और 12 को संयुक्त रूप से पढ़ने पर हिंदू परिवार के वयस्क मुखिया को संयुक्त परिवार की संपत्ति मे नाबालिग के अविभाजित हित के निपटान के लिए अदालत की अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
अधिनियम की धारा 6 में प्रावधान है कि एक हिंदू नाबालिग और नाबालिग की संपत्ति (संयुक्त परिवार की संपत्ति में उनके अविभाजित हित को छोड़कर) के लिए, पिता प्राकृतिक अभिभावक होगा और उसके बाद मां प्राकृतिक अभिभावक होगी।
अधिनियम की धारा 8(1) में प्रावधान है कि यद्यपि नाबालिग का प्राकृतिक अभिभावक नाबालिग के लाभ के लिए या नाबालिग की संपत्ति की प्राप्ति, सुरक्षा या लाभ के लिए आवश्यक, और उचित सभी कार्य कर सकता है। हालांकि, धारा 8(2) न्यायालय की पूर्व अनुमति के बिना अचल संपत्ति के किसी भी हिस्से को गिरवी रखने या चार्ज करने, या बिक्री, उपहार, विनिमय या अन्यथा हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाती है।
इसके अलावा, अधिनियम की धारा 12 में प्रावधान है कि जहां नाबालिग का संयुक्त परिवार की संपत्ति में अविभाजित हित है, जिसे परिवार के वयस्क सदस्य द्वारा प्रबंधित किया जाता है, ऐसे अविभाजित हित के संबंध में कोई अभिभावक नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
हाईकोर्ट का फैसला
जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की पीठ ने इस प्रश्न पर विचार किया कि क्या नाबालिग बच्चों के अविभाजित शेयरों के निपटान के लिए न्यायालय की अनुमति की कोई आवश्यकता थी।
हिंदू माइनॉरिटी और गॉर्डियनशिप एक्ट की धारा 6, 8 और 12 से निपटते हुए, न्यायालय ने माना कि संयुक्त परिवार की संपत्ति में हिंदू नाबालिग के अविभाजित हित के लिए प्राकृतिक अभिभावक आवश्यक नहीं है। इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि अधिनियम की धारा 12 के तहत, वयस्क सदस्य को कर्ता या परिवार का पुरुष सदस्य होना जरूरी नहीं है। हिंदू संयुक्त परिवार का कोई भी वयस्क सदस्य संयुक्त परिवार की संपत्ति में नाबालिग के अविभाजित हित का सौदा कर सकता है।
न्यायालय ने माना कि यद्यपि हाईकोर्ट के पास कुछ स्थितियों में संरक्षक नियुक्त करने की शक्ति है, वर्तमान मामले में और हिंदू माइनॉरिटल और गॉर्डियनशिप एक्ट के अनुसार, संपत्ति के निपटान के लिए अभिभावक की कोई आवश्यकता नहीं है।
तदनुसार, न्यायालय ने माना कि अधिनियम की धारा 8 मामले के तथ्यों पर लागू नहीं होगी। संपत्ति बेचने के लिए मां की ओर से दायर अपील मंजूर कर ली गई।
केस टाइटलः श्रीमती प्रीति अरोड़ा बनाम सुभाष चंद्र अरोड़ा और अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 172 [FIRST APPEAL FROM ORDER No. - 272 of 2024]
केस साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (एबी) 172