दहेज की मांग पूरी न होने पर विवाहित महिला को खाना देने से इनकार करना शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न के बराबर: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2024-04-10 10:58 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि दहेज की मांग पूरी न होने पर विवाहित महिला को भोजन न देना शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न के समान होगा।

जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की पीठ ने कहा कि दहेज की मांग पूरी न होने पर किसी विवाहित महिला को अपने माता-पिता के घर में रहने के लिए मजबूर करना निश्चित रूप से मानसिक उत्पीड़न होगा, जो आईपीसी की धारा 498-ए के तहत दंडनीय है।

अदालत ने एक पति (आवेदक संख्या एक) और उसके परिवार के सदस्यों की ओर से दायर एक याचिका को खारिज़ करते हुए ये टिप्पणियां की। याचिका में उन्होंने पत्नी (प्रतिवादी संख्या 2) की ओर से धारा 498-ए, धारा 506, धारा 34 आईपीसी सहपठित दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत दर्ज कराई गई एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी।

मामले के तथ्यों और एफआईआर में लगाए गए आरोपों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने कहा कि दहेज की मांग पूरी न होने के कारण एक विवाहित महिला को भोजन से वंचित करना निस्संदेह शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न है। कोर्ट ने कहा कि एफआईआर में लगाए गए आरोप प्रत्येक आवेदक के खिलाफ विशिष्ट हैं और किसी भी तरह से इसे अस्पष्ट, सर्वव्यापी या सामान्य प्रकृति का नहीं कहा जा सकता है।

कोर्ट ने आगे कहा कि केवल इसलिए कि तलाक की याचिका दायर करने के बाद एफआईआर दर्ज की गई है, उसे इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है कि यह प्रतिशोध के लिए है।

कोर्ट ने कहा,

"अगर तलाक की याचिका दायर करने के बाद दर्ज की गई एफआईआर पर विचार किया जाता है तो यह भी कहा जा सकता है कि प्रतिवादी संख्या दो को अपने वैवाहिक जीवन को बचाने में दिलचस्पी हो सकती है, इसलिए, वह चुप रही और उसे तभी एहसास हुआ कि अब उसका पति चला गया है, जब इस हद तक सुलह की संभावना धूमिल हो गई, ऐसे में अगर वह अपने साथ हुए दुष्कर्म के लिए एफआईआर दर्ज कराती है तो यह नहीं कहा जा सकता कि यह तलाक की याचिका का जवाबी हमला है।''

अदालत ने यह भी कहा कि पत्नी ने पहले आवेदक संख्या एक के खिलाफ इस आरोप में एफआईआर दर्ज कराई थी कि उसने उस पर किसी अन्य लड़के के साथ अवैध संबंध होने का आरोप लगाया था। उसका मोबाइल फोन छीन लिया था और जीमेल और फेसबुक अकाउंट के आईडी पासवर्ड भी बदल दिए थे।

पति ने मोबाइल वापस करने से इनकार कर दिया था और स्पष्ट धमकी दी कि मोबाइल को अदालती कार्यवाही में सबूत के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा।

इस प्रकार, न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि आवेदक का प्रतिवादी संख्या दो के साथ संबंध सौहार्दपूर्ण नहीं था और आवेदक संख्या एक प्रतिवादी संख्या दो के खिलाफ व्यभिचार के आरोप लगाने की हद तक चला गया था। यह जोड़ते हुए कि यदि व्यभिचार का आरोप गलत पाया जाता है, तो वह आरोप अपने आप में क्रूरता के समान होगा, न्यायालय ने विवादित एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया।

केस टाइटलः नीतीश उमरिया और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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