Arms Act 1959 | आत्मरक्षा में पिस्तौल से गोली चलाना लाइसेंस की शर्तों का उल्लंघन नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि आत्मरक्षा में पिस्तौल से गोली चलाना लाइसेंस शर्तों का उल्लंघन नहीं है। इसके साथ ही अदालत ने आवेदक के पक्ष में पिस्तौल जारी करने का आदेश दिया, जिस पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 286, 323, 504 और 506 और शस्त्र अधिनियम 1959 (Arms Act) की धारा 30 के तहत आरोप पत्र दायर किया गया।
जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने यह आदेश सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर आवेदन पर पारित किया, जिसमें विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (कस्टम), लखनऊ के आदेश को चुनौती दी गई। उक्त आदेश में पिस्तौल, 4 जिंदा कारतूस और पिस्तौल लाइसेंस की रिहाई के लिए आवेदक के आवेदन को खारिज कर दिया गया था।
मूलतः आवेदक (सुनील दत्त त्रिपाठी) के खिलाफ इस आरोप पर मामला दर्ज किया गया कि वह अन्य लोगों के साथ शिकायतकर्ता और अन्य लोगों को नुकसान पहुंचाने के इरादे से गोलीबारी में शामिल है।
हालांकि कथित गोलीबारी की घटना में किसी के घायल होने की सूचना नहीं है। आवेदक पर उपरोक्त धाराओं के तहत आरोप पत्र दायर किया गया। उसने अपनी लाइसेंसी पिस्तौल और चार कारतूसों की वापसी की मांग करते हुए आवेदन दायर किया। हालांकि, आवेदन एसीजेएम द्वारा खारिज कर दिया गया।
इसके बाद, आवेदक ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां उसके वकील ने तर्क दिया कि उक्त घटना में अभियोजन पक्ष द्वारा किसी के घायल होने की बात साबित नहीं की गई । पुरजोर दलील दी गई कि गोलीबारी आत्मरक्षा में की गई।
कोर्ट ने सह-आरोपी की बहन के बयान को ध्यान में रखा, जिसमें उसने कहा कि 8-10 लोग सचिन शर्मा को पीट रहे थे, जिसे आवेदक ने बचाने की कोशिश की। हालांकि, इसके कारण भीड़ उग्र हो गई और दोनों लोगों पर हमला करना शुरू कर दिया और भागने का कोई रास्ता नहीं मिलने पर आवेदक ने अपनी लाइसेंसी पिस्तौल से आसमान में ऊपर की ओर फायर कर दिया। इसके बाद दोनों लोग अपनी जान बचाने के लिए वहां से चले गए।
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने कहा कि शस्त्र अधिनियम की धारा 30, जो शस्त्र लाइसेंस की शर्तों के उल्लंघन को अपराध घोषित करती है, आत्मरक्षा में गोलीबारी के कार्य को शामिल नहीं करती।
कोर्ट ने टिप्पणी की,
“उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, जबकि आवेदक और सह-अभियुक्तों को घटना में कई चोटें आई और उन्होंने किसी भी व्यक्ति को कोई चोट नहीं पहुंचाई; जवाबी हलफनामे के साथ संलग्न गवाह के बयान के अनुसार पिटाई के बाद आत्मरक्षा में हवाई फायरिंग की गई; शस्त्र लाइसेंस रद्द करने की कोई कार्यवाही शुरू नहीं की गई; आत्मरक्षा में पिस्तौल से गोली चलाना लाइसेंस की शर्तों का उल्लंघन नहीं है। यह आर्म्स एक्ट की धारा 30 के तहत अपराध नहीं लगता।”
नतीजतन, अदालत ने कहा कि विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीमा शुल्क) द्वारा पारित आदेश कानून में कायम रखने योग्य नहीं है। इसलिए इसे रद्द कर दिया गया और अदालत ने लाइसेंस और 4 कारतूसों के साथ पिस्तौल को रिहा करने का आदेश दिया।
अपीयरेंस
आवेदक के वकील: ईशान बघेल, सागर सिंह, उमंग राय।
प्रतिवादी के वकील: सरकारी वकील राकेश कुमार सिंह।
केस टाइटल- सुनील दत्त त्रिपाठी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के माध्यम से. प्रिं. सचिव. गृह विभाग लखनऊ और अन्य
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