डिपार्टमेंटल ट्रांसफर के बाद पुन: सौंपे गए विभाग में काम करने से कर्मचारी का स्वैच्छिक इनकार सेवा समाप्ति के समान नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

Update: 2024-05-06 04:42 GMT

गुजरात हाईकोर्ट की जज जस्टिस मौना एम. भट्ट की एकल पीठ ने माना कि डिपार्टमेंटल ट्रांसफर (Departmental Transfer) के बाद किसी कर्मचारी द्वारा पुन: सौंपे गए विभाग में काम करने से इनकार करना प्रबंधन द्वारा 'समाप्ति' नहीं माना जाएगा, यदि ऐसे तबादलों के प्रावधान कर्मचारी के नियुक्ति पत्र में शामिल है।

संक्षिप्त तथ्य:

याचिकाकर्ता (कर्मचारी) 15 अक्टूबर, 1986 से मेसर्स मीट चेतन्स प्राइवेट लिमिटेड (प्रबंधन) के उत्पादन विभाग में मशीन ऑपरेटर के रूप में कार्यरत था। हालांकि, प्रबंधन के मालिक ने 8 अप्रैल, 2011 को उसकी सेवाएं समाप्त कर दी थीं। व्यथित महसूस करते हुए कर्मकार ने श्रम न्यायालय के समक्ष संदर्भ दायर किया। श्रम न्यायालय ने संदर्भ को खारिज कर दिया, जिसके बाद श्रमिक को फैसले को चुनौती देते हुए गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर करनी पड़ी।

वर्कमैन ने तर्क दिया कि श्रम न्यायालय ने गलती से इस मुद्दे को 'समाप्ति' के बजाय 'ट्रांसफर' के रूप में वर्गीकृत कर दिया। उन्होंने तर्क दिया कि ट्रांसफर दावे का समर्थन करने वाले दस्तावेज़ के बिना समाप्ति अनुचित है। उन्होंने सुलह अधिकारी को भेजे गए पत्र पर प्रकाश डाला, जिसमें कहा गया कि ट्रांसफर के बजाय बर्खास्तगी का स्पष्ट मामला है।

प्रबंधन का तर्क है कि वर्कमैन नियुक्ति आदेश में डिपार्टमेंटल ट्रांसफर का प्रावधान है। मूल रूप से उन्हें 'सहायक' के रूप में नियुक्त किया गया और बाद में उनका विभाग पुनः सौंपा गया। हालांकि, कर्मकार ने स्वयं नए विभाग में काम करने से इनकार कर दिया, जो कर्तव्यों का परित्याग है। प्रबंधन ने कर्मचारी को ड्यूटी ट्रांसफर की सूचना देते हुए उसे दिया गया सूचना पत्र प्रस्तुत किया।

इसमें इस बात पर भी जोर दिया गया कि कर्मकार ने जिरह के दौरान स्वीकार किया कि उसने अपने मूल विभाग के अलावा किसी अन्य विभाग में काम करने से इनकार किया। चूंकि डिपार्टमेंटल ट्रांसफर रोजगार की निर्धारित शर्त है, इसलिए औपचारिक दस्तावेजीकरण अनावश्यक है। इसने आगे बताया कि सुलह अधिकारी को कर्मकार की प्रतिक्रिया ने उसके पिछले विभाग में लौटने की इच्छा का संकेत दिया।

हाईकोर्ट की टिप्पणियां:

हाईकोर्ट ने कहा कि वर्कर ने 15 अक्टूबर 1986 से 7 अप्रैल 2011 तक हेल्पर के रूप में कार्य किया। यह नोट किया गया कि प्रारंभिक नियुक्ति और पुष्टि आदेशों में स्पष्ट रूप से डिपार्टमेंटल ट्रांसफर के संबंध में शर्तें शामिल हैं। इसके अलावा, 14 जून, 2011 और 29 जून, 2011 को प्रबंधन के संचार से संकेत मिलता है कि वर्कमैन को फिक्सिंग विभाग में हेल्पर के रूप में फिर से नियुक्त किया गया। इसके अतिरिक्त, यह नोट किया गया कि वर्कमैन ने प्रबंधन के पत्रों का जवाब नहीं दिया। सुलह अधिकारी के समक्ष जवाब में प्रबंधन ने उन्हें फिक्सिंग विभाग में हेल्पर के रूप में नियुक्त करने की इच्छा व्यक्त की।

इन टिप्पणियों के आलोक में हाईकोर्ट ने लेबर कोर्ट का आदेश बरकरार रखा। फिर भी वर्कमैन की 20 साल से अधिक की सेवा और 2011 से लंबी मुकदमेबाजी स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने वर्कमैन को उनकी सेवा और कानूनी बकाया के लिए 1 लाख रुपये का अवार्ड देना उचित ठहराया।

केस टाइटल: किरणभाई हरकिशनदास पटेल उपनाम किरणभाई हरकिशनदास भंडारी बनाम एम/एस मीट चेतन्स प्राइवेट लिमिटेड

Tags:    

Similar News