धारा 306 आईपीसी | आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप को साबित करने के लिए उकसाने के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कृत्य जरूरी, केवल उत्पीड़न के आरोप पर्याप्त नहींः गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट ने एक कर्मचारी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी एक फैक्ट्री सुपरवाइजर के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही और एफआईआर को रद्द कर दिया है।
अदालत ने आरोपी की ओर से आत्महत्या के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उकसाने के अपर्याप्त सबूत पाए और कहा कि घटना के समय सकारात्मक कार्रवाई के बिना केवल उत्पीड़न के आरोप भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत दोषसिद्धि को उचित नहीं ठहराते हैं।
मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस दिव्येश ए जोशी ने कहा, "यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि आत्महत्या के लिए कथित रूप से उकसाने के मामलों में आत्महत्या के लिए उकसाने के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कृत्यों का सबूत होना चाहिए, हालांकि, केवल उत्पीड़न के आरोप के आधार पर, आरोपी की ओर से घटना के समय के निकट कोई सकारात्मक कार्रवाई न होने के कारण, जिसने मृतक को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित किया या मजबूर किया, आईपीसी की धारा 306 के तहत दर्ज दोषसिद्धि को न्यायसंगत और कानूनी नहीं कहा जा सकता है।"
उन्होंने आगे कहा, "इसलिए मामले के तथ्यों और सामग्री के साथ उपरोक्त चर्चाओं को देखते हुए, यह नहीं कहा जा सकता है कि आत्महत्या फैक्ट्री परिसर में मृतक पर की गई तथाकथित कार्रवाई का प्रत्यक्ष परिणाम थी, जिसका कथित तौर पर मृतक की ओर से बनाई गई डायरी में उल्लेख किया गया है।"
उपरोक्त निर्णय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत दायर एक आवेदन के जवाब में आया, जिसके तहत आवेदक ने भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(2)(v) के तहत अपराधों के लिए दर्ज एफआईआर को रद्द करने और अहमदाबाद (शहर) के 9वें अतिरिक्त शहर सिविल एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत के समक्ष लंबित आरोपपत्र दाखिल करने के बाद की कार्यवाही को समाप्त करने की मांग की थी।
एफआईआर के अनुसार, शिकायतकर्ता के पति, हशमुखभाई अरविंद लिमिटेड में कर्मचारी थे, जहां आवेदक, जो उनके वरिष्ठ अधिकारी थे, ने कथित तौर पर काम और छुट्टी के संबंध में दबाव डालकर उनके साथ भेदभाव और मानसिक उत्पीड़न किया, जिसके कारण हशमुखभाई ने खुद को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली, जिससे आवेदक को आत्महत्या के लिए उकसाने और कथित अपराध करने में फंसाया गया।
उक्त डायरी के सूक्ष्म अवलोकन पर, अदालत को आवेदक द्वारा किसी भी कार्य या चूक का संकेत देने वाला कोई सबूत नहीं मिला, जो उसे धारा 107 आईपीसी के तहत परिभाषित उकसाने के लिए जिम्मेदार ठहराए। न्यायालय ने आगे बताया कि यदि एफआईआर में लगाए गए आरोपों को सही मान भी लिया जाए, तो भी शिकायतकर्ता द्वारा ऐसा कोई निकटतम कारण नहीं दिखाया गया, जिससे मृतक के आत्महत्या करने के निर्णय से आरोपी को जोड़ा जा सके।
तदनुसार, कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली।
केस टाइटल: महेशभाई धीरूभाई दर्जी बनाम गुजरात राज्य एवं अन्य।
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