अभियोजन पक्ष आरोपी और अपराध के बीच अटूट संबंध नहीं दिखा सका, केवल संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता: गुजरात हाईकोर्ट ने हत्या के मामले में व्यक्ति को बरी किया
गुजरात हाईकोर्ट ने हत्या के एक मामले में दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष उस व्यक्ति और अपराध के बीच "अटूट" संबंध स्थापित नहीं कर सका, साथ ही कहा कि किसी को भी केवल संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, चाहे वह कितना भी मजबूत क्यों न हो।
जस्टिस दिव्येश ए जोशी की एकल पीठ ने अपने फैसले में कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि वर्तमान मामले में एक परिवार ने अपने प्रियजन को खो दिया है, लेकिन महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि क्या परिस्थितियों की समग्रता स्पष्ट रूप से अपीलकर्ता आरोपी की ओर इशारा करती है कि वह असली अपराधी है और कोई और नहीं। विद्वान एपीपी द्वारा बताई गई परिस्थितियां अपीलकर्ता-आरोपी के खिलाफ संदेह पैदा करती हैं, लेकिन मुद्दा यह है कि क्या वे परिस्थितियां उसे इस अपराध का दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त होंगी"।
हाईकोर्ट ने कहा, "मेरे विचार में, "सत्य हो सकता है" और "सत्य होना चाहिए" के बीच की दूरी अभियोजन पक्ष द्वारा अपीलकर्ता-आरोपी और अपराध के बीच एक अटूट संबंध स्थापित करने के लिए संतोषजनक ढंग से पार नहीं की गई है। किसी को इस तथ्य के प्रति सचेत रहना चाहिए कि किसी को भी केवल संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, चाहे ऐसा संदेह कितना भी मजबूत क्यों न हो।"
यह आदेश सत्र न्यायालय द्वारा पारित दोषसिद्धि के निर्णय के विरुद्ध मुकेशभाई मोहनलाल सरगरा द्वारा की गई अपील में पारित किया गया था, जहां उसे आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 323 (स्वेच्छा से किसी व्यक्ति को चोट पहुंचाना) और 114 (अपराध किए जाने पर उकसाने वाले की उपस्थिति) और बॉम्बे पुलिस अधिनियम के प्रावधानों के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था।
मामले में पर दिए निर्णय में न्यायालय ने सबसे पहले यह नोट किया कि मामले में आरोपी को संबंधित अपराध से जोड़ने के लिए कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं था और अभियोजन पक्ष का मामला केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित था।
न्यायालय ने यह टिप्पणी इस बात पर गौर करने के बाद की कि जिन व्यक्तियों को प्रत्यक्षदर्शी बताया गया है, वे "हितधारक गवाह" हैं - मृतक के सगे भाई, मां और भाभी तथा उन्होंने घटना के दिन हुई घटना के पूरे घटनाक्रम को विस्तार से नहीं बताया था, इसलिए, निचली अदालत ने अपने फैसले में ही "विस्तृत चर्चा" की है तथा इस आशय के निष्कर्ष दिए हैं। निचली अदालत ने कहा था कि इन गवाहों को प्रत्यक्षदर्शी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वे घटना के तुरंत बाद घटनास्थल पर पहुंच गए होंगे तथा निचली अदालत के निष्कर्षों को अभियोजन पक्ष द्वारा चुनौती नहीं दी गई है, इसलिए वे अंतिम हैं।
परिस्थितिजन्य साक्ष्य को पूरी तरह से स्थापित करने की शर्तों पर गौर करते हुए हाईकोर्ट ने कहा, "किसी मामले को तभी साबित कहा जा सकता है, जब निश्चित और स्पष्ट साक्ष्य हों तथा किसी भी व्यक्ति को विशुद्ध नैतिक विश्वास के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता।"
शिकायतकर्ता के भाई के बयान का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता द्वारा दायर की गई शिकायत और मुकदमे के दौरान दर्ज की गई उसकी गवाही में "बहुत बड़ी विसंगतियां" हैं। इसने आगे कहा कि शिकायतकर्ता और उसकी मां की गवाही में बहुत विरोधाभास है।
यह देखते हुए कि अभियोजन पक्ष अपीलकर्ता अभियुक्त की दोषीता पर "संदेह के बादल को दूर करने" में सक्षम नहीं था, अदालत ने उसे संदेह का लाभ देते हुए उसकी अपील को स्वीकार कर लिया और दोषसिद्धि आदेश को रद्द कर दिया।
केस टाइटल: मुकेशभाई मोहनलाल सरगरा बनाम गुजरात राज्य