बालिग महिला अपना खुद का रास्ता चुनने के लिए स्वतंत्र: लिव-इन पार्टनर की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट ने दोहराया कि वयस्क महिला रिश्ते में अपना रास्ता चुनने के लिए स्वतंत्र है। यह टिप्पणी महिला के लिव-इन पार्टनर द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका से निपटने के दौरान की गई थी। उक्त याचिका में कथित तौर पर उसके पति द्वारा उसे ले जाने और उसके मायके में कैद कर दिए जाने के बाद उसकी कस्टडी की मांग की गई।
अदालत के समक्ष याचिकाकर्ता ने उस महिला का लिव-इन पार्टनर होने का दावा किया, जिसकी शादी किसी अन्य व्यक्ति से हुई थी, लेकिन वैवाहिक कलह के कारण वह अपने माता-पिता के साथ रह रही थी। बाद में उसने याचिकाकर्ता के साथ लिव-इन रिलेशनशिप समझौता किया।
इसके बाद याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि मृतिका के माता-पिता और उसके पति ने मृतिका को छीन लिया। इस संबंध में खंभा पुलिस स्टेशन, अमरेली में एफआईआर दर्ज की गई।
जस्टिस बीरेन वैष्णव और प्रणव त्रिवेदी की पीठ ने आदेश दिया,
“तदनुसार, हमने हर्षबा की इच्छा का पता लगा लिया। उसने याचिकाकर्ता के साथ रहने की इच्छा व्यक्त की। जैसा कि आदेश में दर्ज किया गया कि वह बालिग है, वह अपना खुद का रास्ता चुनने के लिए स्वतंत्र है, जैसा कि वह रास्ता चुनना चाहती है।
पीठ ने आगे कहा,
“तदनुसार, हर्षबा की इच्छा जानने के बाद वह जहां चाहे वहां जाने के लिए स्वतंत्र है। तदनुसार, याचिका का निपटारा किया जाता है।”
केस टाइटल: सरवैया राजूभाई बच्चूभाई बनाम गुजरात राज्य और अन्य।